गपशप
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किसी ने कहा है कि हम खुशकिस्मत हैं कि हम दोस्त चुन सकते हैं क्योंकि बाकी रिश्ते तो हमें बने हुए ही मिलते हैं , और इन रिश्तों में एक रिश्ता बॉस और अधीनस्थ का भी होता है | सब जानते हैं की बॉस ऊपर वाले की मर्जी से ही मिलता है और जो मेरे मित्र नौकरी पेशा हैं वे इसका महत्व बखूबी समझते हैं | इस सम्बन्ध में मुझे एक बहुत पुरानी बात याद आ रही है, तब मैं राजनांदगांव की डोंगरगढ़ तहसील में एस.डी.एम हुआ करता था | संभाग में नए आयुक्त के रूप में श्री शेखर दत्त की पदस्थापना हुई | उन दिनों नए पदस्थ हुए कमिश्नर से मिलने जाने का रिवाज हुआ करता था इसी सिलसिले में जिले से एक बैठक में कुछ अधिकारी मीटिंग के सिलसिले में रायपुर गए थे श्री जी.एस. मिश्र भी उनमें से एक थे | मिश्रा जी उन दिनों कवर्धा अनुविभाग के एस.डी.एम थे(कवर्धा अब जिला बन चुका है और श्री मिश्र छत्तीसगढ़ राज्य के जनसंपर्क आयुक्त से सेवानिवृत हो चुके हैं )| मिश्रा साहब से मेरी मुलाक़ात अगली राजस्व अधिकारी बैठक में हुई तो मैंने उत्सुकता वश पूछा कि सर आप रायपुर गए थे? उन्होंने कहा हाँ | मैंने कहा, कमिश्नर साहब से मुलाकात हुई? उन्होंने कहा बिलकुल , मैंने फिर कहा, कैसे हैं नए कमिश्नर साहब, उन्होंने मुझे शरारत से देखा और कहा, क्यूँ पसंद नहीं आये तो बदल दोगे क्या ? मैं झेंप गया तो फिर हंसने लगे , वे मुझसे बहुत स्नेह करते थे , बोले, माँ-बाप और बॉस ऊपर वाले ने तय करके भेजे हैं, वे जैसे होते हैं अच्छे ही होते हैं |
तो ये बात तो तय हो ही चुकी है कि, बॉस हमेशा बढ़िया ही होता है , पर मुसीबत हम लोगों की नौकरीनुमा जिंदगी में तब आती है जब ऊपर के हाकिमों की आपस में नहीं बनती, या उनकी ओर से अंतर्विरोधी आदेश दिए जाने लगें | ऐसे में मातहतों की मुसीबत हो जाती है की किसकी माने और कौनसी माने | मैं जब सागर जिले में पदस्थ हुआ तब तो वहां इसका अनुभव इस तीव्रता से कर चुका हूँ जहाँ कमिश्नर से मिलने भी कलेक्टर से पूछ कर ही जाना पड़ता था |
संयोग है कि जहां आज मैं कमिश्नर हूँ वहीं की घटना आज याद आ रही है | तब मैं उज्जैन में ही एस.डी.एम होने के साथ-साथ महाकाल मंदिर का प्रशासक भी था | मंदिर में तब एक भगदड़ में हुई दुर्घटना के कारण चौंतीस लोगों की म्रत्यु हो गयी थी और इस घटना के लिए महाकाल जांच आयोग भी गठित हो चुका था | मंदिर की सुरक्षा के मद्देनज़र ये निर्णय लिया गया कि प्रत्येक दर्शनार्थी , चाहे वह सामान्य हो या विशिष्ट, उसे लाइन लगा कर ही दर्शन करने होंगे | उन दिनों उज्जैन में कलेक्टर श्री विनोद सेमवाल हुआ करते थे, जो यूँ तो मितभाषी और बेहद सरल तबीयत के आदमी थे, परन्तु उनके रहने पर ये एक बहुत बड़ा आराम अधीनस्थों को था, कि जो बॉस ने निर्णय लिया, यदि आप उसका अक्षरसः पालन कर रहे हो तो फिर आपको और किसी की परवाह नहीं करनी है, बाकी की बलाएँ वे अपने सर ही रखते थे | मंदिर में उस दिन श्रावण सोमवार के साथ साथ नागपंचमी का त्यौहार भी आया था | मंदिर की व्यवस्थाओं को देखने के लिए ऐसे अवसरों पर मैं मंदिर में ही दिन-रात रुका करता था | आने वाला ये त्यौहार कुछ इस तरह का था की मुझे अगले अड़तालीस घंटे मंदिर में ही गुज़ारने थे | इस कारण मैं रात को करीब आठ बजे अपने घर खाना खाने और रुकने की तय्यारी के लिए सामान आदि लेने गया हुआ था | रात को करीब दस बजे मैं मंदिर में लौटा तो मंदिर के कर्मचारियों ने बताया कि कमिश्नर साहब का फ़ोन दो-तीन बार आ चुका है | उन दिनों मोबाइल तो थे नहीं, मैंने तुरंत लैंडलाइन टेलीफोन से आयुक्त को फ़ोन लगाया | श्री दाहिमा उन दिनों हमारे आयुक्त हुआ करते थे | कमिश्नर साहब ने फ़ोन लगते ही डांट सुनाई, कहा, कहाँ थे तुम,कब से फ़ोन लगा रहा हूँ ? मैंने क्षमा मांगते हुए बताया की मैं घर अपना सामान लेने गया था | बोले अच्छा ठीक है, दरअसल अनुराधा पौड़वाल(जो प्रसिद्ध गायिका हैं) जी आई हुईं हैं और सुबह भस्मारती दर्शन उन्हें कराना है | मैं कुछ हिचकिचाया , कलेक्टर ने कह रखा था की कोई व्ही आइ पी दर्शन नहीं होंगे और कमिश्नर साहब इसी के लिए आदेश कर रहे हैं | कुछ क्षण तो मैं चुप रहा , लेकिन बोलना ज़रूरी था, और कहा, माफ़ कीजिये, वी.आई.पी दर्शन तो बंद हैं | उन्होंने फिर कहा, अरे वो बहुत प्रसिद्ध गायिका हैं | मैंने कहा,जी हाँ, मैं जानता हूँ , लेकिन कलेक्टर साहब का ये आदेश है कि कोई वी.आई.पी दर्शन नहीं होंगे, जिसे दर्शन करना है, वो लाइन में लगें | उन्होंने थोड़ा नाराज़गी से कहा, तुम्हें मालूम है मैं कौन बोल रहा हूँ ? मैंने विनम्रतापूर्वक कहा जी हाँ सर, लेकिन मैं फिर भी इन्हें दर्शन नहीं करा सकता | उनने कहा की आखिर ऐसा क्यूँ ? तो मैंने उन्हें बताया कि आज दिनभर से हमने कई राजनीतिक हस्तिओं और कई वरिष्ठ अधिकारियों को लाइन से ही दर्शन की सुविधा दी है, स्वयं जस्टिस वर्मा जो की आयोग के अध्यक्ष हैं, ने इसकी निगरानी की है और पूरी जनता और प्रेस ये देख रही है की हम निष्पक्षता बरत पा रहें हैं या नहीं | इसमें अब हम कोई अपवाद करेंगे तो फिर ये व्यवस्था कायम नहीं रख पाएँगे | वो अचानक ठन्डे हुए और उन्होंने आश्चर्य भरे स्वरों में कहा, कि इतने विशिष्ट लोगों को तुम लोगों ने लाइन में लगवा के दर्शन करवाए ? मैंने कहा जी हाँ | वे बोले तब ठीक है भई, जो तुम्हारी व्यवस्था है उसी हिसाब से करो | उस रात अनुराधा पौडवाल जी ने लाइन में लग कर ही भस्मारती दर्शन किये थे | इस घटना से हम भी दुखी थे और कुछ दिनों बाद जब मोहन गुप्त साहब नए कमिश्नर हुए तो उन्होंने बीच का रास्ता सुझाया और तब ही व्ही आई पी दर्शन के नाम पर शीघ्र दर्शन के तहत नई व्यवस्था लाई गयी जिसका शुल्क १०१ रूपये लेने की शुरुआत की गयी।
( आनंद कुमार शर्मा- संभागायुक्त उज्जैन)