राज-काज
* दिनेश निगम ‘त्यागी’
0 स्वस्थ राजनीति के वाहक ‘ शिव – कमल ‘….
– प्रदेश में स्वस्थ राजनीति के लिए कुछ जोड़ियां चर्चित रही हैं। शिवराज सिंह चौहान एवं कमलनाथ भी स्वस्थ राजनीति के वाहक बनकर ऐसी जोड़ियों में शुमार होने की कोशिश में हैं। जोड़ियों में अर्जुन सिंह एवं सुंदरलाल पटवा के खास चर्चे होते हैं। दोनों मुख्यमंत्री रहे हैं और नेता प्रतिपक्ष भी। पटवा विपक्ष के नेता के नाते अर्जुन सिंह सरकार पर तगड़ा हमला बोलते थे। बावजूद इसके दोनों के बीच संबंध इतने दोस्ताना थे कि कोई साथ देख ले तो पता करना कठिन कि ये अलग-अलग दलों के नेता हैं। दिग्विजय सिंह एवं विक्रम वर्मा की जोड़ी भी कुछ ऐसी ही थी। कई बार इनके दल के लोग ही आरोप लगाने लगते थे कि ये एक दूसरे से मिले हुए हैं। पर ऐसा नहीं था। राजनीतिक तौर पर दोनों का स्टेंड स्पष्ट होता था। इसी रास्ते पर शिवराज सिंह चौहान एवं कमलनाथ की जोड़ी बढ़ती दिख रही है। कमलनाथ मुख्यमंत्री थे तो कहा जाता था, शिवराज उनसे मिले हुए हैं। शिवराज मुख्यमंत्री हैं तो कमलनाथ उनसे मिलने सीएम हाउस पहुंच गए। इस मुलाकात पर भी सवाल उठे पर दोनों के रुख से साफ है कि राजनीतिक तौर पर ये एक दूसरे को नहीं बख्शते। स्वस्थ राजनीति के लिए नई पीढ़ी को ऐसी जोड़ियों से सबक लेना चाहिए।
0 दोनों मंत्री कांग्रेसी, फंस गई भाजपा….
– इसे कहते हैं ‘सिर मुड़ाते ओले पड़े’। बागियों की मदद से सरकार बनाने के ‘साइड इफेक्ट’ भाजपा के सामने आने लगे हैं। चावल घोटाले में भाजपा सरकार फंस गई है। हालात ‘न निगलते, न उगलते’ वाले हैं। कार्रवाई के मसले पर सरकार असहाय है। आरोप है कि दो जिलों में सरकार की ओर से लोगों को ऐसा चावल दिया गया जो जानवरों के भी खाने लायक नहीं है। 2019 में जब खरीद हुई थी तब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी। विभाग के मंत्री थे प्रद्युम्न सिंह तोमर। अब जब घोटाला पकड़ा गया तब मंत्री हैं बिसाहूलाल सिंह। मजेदार बात यह है कि ये दोनों कांग्रेसी अब भाजपा में हैं, दोनों सरकार में मंत्री भी। कांग्रेस घोटाले की सीबीआई जांच और दोषी मंत्रियों की बर्खास्तगी की मांग कर रही है। भाजपा ऐसा कर नहीं सकती क्योंकि इन्हीं बागियों की बदौलत वह सत्ता में आई है। लिहाजा, दोष सिद्ध करने के लिए बलि के बकरे ढूंढ़े जा रहे हैं। ये तय भी हो गए हैं। एक, विभाग के अफसर औद दूसरे मिल मालिक। इनके खिलाफ कार्रवाई शुरू हो गई है। ये बागी कांग्रेस में ही होते तो अब तक इनके खिलाफ प्रकरण दर्ज हो चुका होता। यही तो राजनीति है।
0 बदलाव की बयार में उड़ रहे दिग्गज….
– भाजपा में चल रही बदलाव की बयार से दिग्गजों का पत्ते की तरह उड़ने का सिलसिला जारी है। ऐसा सरकार और संगठन दोनों में हो रहा है। शुरुआत भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष से हुई थी, जब वरिष्ठों को दरकिनार कर पहली बार सांसद और प्रदेश महामंत्री बने युवा चेहरे वीडी शर्मा को जवाबदारी सौंप दी गई। प्रदेश की सत्ता में भाजपा की वापसी हुई तो डा. गौरीशंकर बिसेन, राजेंद्र शुक्ला, अजय विश्नोई जैसे दर्जनों दिग्गजों को मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। अपेक्षाकृत नए चेहरों को मौका दिया गया। असंतोष अब तक थमा भी नहीं कि संगठन में फिर बदलाव की बयार देखने को मिल गई। पांच नए प्रदेश महामंत्रियों की नियुक्ति हुई। इनमें एक भी पार्टी का जाना माना चेहरा नहीं है। महामंत्रियों में रणवीर सिंह रावत भाजपा किसान मोर्चे के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। हरिशंकर खटीक राज्य मंत्री रहे हैं। शरतेंदु तिवारी पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह को हराने के कारण चर्चित हुए थे। कविता पाटीदार नया महिला चेहरा हैं। भगवान दास सबनानी की पहचान उमा भारती का खास होने के नाते है। इन नियुक्तियों से फिर कई दिग्गज नाराज हैं।
0 डीएम की पीएम को शिकायत के मायने….
– विधानसभा चुनाव के बाद प्रदेश में अजब-गजब राजनीति देखने को मिल रही है। पहले कांग्रेस इसकी अगुवा थी, अब भाजपा पीछे नहीं है। इसे भाजपा की अंदरूनी अंतर्कलह ही कहेंगे कि टीकमगढ़ के भाजपा सांसद वीरेंद्र खटीक छतरपुर कलेक्टर (डीएम) से नाराज हो गए तो इसकी शिकायत सीधे प्रधानमंत्री (पीएम) तक पहुंचा दी। मतलब शीशे की तरह साफ है कि सांसद को अपनी ही पार्टी की सरकार और मुख्यमंत्री पर भरोसा नहीं है। शिकायत है कि सांसद ने कलेक्टर से मिलने का समय मांगा लेकिन उन्होंने समय नहीं दिया। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को इसकी जानकारी लगी तो उन्होंने कलेक्टर को खासी फटकार लगाई। जिले के एक भाजपा विधायक राजेश प्रजापति ने सांसद द्वारा सीधे पीएम को शिकायत करने पर आपत्ति की है। अब हालात यह है कि कलेक्टर महोदय सांसद से मिलने घूम रहे हैं और सांसद महोदय मिलने का समय नहीं दे रहे। वीरेंद्र खटीक की गिनती शालीन और अच्छे सांसदों में होती है। वे केंद्र में मंत्री रह चुके हैं। ऐसे में कोई कलेक्टर उन्हें मिलने का समय न दे, यह अजीब लगता है पर खटीक की माने तो सच यही है।
0 बेहतर ‘मैनेजमेंट’ से आगे बढ़ते ‘कमल’….
– भाजपा सरकार के पंद्रह साल के कार्यकाल में मुख्यमंत्री उमा भारती, बाबूलाल गौर रहे हों या शिवराज सिंह चौहान, सभी के कुछ खास मंत्री चर्चा में रहे। ये सरकार का पक्ष रखते थे, विभिन्न मसलों में प्रतिक्रिया देते थे और अपने मीडिया मैनेजमेंट की वजह से अखबारों में जगह पाते थे। उमा के कार्यकाल में कैलाश विजयवर्गीय को यह स्थान हासिल था, गौर साहब के समय उमाशंकर गुप्ता को। शिवराज सिंह चौहान के तीन कार्यकालों में कैलाश विजयवर्गीय, नरोत्तम मिश्रा, भूपेंद्र सिंह इन भूमिकाओं में रहे। सुर्खियों में रहने की वजह यह भी रही कि ये मुख्यमंत्री के नजदीक मंत्रियों में गिने जाते थे। पहली बार एक ऐसा मंत्री अपने मैनेजमेंट एवं सक्रियता की वजह से सुर्खियों में है जिनकी गिनती मुख्यमंत्री के खास मंत्रियों में नहीं होती। एक समय दोनों के बीच छत्तीस का आंकड़ा था। ये नरोत्तम मिश्रा को टक्कर देते नजर आते हैं और शिवराज के सबसे खास भूपेंद्र सिंह से आगे निकलते दिखाई पड़ रहे हैं। ये हैं प्रदेश के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री कमल पटेल। अपने विभाग के कामों के प्रचार के साथ ये विपक्ष के आरोपों का जवाब भी नरोत्तम की तर्ज पर देते दिखते हैं। इसकी वजह इनके मीडिया सलाहकार को भी माना जा रहा है।
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