53 साल के मणिपुर को…अच्छे दिनों का इंतजार है… कौशल किशोर चतुर्वेदी

53 साल के मणिपुर को…अच्छे दिनों का इंतजार है…

भारत के संघीय इतिहास में 21 जनवरी की तारीख खास है। इस दिन मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा के रूप में तीन राज्यों का उदय 53 साल पहले हुआ था। पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा को अलग राज्य का दर्जा मिला था। पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन) अधिनियम 1971 के तहत मणिपुर, मेघालय और त्रिपुरा को 21 जनवरी 1972 को अलग राज्य बनाया गया था।
आज हम बात कर रहे हैं मणिपुर की। एक ही दिन जन्मे भारत के इन तीन राज्यों में से फिलहाल यदि दु:ख किसी के हिस्से में आया है, तो वह मणिपुर है। वैसे तो ईसवी युग के प्रारम्भ होने से पहले से ही मणिपुर का लम्बा और शानदार इतिहास है। यहां के राजवंशों का लिखित इतिहास सन 33 ई. में पाखंगबा के राज्याभिषेक के साथ शुरू होता है। उसने इस भूमि पर प्रथम शासक के रूप में 120 वर्षों (33-154 ई ) तक शासन किया। उसके बाद अनेक राजाओं ने मणिपुर पर शासन किया। आगे जाकर मणिपुर के महाराज कियाम्बा ने 1467, खागेम्बा ने 1597, चराइरोंबा ने 1698, गरीबनिवाज ने 1714, भाग्यचन्द्र (जयसिंह) ने 1763, गम्भीर सिंह ने 1825 को शासन किया। इन जैसे महावीर महाराजाओं ने शासन कर मणिपुर की सीमाओं की रक्षा की। मणिपुर की स्वतंत्रता और संप्रभुता 19वीं सदी के आरम्भ तक बनी रही। उसके बाद सात वर्ष (1819 से 1825 तक) बर्मी लोगों ने यहां पर कब्जा करके शासन किया। 24 अप्रैल, 1891 के खोंगजोम युद्ध (अंग्रेज-मणिपुरी युद्ध ) हुआ, जिसमें मणिपुर के वीर सेनानी पाउना ब्रजबासी ने अंग्रेजों के हाथों से अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए वीरगति प्राप्त की। इस प्रकार 1891 में मणिपुर ब्रिटिश शासन के अधीन आ गया और 1947 में शेष देश के साथ स्वतंत्र हुआ। 1947 में जब अंग्रेजों ने मणिपुर छोड़ा तब से मणिपुर का शासन महाराज बोधचन्द्र के कन्धों पर पड़ा। 21 सितम्बर 1949 को हुई विलय संधि के बाद 15 अक्टूबर 1949 से मणिपुर भारत का अंग बना। 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू होने पर यह एक मुख्य आयुक्त के अधीन भारतीय संघ में भाग ‘सी’ के राज्य के रूप में शामिल हुआ। बाद में इसके स्थान पर एक प्रादेशिक परिषद गठित की गई जिसमें 30 चयनित तथा दो मनोनीत सदस्य थे।इसके बाद 1962 में केंद्रशासित प्रदेश अधिनियम के अंतर्गत 30 चयनित तथा तीन मनोनीत सदस्यों की एक विधानसभा स्थापित की गई। 19 दिसंबर,1969 से प्रशासक का दर्जा मुख्य आयुक्त से बढ़ाकर उपराज्यपाल कर दिया गया। 21 जनवरी, 1972 को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और 60 निर्वाचित सदस्यों वाली विधानसभा गठित की गई। इसमें 19 अनुसूचित जनजाति और 1 अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। राज्य में लोकसभा में दो और राज्यसभा में एक प्रतिनिधि है। मैतई मणिपुर के मूल निवासी हैं। जो यहाँ के घाटी क्षेत्र में रहते हैं। इनकी भाषा मेइतिलोन है, जिसे मणिपुरी भाषा भी कहते हैं। यह भाषा 1992 में भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ी गई है और इस प्रकार इसे एक राष्ट्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त हो गया है। यहाँ के पर्वतीय क्षेत्रों में नागा व कुकी  जनजाति के लोग रहते हैं। मणिपुरी को एक संवेदनशील सीमावर्ती राज्य माना जाता है।
अब आते हैं उस मणिपुर पर जो वैमनस्यता की आग में जल रहा है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख डॉ. मोहन भागवत भी इसको लेकर चिंता जता चुके हैं। और देश में पूरा विपक्ष तो मानो मणिपुर को राजनीति का अखाड़ा बनाए है। पर केंद्र सरकार अपने तरीके से मणिपुर की स्थिति पर नजर रखे है। नए साल में 53 साल पूरा करने के सात दिन पहले यानि 14 जनवरी की रात को मणिपुर में इस साल का पहला हमला हुआ, जब संदिग्ध उग्रवादियों ने इंफाल वेस्ट के कंगचुप फयेंग गांव में ड्रोन से बमबारी की। यह हमला उसी गांव में हुआ, जिसे पिछले साल नवंबर में भी निशाना बनाया गया था। बमबारी घटनास्थल एक अस्थायी पुलिस बैरक और संतरी पोस्ट से मात्र 15 फीट की दूरी पर था। पुलिस का कहना है कि दोनों बम ड्रोन से गिराए गए, और यह हमला करीब रात 9:30 बजे तीन मिनट के अंतराल में हुआ। अगर ये बम आबादी वाले क्षेत्र में गिरते, तो भारी जनहानि हो सकती थी। 15 जनवरी को राज्य और केंद्रीय सुरक्षा बलों ने बिष्णुपुर जिले के ऐगेजांग और लैमराम उयोक चिंग के बाहरी क्षेत्रों में बड़ी मात्रा में हथियार और गोला-बारूद बरामद किए। इस ऑपरेशन में मणिपुर पुलिस कमांडो और 33वीं असम राइफल्स की टुकड़ी ने भाग लिया। बरामद हथियारों में एक सेल्फ-लोडिंग राइफल, एक स्नाइपर राइफल, 36 ग्रेनेड और एक मोर्टार ट्यूब लॉन्चर शामिल हैं। यह ऑपरेशन खुफिया रिपोर्ट के आधार पर किया गया, जिसमें उग्रवादियों और छुपे हुए हथियारों की जानकारी दी गई थी। मणिपुर पुलिस और सुरक्षा बलों ने इस घटना को लेकर सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी कर दी है।
मेइती संगठन ने केंद्र सरकार से अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए राज्य में राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) लागू करने की मांग की है। साथ ही भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने का भी आग्रह किया। उनका कहना है कि म्यांमार से अवैध हथियारों और मादक पदार्थों की तस्करी राज्य में संघर्ष के मुख्य मुद्दे बने हुए हैं। खैर मूल मुद्दा यही है कि मणिपुर में मई 2023 से कुकी-मैतेई समुदाय के बीच हिंसा भड़क गई थी। तब से लेकर आज तक सरकार और प्रशासन उसको शांत करने की कवायद में जुटी है। हाल के दिनों में हिंसा की घटनाओं में काफी हद तक कमी हुई है। इसी बीच 19 जनवरी को मेइती संगठन ने केंद्र सरकार से अवैध प्रवासियों की पहचान करने के लिए राज्य में एनआरसी लागू करने की मांग की है। संगठन के समन्वयक सोमेंद्रो थोकचोम ने कहा, ‘इस महीने की शुरुआत में कडांगबंद में हुए बम धमाके के बावजूद केंद्र ने कोई कार्रवाई नहीं की। यह दर्शाता है कि राज्य के लोगों को देश का नागरिक नहीं माना जा रहा है।’ संदिग्ध उग्रवादियों ने 14 जनवरी को मणिपुर के इंफाल पश्चिम जिले के कडांगबंद इलाके में बम धमाका किया था। थोकचोम ने कहा, ‘यह संघर्ष तभी समाप्त होगा जब केंद्र निश्चित कार्रवाई और कुकी उग्रवादियों के खिलाफ सैन्य कार्रवाई शुरू करेगा।’ इंफाल घाटी के कई नागरिक समाज संगठनों ने सरकार से कुकी जो उग्रवादियों के खिलाफ कार्रवाई करने की भी मांग की ताकि राज्य में जारी संघर्ष को समाप्त किया जा सके।
इतनी सी कहानी यह बताने के लिए काफी है कि मणिपुर में मैतेई-कुकी संघर्ष उबाल पर है। राजनैतिक दलों की अपनी सोच और सीमाएं हैं। पर यदि कोई जल रहा है तो वह मणिपुर है। यदि कोई घुट-घुटकर, तड़प-तड़पकर जीने को मजबूर है तो वह मणिपुर है। यदि कोई बलात्कार, हत्याओं और बर्बरता का शिकार हो रहा है तो वह मणिपुर है। यदि कोई अपनी बदहाली पर रो रहा है, चीख रहा है तो वह मणिपुर है। गुनाह किसने किए,क्या किए और क्यों किए, यह नहीं पता, पर गुनहगार बन कोई सजा भुगत रहा है तो वह मणिपुर है। फिलहाल तो यही कहा जा सकता है कि पहाड़ों, जलस्रोतों और प्राकृतिक सुंदरता को समेटे संघीय भारत का यह 53 साल का मणिपुर शांति और खुशहाली को तरस रहा है। मणिपुर का शाब्दिक अर्थ ‘आभूषणों की भूमि’ है, पर अब यह ‘कष्टों की भूमि’ बन गया है। दु:खों में डूबे इस 53 साल के मणिपुर को…अब बस अच्छे दिनों का इंतजार है…।

कौशल किशोर चतुर्वेदी

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। दो पुस्तकों “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।

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