‘औरंगजेब’ को आइना दिखाने वाले ‘शिवाजी’ की सोच का भारत 21वीं सदी की जरूरत…
आज भारत करवट बदल रहा है। भाजपा सरकारों पर हिंदुत्व का समर्थन और मुस्लिमों का विरोध करने के आरोप लग रहे हैं। कांग्रेस या भाजपा विरोधी राजनैतिक दलों के निशाने पर भाजपा की मोदी सरकार की कार्यशैली है, तो कई मुस्लिम राजनेता और लेखक-चिंतक, विचारक भाजपा की कार्यशैली के पक्ष का तथ्यों सहित समर्थन कर रहे हैं। हाल ही में मध्यप्रदेश कैडर के आईएएस नियाज खान ने एक्स पर लिखा कि ”इस्लाम तो अरब का धर्म है। यहां तो सभी हिंदू थे। हिंदू से लोग मुस्लिम बनाए गए थे। इसलिए भले ही धर्म अलग-अलग हों, लहू तो एक है। सभी एक संस्कृति का हिस्सा रहे हैं। अगर जो मुस्लिम अरब के लोगों को आदर्श मानते हैं, वे पुनर्विचार करें। सर्वप्रथम हिंदुओं को अपना भाई मानें, बाद में अरब को।” ऐसे कई मुस्लिम विद्वान हैं जो तथ्यों सहित ऐसी ही बात सामने रखते रहे हैं। खास तौर से बात जब मोहब्बत और नफरत की होती है, तो नियाज खान जैसे लेखकों की बातें सही राह दिखाती हैं। पर आज हम बात कर रहे हैं ऐतिहासिक संदर्भ की। उस संदर्भ की, जिसमें यह बात साफ है कि भारत हिंदू राष्ट्र होकर भी मुस्लिमों के सम्मान का ध्यान रखने में समर्थ है। जिसमें यह बात प्रमाणिक है कि वास्तव में हिंदू राष्ट्र भारत में वैमनस्यता, घृणा और धार्मिक अराजकता फैलाने का काम जिन मुस्लिम शासकों ने किया है…उसका खामियाजा भारत सैकड़ों साल से भुगत रहा है। और इसका ही परिणाम है कि आज भारत को फिर पुराने मूल स्वरूप में लाने के लिए नए सिरे से जद्दोजहद करनी पड़ रही है। इतिहास में दो समकालीन शासक रहे हैं महाराज शिवाजी और औरंगजेब। यह प्रमाणित है कि औरंगजेब को अगर किसी ने आइना दिखाया है तो वह शिवाजी ही थे। और शिवाजी की सर्वधर्म समभाव से ओतप्रोत धार्मिक नीति, औरंगजेब की नफरत, वैमनस्यता और नरसंहार से भरी धार्मिक नीति को आइना दिखाती है। और जब इन दो समकालीन शासकों की धार्मिक नीति का अध्ययन करेंगे तो सामने आ ही जाएगा कि आज 21 वीं सदी के भारत में शिवाजी की धार्मिक नीति और हिंदू राष्ट्र की भावना तर्कसंगत है। और भारत इस संदर्भ में जिस दिशा में आगे बढ़ रहा है, वह न्यायपूर्ण और सुसंगत है। शिवाजी के बहाने आज इस गंभीर मुद्दे पर चर्चा इसलिए, क्योंकि शिवाजी की आज जन्म जयंती है। ऐतिहासिक संदर्भ भिन्नता लिए हैं, पर यही सर्वमान्य है कि शिवाजी का जन्म 19 फरवरी, 1630 ई. को शिवनेरी दुर्ग में हुआ था। उनके पिता शाहजी राजे भोंसले एक शक्तिशाली सामंत राजा एवं कूर्मि कुल में जन्मे थे। उनकी माता जीजाबाई जाधवराव कुल में उत्पन्न असाधारण प्रतिभाशाली महिला थीं।
तो अब हम शिवाजी और औरंगजेब की धार्मिक नीति पर एक नजर डालते हैं। शिवाजी एक धर्मपरायण हिन्दू शासक थे तथा वह धार्मिक सहिष्णु भी थे। उनके साम्राज्य में मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता थी। कई मस्जिदों के निर्माण के लिए शिवाजी ने अनुदान दिया। हिन्दू पण्डितों की तरह मुसलमान सन्तों और फकीरों को भी सम्मान प्राप्त था। उनकी सेना में मुसलमान सैनिक भी थे। शिवाजी हिन्दू संस्कृति को बढ़ावा देते थे। पारम्परिक हिन्दू मूल्यों तथा शिक्षा पर बल दिया जाता था। अपने अभियानों का आरम्भ वे प्रायः दशहरा के अवसर पर करते थे। वहीं औरंगजेब की धार्मिक नीति पर नजर डालें तो सम्राट औरंगजेब ने इस्लाम धर्म के महत्व को स्वीकारते हुए ‘क़ुरआन’ को अपने शासन का आधार बनाया। उन्होंने सिक्कों पर कलमा खुदवाना, नौ-रोज का त्यौहार मनाना, भांग की खेती करना, गाना-बजाना आदि पर रोक लगा दी। 1663 ई. में सती प्रथा पर प्रतिबन्ध लगाया। तीर्थ कर पुनः लगाया। अपने शासन काल के 11 वर्ष में ‘झरोखा दर्शन’, 12वें वर्ष में ‘तुलादान प्रथा’ पर प्रतिबन्ध लगा दिया। 1668 ई. में हिन्दू त्यौहारों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। 1699 ई. में उन्होंने हिन्दू मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया। बड़े-बड़े नगरों में औरंगजेब द्वारा ‘मुहतसिब’ (सार्वजनिक सदाचारा निरीक्षक) को नियुक्त किया गया। 1669 ई. में औरंगजेब ने बनारस के ‘विश्वनाथ मंदिर’ एवं मथुरा के ‘केशव राय मदिंर’ को तुड़वा दिया। उन्होंने शरीयत के विरुद्ध लिए जाने वाले लगभग 80 करों को समाप्त करवा दिया। इन्हीं में ‘आबवाब’ नाम से जाना जाने वाला रायदारी (परिवहन कर) और पानडारी (चुंगी कर) नामक स्थानीय कर भी शामिल थे। औरंगजेब के समय में ब्रज में आने वाले तीर्थ−यात्रियों पर भारी कर लगाया गया, जजिया कर फिर से लगाया गया और हिन्दुओं को मुसलमान बनाया गया। उस समय के कवियों की रचनाओं में औरंगजेब के अत्याचारों का उल्लेख है। औरंगजेब एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था और उसकी नीतियां इस्लामिक रूढ़िवादिता पर आधारित थीं। उसने हिन्दुओं ही नहीं बल्कि शिया मुसलमानों के खिलाफ भी कदम उठाए।
तो शिवाजी और औरंगजेब की धार्मिक नीति से यह साफ है कि वर्तमान भारत में हिन्दू और मुस्लिम को लेकर जो भी बहस हो रही है, उसके मूल में वही असंख्य शूल हैं जो मुस्लिम शासकों के समय पूरे भारत के मूल स्वरूप को नष्ट करने के लिए बिछाए गए थे। और फिर बात वही कि भारत में और पूरी दुनिया में इस्लाम बहुत बाद में आया। तो मूल रूप से तो हिंदू ही भारत में बसे थे। इस्लामी आक्रांताओं ने या तो तलवार के बल पर मुस्लिम बनाया या फिर तात्कालिक परिस्थितियों में लोभ-लालच, सम्मान के भावों ने हिन्दू जनसंख्या को इस्लाम धर्म अपनाने की राह दिखाई। ऐसे में आज इस बात पर गहन विचार करने की जरूरत है कि हमारा भारत कैसा हो?
खैर फिर वही बात कि छत्रपति शिवाजी महाराज एक धर्मपरायण हिंदू शासक थे, लेकिन वे सभी धर्मों के प्रति सहिष्णु थे। उन्होंने अपने शासनकाल में धार्मिक सद्भाव बनाए रखा और किसी तरह की धार्मिक असहिष्णुता की अनुमति नहीं दी।उन्होंने अपने राज्य में सभी समुदायों के मंदिरों और पूजा स्थलों की रक्षा की। उन्होंने मुस्लिम पीरों, फकीरों को दान दिया और आर्थिक सहायता भी दी। उन्होंने अपनी सेना में मुसलमान सैनिकों को शामिल किया। उन्होंने हिंदू संस्कृति को बढ़ावा दिया और पारंपरिक हिंदू मूल्यों और शिक्षा पर बल दिया। उन्होंने अपने अभियानों का आरंभ अक्सर दशहरा के अवसर पर किया। उन्होंने अपने सैनिकों को महिलाओं और बच्चों का सम्मान करने और सैन्य अभियानों के दौरान धार्मिक स्थलों को नुकसान न पहुंचाने का आदेश दिया। उन्होंने विभिन्न धर्मों के लोगों को अपने दरबार में महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया। शिवाजी महाराज के शासनकाल की पहचान सामाजिक न्याय और समानता के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता से थी। तो आज शिवाजी की धार्मिक नीति पर आधारित 21वीं सदी का भारत ‘हिन्दू-मुस्लिम’ जैसी सभी बहसों पर पूर्णविराम लगाने में सक्षम है। शिवाजी की धार्मिक नीति भारत के संविधान की भावनाओं पर खरी उतरती है। और भारत का संविधान औरंगजेबी मानसिकता की खिलाफत करता है। ऐसे में 21वीं सदी के भारत की जरूरत शिवाजी की हिन्दू राष्ट्र केंद्रित वही सोच है, जिसमें सभी का हित और सम्मान समाहित है…और आज शिवाजी की उसी सोच के भारत निर्माण की जरूरत है…।
कौशल किशोर चतुर्वेदी
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। दो पुस्तकों “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।