मलमास कब से शुरू हो रहे हैं, जानें इस मास में वर्जित कार्य *
मलमास 18 सितंबर 2020 से आरंभ हो रहे हैं. मलमास को अधिक मास, पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है. धर्म कर्म की दृष्टि से मलमास का विशेष महत्व है. मलमास में किन कार्यों को नहीं करना चाहिए, आइए जानते हैं.
मलमास में किसी भी शुभ और नए कार्य को नहीं किया जाता है. पंचांग के अनुसार मलमास प्रत्येक तीन वर्ष में एक बार आता है. मलमास को अधिक मास और पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है. मलमास में शादी विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन आदि जैसे शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं. शुभ कार्यो को मलमास मे निषेध माना गया है.
मलमास में पूजा पाठ, व्रत, उपासना, दान और साधना को सर्वोत्तम माना गया है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मलमास में भगवान का स्मरण करना चाहिए. अधिक मास में किए गए दान आदि का कई गुणा पुण्य प्राप्त होता है. इस मास को आत्म की शुद्धि से भी जोड़कर देखा जाता है. अधिक मास में व्यक्ति को मन की शुद्धि के लिए भी प्रयास करने चाहिए. आत्म चिंतन करते मानव कल्याण की दिशा में विचार करने चाहिए. सृष्टि का आभार व्यक्त करते हुए अपने पूर्वजों का भी धन्यवाद करना चाहिए. ऐसा करने से जीवन में सकारात्मकता को बढ़ावा मिलता है.
कब तक है मलमास
मलमास 18 सितंबर से आरंभ हो रहा है और 16 अक्टूबर को समाप्त होगा. 17 अक्टूबर से शरदीय नवरात्रि का पर्व आरंभ हो जाएगा.
मलमास का अर्थ
मलमास का संबंध ग्रहों की चाल से है. पंचांग के अनुसार मलमास या अधिक मास का आधार सूर्य और चंद्रमा की चाल से है. सूर्य वर्ष 365 दिन और करीब 6 घंटे का होता है, वहीं चंद्र वर्ष 354 दिनों का माना जाता है. इन दोनों वर्षों के बीच 11 दिनों का अंतर होता है. यही अंतर तीन साल में एक महीने के बराबर हो जाता है. इसी अंतर को दूर करने के लिए हर तीन साल में एक चंद्र मास आता है. इसी को मलमास कहा जाता है.
मलमास में भगवान विष्णु की पूजा करें
मलमास में भगवान विष्णु की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है. इस समय चतुर्मास चल रहा है. चातुर्मास में भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और विश्राम करने के लिए पाताल लोक में चले जाते हैं. इस दौरान भगवान विष्णु की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
*माँ शारदा ज्योतिषधाम अनुसंधान संस्थान इंदौर
पंडित दिनेश गुरुजी
9977794111
इन सबको कभी पृथ्वी पर न रखें।
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?–इक्कीस वस्तुओं को सीधे पृथ्वी पर रखना वर्जित होता है।ये वस्तुयें पृथ्वी की ऊर्जा को अव्यवस्थित करती हैं और उस स्थानको अशुभ बनातीहैं।येवस्तुयें हैं -१-मोती २-शुक्ति (सीपी)३- शालग्राम ४- शिवलिंग५-देवी मूर्ति ६- शंख ७-दीपक ८-यन्त्र ९-माणिक्य १०-हीरा११- यज्ञसूत्र (यज्ञोपवीत)१२-फूल १३-पुष्पमाला १४- जपमाला १५- पुस्तक१६ -तुलसीदल१७-कर्पूर१८-स्वर्ण१९-गोरोचन२०- चंदन २१-शालग्राम का स्नान कराया अमृत जल ।
इन सभी वस्तुओं को किसी आधार पर रख तभी उस पर इनको स्थापित कर पूजित किया जाता है।पृथ्वी पर अक्षत, आसन, काष्ठ या पात्र रख कर इनको उस पर रखते हैं—
मुक्तां शुक्तिं हरेरर्चां शिवलिंगं शिवां तथा ।
शंखं प्रदीपं यन्त्रं च माणिक्यं हीरकं तथा ।।
यज्ञसूत्रं च पुष्पं च पुस्तकं तुलसीदलम्
जपमालां पुष्पमालां कर्पूरं च सुवर्णकम् ।।
गोरोचनं च चन्दनं च शालग्रामजलं तथा ।
एतान् वोढुमशक्ताहं क्लिष्टा च भगवन् शृणु।।
अतः इन इक्कीस वस्तुओं को सजगता पूर्वक किसी न किसी वस्तुके ऊपर रखना चाहिए।प्रायः दीपकको लोग अक्षतपुंज पर रखतेहैं।पुस्तक को टेबल या मेज पर रखते हैं। शालग्राम और देवी की मूर्ति को पीठिका पर रखते हैं।
शंख को त्रिपादी पर रखते हैं।स्वर्ण को डिब्बी में रखते हैं।
फूल,फूलमाला को पुष्पपात्र में तथा यग्योपवीत को किसी पत्र पर रखते हैं।
।। ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं वसुधायै नमः ।।
माँ शारदा ज्योतिषधाम अनुसंधान संस्थान इंदौर
पंडित दिनेश गुरुजी
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