अनन्त चतुर्दशी: अनंत पुण्यो के फलो की प्राप्ति –
भाद्रपद मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी कहा जाता है। इसे अनंत चौदस के नाम से भी जाना जाता है तथा हिंदू धर्म में इसका बड़ा महत्व है। इस व्रत में भगवान विष्णु के अनंत रूप की षोडश उपचार से पूजा होती है। जिसके पश्चात् बाजू पर अनंत सूत्र बांधा जाता हैं। अनंत सूत्र में चौदह गाँठ होती हैं और यह कपास या रेशम से बना हुआ होता हैं।
इस पर्व का महत्व और भी ज़्यादा इसलिए है क्यूँकि अनंत चतुर्दशी के दिन श्री गणेश जी का विसर्जन भी किया जाता है।
अनन्त चतुर्दशी का महत्व
महाभारत काल से अनंत चतुर्दशी व्रत की शुरुआत हुई। सृष्टि के आरम्भ में अनंत भगवान ने चौदह लोकों नाम स्वरूप: तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल, रसातल, पाताल, भू, भुव: , स्व: , जन, तप, सत्य, और मह की रचना करी थी।
भगवान स्वयं चौदह रूपों में, इन लोकों का पालन और रक्षा करने के लिए प्रकट हुए थे। तथास्वरूप अनंत प्रतीत होने लगे।
भारत के कई राज्यों में इस व्रत का प्रचलन हैं। यह व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और अनंत फल देने वाला माना गया है। धन धान्य, सुख सम्पदा और संतान आदि की कामना से यह व्रत किया जाता हैं। व्रत रखने के साथ विष्णु सहस्त्रनाम स्त्रोत का पाठ करने से समस्त मनोकामना पूर्ण होती हैं।
संदर्भित पौराणिक कथाएँ
महाभारत की कथा के अनुसार कौरवों ने छल से जुए में पां डवों को हरा दिया था । इसके बाद पांडवों को अपना राजपाट त्याग कर वनवास जाना पड़ा । इस दौरान पांडवों ने बहुत कष्ट उठाए । एक दिन भगवान श्री कृष्ण पांडवों से मिलने वन पधारे । भगवान श्री कृष्ण को देखकर युधिष्ठिर ने कहा कि , हे मधुसूदन हमें इस पीड़ा से निकलने का और दोबारा राजपाट प्राप्त करने का उपाय बताएं । युधिष्ठिर की बात सुनकर भगवान ने कहा आप सभी भाई पत्नी समेत भाद्र शुक्ल चतुर्दशी का व्रत रखें और अनंत भगवान की पूजा करें । इस पर युधिष्ठिर ने पूछा कि , अनंत भगवान कौन हैं ? इनके बारे में हमें बताएं । इसके उत्तर में श्री कृष्ण ने कहा कि यह भगवान विष्णु के ही रूप हैं । चतुर्मास में भगवान विष्णु शेषनाग की शैय्या पर अनंत शयन में रहते हैं । अनंत भगवान ने ही वामन अवतार में दो पग में ही तीनों लोकों को नाप लिया था । इनके ना तो आदि का पता है न अंत का इसलिए भी यह अनंत कहलाते हैं अत : इनके पूजन से आपके सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे । इसके बाद युधिष्ठिर ने परिवार सहित यह व्रत किया और पुन : उन्हें हस्तिनापुर का राज – पाट मिला ।
– श्रीमती स्नेहा साकेत