‘कृष्ण शिला’ से बने देश के पहले अष्टविनायक मंदिर की स्थापना की ‘गोपाल’ ने… कौशल किशोर चतुर्वेदी

‘कृष्ण शिला’ से बने देश के पहले अष्टविनायक मंदिर की स्थापना की ‘गोपाल’ ने…

‘कृष्ण शिला’ का नाम सबने सुना होगा। अयोध्या में बाल स्वरूप राम की मूर्ति ‘कृष्णशिला’ से बनी है। कर्नाटक से लाए गए ये पत्थर 2.5 अरब साल (225 करोड़ साल) पुरानी है। शास्त्रों में ब्लैक ग्रेनाइट को कृष्ण शिला (शालीग्राम) कहा जाता है। आज कृष्ण शिला की खास चर्चा इसलिए क्योंकि गढ़ाकोटा में विधायक पंडित गोपाल भार्गव ने अष्टविनायक की स्थापना की है। गणेश के अलग-अलग नाम की यह आठ मूर्तियां उसी कृष्ण शिला से निर्मित हैं, जिससे भगवान राम के बाल स्वरूप की मूर्ति निर्मित है। इसमें खास बात यह भी है कि गोपाल भार्गव अपने लंबे राजनैतिक जीवन में सैकड़ों मंदिरों की स्थापना के माध्यम बने हैं, पर पहली बार खुद यजमान बनकर उन्होंने गढ़ाकोटा गणेश मंदिर परिसर में ‘अष्टविनायक’ मंदिर की स्थापना की है। तीसरी खास बात यह है कि महाराष्ट्र में पुणे, रायगढ़, अहिल्यानगर जिलों में सात सौ किलोमीटर की दूरी पर अष्टविनायक के आठ मंदिर हैं। और यहां दुर्गम स्थानों पर बने आठ मंदिरों का दर्शन करने में श्रद्धालुओं को कम से कम तीन दिन का समय लगता है। पर अब गढ़ाकोटा धाम में श्रद्धालु ‘अष्टविनायक’ की मनोहारी मूर्तियों का दर्शन एक ही स्थान पर कर सकेंगे।
भगवान गणेश के उपासक पंडित गोपाल भार्गव को छह महीने पहले यह अंत:प्रेरणा हुई कि गढ़ाकोटा स्थित गणेश मंदिर और संस्कृत विद्यालय परिसर में अष्टविनायक की स्थापना की जाए। यह स्वप्रेरणा भी चार दशक बाद हुई। पूर्व विधायक सुधाकर राव बापट और धरमू राय के साथ पहली बार वह नब्बे के दशक में महाराष्ट्र अष्टविनायक मंदिरों में दर्शन करने गए थे और तब से यह सिलसिला जारी है। और छह माह पहले जब प्रेरणा हुई तब से अष्टविनायक की आठ मूर्तियों के निर्माण का प्रयास शुरू हुआ। मंदिरों की मूर्तियों पर शोध हुआ और श्रेष्ठतम कृष्ण शिला से जयपुर में इन आठ मूर्तियों का निर्माण संपन्न हुआ। कृष्ण शिला में सभी धातुओं का मिश्रण होने से वजन भारी हो जाता है। ऐसे हर मूर्ति का वजन साढ़े तीन क्विंटल से ज्यादा है। और कृष्ण शिला से बनी हर मूर्ति मनमोहक है। गढ़ाकोटा का प्राचीन गणेश मंदिर पहले से ही सिद्ध और श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। अब यहां पहुंचकर श्रद्धालु अष्ट विनायक मूर्तियों के दर्शन कर अपनी मनोकामना की अर्जी लगा सकेंगे। दस दिन से विधि विधान से अष्टविनायक मूर्ति स्थापना का यज्ञ विनायक चतुर्थी पर 1 फरवरी 2025 को संपन्न हुआ। इसके साथ ही पहली बार यजमान बने पंडित गोपाल भार्गव ने धर्मपत्नी रेखा भार्गव के साथ 18-18 घंटे विधि विधान से यह कार्य संपन्न कर महासंकल्प को पूरा किया।


हम महाराष्ट्र के अष्टविनायक मंदिरों के बारे में जानते हैं। अष्टविनायक एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है “आठ गणेश”। अष्टविनायक यात्रा भारत के महाराष्ट्र राज्य में पुणे शहर के आसपास स्थित आठ हिंदू मंदिरों की तीर्थयात्रा को संदर्भित करती है। आठ मंदिरों में गणेश की आठ अलग-अलग मूर्तियाँ हैं, जो एकता,समृद्धि,शिक्षा और बाधाओं को दूर करने के हिंदू देवता हैं। इनमें से प्रत्येक मंदिर की अपनी अलग किंवदंती और इतिहास है, जो प्रत्येक मंदिर में मूर्तियों की तरह एक दूसरे से अलग है। गणेश की प्रत्येक मूर्ति और उनकी सूंड का रूप एक दूसरे से अलग है। मयूरेश्वर मंदिरमोरगांव पुणे जिला, सिद्धिविनायक मंदिर सिद्धटेक अहमदनगर जिला, बल्लालेश्वर मंदिरपाली रायगढ़ जिला, वरदविनायक मंदिर महाड रायगढ़ जिला, चिंतामणि मंदिर थेऊर पुणे जिला, गिरिजात्मज मंदिर लेण्याद्रि पुणे जिला, विघ्नेश्वर मंदिर ओझर पुणे जिला और महागणपति मंदिर रांजणगांव पुणे जिला में स्थित है।परंपरागत रूप से, मोरेगांव का मोरेश्वर तीर्थयात्रियों द्वारा देखा जाने वाला पहला मंदिर है। मंदिरों का दौरा मोरेगांव, सिद्धटेक, पाली, महाद, थेउर, लेन्यांद्री, ओजर, रंजनगांव के क्रम में किया जाना चाहिए। तीर्थयात्रा का समापन मोरेगांव की दूसरी यात्रा के साथ होता है।
पंडित गोपाल भार्गव का मानना है कि ईश्वर आस्था का केंद्र हैं। भक्त भले ही सिद्ध स्थानों पर मनोकामना पूर्ति के लिए जाते हों लेकिन वास्तव में इनका महत्व शुभ-लाभ तक सीमित नहीं है। सिद्ध स्थानों पर पहुंचकर हर श्रद्धालु के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और उसे असीम ऊर्जा प्राप्त होती है। इससे व्यक्ति असीम संतुष्टि हासिल करता है। तो देश के पहले ऐसे अष्टविनायक मंदिर के एक ही स्थान पर दर्शन का लाभ श्रद्धालु गढ़ाकोटा प्राचीन गणेश मंदिर पहुंचकर कर सकते हैं। कृष्ण शिला से बनी यह मूर्तियां वास्तव में अद्भुत हैं…।

कौशल किशोर चतुर्वेदी

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। दो पुस्तकों “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।

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