‘बाबर’ पानीपत में हार जाता तो… कौशल किशोर चतुर्वेदी

‘बाबर’ पानीपत में हार जाता तो…

पानीपत विजय के बाद बाबर ने कहा था, ‘काबुल की ग़रीबी अब फिर हमारे लिए नहीं’। और बाबर के वंश के लिए उसके यह शब्द अक्षरश: सही साबित हुए। बाबर तो यह युद्ध जीतने के बाद चार साल ही जी सका, लेकिन भारत ने मुगल काल में वह सब देखा जो वसुधैव कुटुंबकम् भाव के विपरीत था। यह पानीपत का युद्ध ही था, जिसे जीतकर बाबर ने भारत में मुगल वंश की स्थापना की थी। यह पानीपत की जीत ही थी, जिसके बाद बाबर ने राजपूताना पर पहला प्रहार किया और बाद के मुगल शासकों ने उन्हें तहस-नहस ही कर दिया। यह पानीपत में बाबर की जीत का परिणाम ही था, जिसने भारत में नफरत के नए युग की शुरुआत की थी। वह नफरत के दाग अब भी देश की खुबसूरती का दम घोंट रहे हैं। बाबर की बर्बरता और नफरत का उदाहरण यह है कि 29 जनवरी, 1528 ई. को बाबर ने ‘चंदेरी के युद्ध’ में वहाँ के सूबेदार ‘मेदिनी राय’ को परास्त किया। चंदेरी युद्ध के बाद बाबर ने राजपूताना के कटे हुये सिरों की मीनार बनवाई तथा जिहाद का नारा दिया। बाबरी मस्जिदों का जिक्र भी यहां किया जा सकता है, जो बाबर की भारत के सर्वधर्म समभाव और सनातनी भाव को नष्ट करने की सुनियोजित सोच थी।
तो पानीपत के उस युद्ध के बारे में जान लेते हैं। पानीपत का प्रथम युद्ध 21अप्रैल, 1526 ई. को हुआ था। इस समय इब्राहीम लोदी दिल्ली का सुल्तान था और दौलत ख़ाँ लोदी पंजाब का राज्यपाल। दौलत खाँ लोदी, इब्राहीम लोदी से नाराज था। उसने दिल्ली सल्तनत से विद्रोह कर बाबर को अपनी मदद के लिये काबुल से बुलाया। बाबर खुद भी भारत पर हमला करना चाह रहा था। वह दौलत खाँ लोदी के निमन्त्रण पर भारत पर आक्रमण करने की तैयारी करने लगा। उस समय तुर्क-अफगान भारत पर आक्रमण लूट से मालामाल होने के लिये करते रहते थे। बाबर एक बहुत बड़ी सेना लेकर पंजाब की ओर चल दिया। यह युद्ध सम्भवत: बाबर की महत्वाकांक्षी योजनाओं की अभिव्यक्ति थी। यह युद्ध दिल्ली के सुल्तान इब्राहीम लोदी एवं बाबर के मध्य लड़ा गया। 12 अप्रैल, 1526 ई. को दोनों ओर की सेनाएँ पानीपत के मैदान में आमने-सामने आ गईं और युद्ध का आरम्भ 21 अप्रैल को हुआ। ऐसा माना जाता है कि इस युद्ध का निर्णय दोपहर तक ही हो गया। युद्ध में इब्राहीम लोदी बुरी तरह से परास्त हुआ और मार दिया गया। बाबर ने अपनी कृति ‘बाबरनामा’ में इस युद्ध को जीतने में मात्र 12000 सैनिकों के उपयोग किए जाने का उल्लेख किया है। किन्तु इस विषय पर इतिहासकारों में बहुत मतभेद है। इस युद्ध में बाबर ने पहली बार प्रसिद्ध ‘तुलगमा युद्ध नीति’ का प्रयोग किया। इसी युद्ध में बाबर ने तोपों को सजाने में ‘उस्मानी विधि’ यानि रूमी विधि का प्रयोग किया था। बाबर ने तुलगमा युद्ध पद्धति उजबेकों से ग्रहण की थी। पानीपत के ही युद्ध में बाबर ने अपने प्रसिद्ध निशानेबाज ‘उस्ताद अली’ और ‘मुस्तफा’ की सेवाएँ लीं।
खास बात यह है कि इस युद्ध में लूटे गए धन को बाबर ने अपने सैनिक अधिकारियों, नौकरों एवं सगे सम्बन्धियों में बाँट दिया। सम्भवत: इस बँटवारे में हुमायूँ को वह कोहिनूर हीरा प्राप्त हुआ, जिसे ग्वालियर नरेश ‘राजा विक्रमजीत’ से छीना गया था। इस हीरे की कीमत के बारे में यह माना जाता है कि इसके मूल्य द्वारा पूरे संसार का आधे दिन का खर्च पूरा किया जा सकता था। भारत विजय के ही उपलक्ष्य में बाबर ने प्रत्येक काबुल निवासी को एक-एक चाँदी का सिक्का उपहार स्वरूप प्रदान किया था। अपनी इसी उदारता के कारण उसे ‘कलन्दर’ की उपाधि दी गई थी। बाबर की चर्चा आज इसलिए क्योंकि 14 फरवरी,1483 ई. को फरगना में ‘जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर’ का जन्म हुआ। बाबर अपने पिता की ओर से तैमूर का पाँचवा एवं माता की ओर से चंगेज खाँ (मंगोल नेता) का चौदहवाँ वंशज था। उसका परिवार तुर्की जाति के ‘चग़ताई वंश’ के अन्तर्गत आता था। मजे की बात यह कि पानीपत युद्ध जीतकर और मुगल वंश की स्थापना कर चार साल बाद ही 26 दिसम्बर, 1530 ई. को आगरा में बाबर मर गया लेकिन उसे उसकी इच्छा के मुताबिक काबुल में दफन किया गया। यानि उस बाबर की भारत में कब्र भी नहीं है, जिसने मुगल वंश की स्थापना कर भारत का इतिहास ही बदल दिया।
उस समय के बारे में यह कहा गया कि पानीपत के युद्ध ने भारत के भाग्य का तो नहीं, किन्तु लोदी वंश के भाग्य का निर्णय अवश्य कर दिया। अफगानों की शक्ति समाप्त नहीं हुई, लेकिन दुर्बल अवश्य हो गई। युद्ध के पश्चात् दिल्ली तथा आगरा पर ही नहीं, बल्कि धीरे-धीरे लोदी साम्राज्य के समस्त भागों पर भी बाबर ने अधिकार कर लिया। और अगर अब पानीपत के इस युद्ध में बाबर की जीत पर टिप्पणी की जाए तो यही कहा जाएगा कि ‘बाबर’ पानीपत में हार जाता तो बहुत कुछ बदला हुआ होता। इतिहास में ‘मुगल वंश’ न होता और बाबर की बर्बरता और नफरत को हिन्दुस्तान में जगह नहीं मिलती और मुगल काल पर उठने वाले सवाल न होते…।

कौशल किशोर चतुर्वेदी

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। दो पुस्तकों “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *