आओ ‘पन्नाधाय’ को दिल में बसाते हैं आज…
आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। महिला दिवस के बारे में कहा जाता है कि रूस में 1917 की क्रांति के दौरान महिलाओं ने बड़ी संख्या में प्रदर्शन किया। उन्होंने युद्ध के खिलाफ आवाज उठाई और बेहतर अधिकारों की मांग की। महिलाओं के इस आंदोलन ने वहां की सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया, और उन्हें वोटिंग का अधिकार मिला। यह प्रदर्शन 8 मार्च को हुआ था, इसलिए इस तारीख को महिला दिवस के रूप में चुना गया। बाद में, संयुक्त राष्ट्र ने 1977 में आधिकारिक रूप से 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस घोषित कर दिया। तब से लेकर अब तक, यह दिन महिलाओं के सम्मान और उनके हक की लड़ाई का प्रतीक बन चुका है। हर साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस एक खास थीम के साथ मनाया जाता है। साल 2025 की थीम ‘एक्सीलरेट एक्शन’ रखी गई है, जिसका अर्थ है तेजी से कार्य करना।
पर हम बात करते हैं पन्ना धाय की। 8 मार्च 2025 यानि आज इनकी 514वीं जयंती है। इनके त्याग की बराबरी कोई और नहीं कर सकता। पन्नाधाय ने मेवाड़ के कुंवर राणा उदय सिंह को बचाने के लिए अपने पुत्र चंदन का सहर्ष बलिदान दिया। इसी बलिदान के कारण राणा उदय सिंह के पुत्र महाराणा प्रताप सिंह को इतिहास में हल्दी घाटी के शेर के रूप में जाना जाता है। पन्नाधाय को सर्वोत्कृष्ट बलिदान के लिए जाना जाता है। पन्ना धाय, राणा सांगा के पुत्र राणा उदयसिंह की धाय माँ थी। वह एक खींची चौहान राजपूत थी, इसी कारण उन्हें पन्ना खींचन के नाम से भी जाना गया है। राणा साँगा के पुत्र उदयसिंह को माँ के स्थान पर दूध पिलाने के कारण पन्ना ‘धाय माँ’ कहलाई थी। रानी कर्णावती ने बहादुरशाह द्वारा चित्तौड़ पर हमले में हुए जौहर में अपना बलिदान दे दिया था और उदयसिंह के लालन पालन का भार पन्ना को सौंप दिया था। वहीं दासी पुत्र बनवीर चित्तौड़ का शासक बनना चाहता था। बनवीर एक रात महाराणा विक्रमादित्य की हत्या करके उदयसिंह को मारने के लिए उसके महल की ओर चल पड़ा। एक बारी (पत्तल आदि बनाने वाले) ने पन्ना खींची को इसकी सूचना दी। पन्ना राजवंश और अपने कर्तव्यों के प्रति सजग थी व उस पर उदयसिंह की रक्षा का भार था। उसने उदयसिंह को एक बांस की टोकरी में सुलाकर उसे पत्तलों से ढककर एक बारी जाति की महिला के साथ चित्तौड़ से बाहर भेज दिया। बनवीर को धोखा देने के उद्देश्य से अपने पुत्र को जो कि उदयसिंह की ही आयु का था, उदयसिंह के पलंग पर सुला दिया। बनवीर रक्तरंजित तलवार लिए उदयसिंह के कक्ष में आया और उसके बारे में पूछा। पन्ना ने उदयसिंह के पलंग की ओर संकेत किया जिस पर उसका पुत्र सोया था। बनवीर ने पन्ना के पुत्र को उदयसिंह समझकर मार डाला। पन्ना अपनी आँखों के सामने अपने पुत्र के वध को अविचलित रूप से देखती रही। बनवीर को पता न लगे इसलिए वह आंसू भी नहीं बहा पाई। बनवीर के जाने के बाद अपने मृत पुत्र की लाश को चूमकर राजकुमार उदयसिंह को सुरक्षित स्थान पर ले जाने के लिए निकल पड़ी। पन्ना और उसके विश्वासपात्र सेवक उदयसिंह को लेकर मुश्किलों का सामना करते हुए कुम्भलगढ़ पहुँचे। कुम्भलगढ़ का किलेदार आशा देपुरा था, जो राणा सांगा के समय से ही इस किले का किलेदार था। आशा की माता ने आशा को प्रेरित किया और आशा ने उदयसिंह को अपने साथ रखा। उस समय उदयसिंह की आयु 15 वर्ष की थी। मेवाड़ी उमरावों ने उदयसिंह को 1536 में महाराणा घोषित कर दिया और उदयसिंह के नाम से पट्टे-परवाने निकलने आरंभ हो गए थे। उदयसिंह ने 1540 में चित्तौड़ पर अधिकार किया।
मेवाड़ के इतिहास में जिस गौरव के साथ प्रात: स्मरणीय महाराणा प्रताप को याद किया जाता है, उसी गौरव के साथ पन्ना धाय का नाम भी लिया जाता है, जिसने स्वामिभक्ति को सर्वोपरि मानते हुए अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दे दिया था। इतिहास में पन्ना धाय का नाम स्वामिभक्ति के लिये प्रसिद्ध है। विश्व इतिहास में पन्ना के त्याग जैसा दूसरा दृष्टांत अनुपलब्ध है।अविस्मरणीय बलिदान, त्याग, साहस, स्वाभिमान एवं स्वामिभक्ति के लिए पन्नाधाय का नाम इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। कई जाने माने लेखकों ने पन्ना पर आधारित कविताएँ और नाटक लिखे है। भारत रत्न गोविंद वल्लभ पंत द्वारा लिखित नाटक राजमुकुट में पन्ना के बलिदान का बहुत अच्छा चित्रण किया गया। डाक्टर राजकुमार वर्मा ने पन्ना पर आधारित एकांकी दीपदान लिखी है, जो कि कई पाठ्यक्रमों में सम्मिलित है।वीरांगना पन्ना, 1934 में हर्षदराय सकेरलाल मेहता द्वारा बनाई गई एक मूक फिल्म है। पन्ना दाई 1945 में बनी फिल्म है। इस फिल्म के मुख्य पात्र दुर्गा खोटे, चंद्र मोहन, मीनाक्षी थे।
बलिदान के मामले में पन्नाधाय की बराबरी कोई नहीं कर सकता। ऐसी सूझबूझ का उदाहरण भी कहीं और नहीं मिलता। रूस की महिलाओं का संघर्ष अपनी जगह है। पर पन्नाधाय का बलिदान शिरोधार्य और ‘भूतो न भविष्यति’ की तरह है। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर ‘पन्नाधाय’ की जयंती पर आओ उन्हें दिल में बसाते हैं…इसी बहाने सही उन्हें याद कर हम गर्व से भर जाते हैं…।
कौशल किशोर चतुर्वेदी
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। दो पुस्तकों “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।