इंदौर। मछली खाने के बाद युवक की तबीयत अचानक बिगड़ी — किडनी और लिवर हुए फेल, डॉक्टरों ने बिना सर्जरी बचाई जान – देखें VIDEO

इंदौर में मछली खाने के बाद एक व्यक्ति की तबीयत अचानक बिगड़ गई। उन्हें तेज उल्टियां और लूज मोशन होने लगे, ब्लड प्रेशर गिर गया और शरीर पर सूजन आ गई। शुरुआती इलाज के लिए तीन अलग-अलग अस्पतालों में दिखाया गया, जहां पता चला कि उनका लिवर और किडनी फेल हो चुके हैं। डॉक्टरों ने हाई डोज एंटीबायोटिक दिए और जल्द ही डायलिसिस की जरूरत पड़ने की बात कही। इसके बाद परिजन उन्हें एक अन्य प्राइवेट अस्पताल में ले गए, जहां विशेष इलाज किया गया। इस ट्रीटमेंट से न तो डायलिसिस की जरूरत पड़ी और न ही सर्जरी करनी पड़ी।

दरअसल, डॉक्टरों को मरीज से पता चला कि उन्होंने गलती से मछली की पित्त की थैली (Gallbladder) खा ली थी, जिससे शरीर में जहरीला टॉक्सिन फैल गया था। डॉक्टरों ने इसे स्पेशल ट्रीटमेंट के जरिए बाहर निकाला। एक हफ्ते के भीतर उनकी हालत में सुधार हुआ और अब वह पूरी तरह स्वस्थ हैं।

यह घटना संगम नगर निवासी दुर्गाप्रसाद सुनानिया (42) के साथ हुई, जो एक कंपनी में मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव हैं। 24 दिसंबर 2024 को दोपहर के भोजन में परिवार ने मछली बनाई थी। खाने के कुछ देर बाद ही दुर्गाप्रसाद की तबीयत बिगड़ने लगी और उन्हें लगातार उल्टियां व लूज मोशन होने लगे।

शुरुआत में एक प्राइवेट अस्पताल में उन्हें दिखाया गया, जहां डॉक्टरों को फूड पॉइजनिंग की आशंका हुई, लेकिन इलाज का असर नहीं हुआ। इसके बाद परिजन उन्हें दूसरे अस्पताल में ले गए, जहां महंगे इलाज की वजह से डॉक्टरों ने उन्हें किसी अन्य अस्पताल में दिखाने की सलाह दी। इसके बाद वह एक बड़े अस्पताल में भर्ती रहे, लेकिन चार दिनों तक कोई सुधार नहीं हुआ।

अंत में, परिजन उन्हें मेदांता अस्पताल लेकर गए, जहां डॉक्टरों ने सही कारण पहचाना और विशेष इलाज से उनकी जान बचाई। अब उनकी हालत पूरी तरह ठीक है।

ऐसी नाजुक स्थिति में था पेशेंट

यहां डॉक्टरों ने उनकी रिपोर्टस देखी तो पता चला कि पेशेंट के लिवर एंजाइम्स SGOT और SGPT खतरनाक रूप से 3000-4000 के स्तर तक पहुंच गए हैं। साथ ही क्रिएटिनिन की मात्रा भी 8-9 तक बढ़ गई थी। पेशेंट और उसके परिजन को लगा कि यह सामान्य फूड पॉयजनिंग है। दूसरी ओर डॉक्टर भी हैरान था कि लिवर और किडनी के पैरामीटर्स इतने कैसे बढ़ गए।

डॉक्टर जांचों के आधार पर इस कारण जानने में जुटे थे। डॉक्टरों ने पेशेंट दुर्गाप्रसाद से घटना वाले दिन की स्थिति जानी तो सही कारण पता चला और फिर तुरंत उस लाइन पर इलाज शुरू किया।

दुर्गाप्रसाद सुनानिया, इलाज के दौरान हॉस्पिटल में।

पेशेंट ने सही स्थिति बताई तो मिली ट्रीटमेंट की दिशा दुर्गाप्रसाद ने बताया कि वे खुद मछुआरा समाज (केवट) से है। परिवार और समाज में मछली का सेवन करना सामान्य बात है। वे बाजार से मछली खुद ही लाते हैं और फिर साफ-सफाई कर डिश बनाते हैं। घटना वाले दिन उन्होंने ही चाकू से मछली की सफाई (गोश्त को छोड़कर, बाकी हिस्सा निकालना) की।

फिर भोजन करने के बाद उन्होंने गिलास से पानी पीया तो उन्हें आभास हुआ कि शायद मछली का कोई छोटा सा अंग पानी के साथ पेट में चला गया है। फिर उन्हें ध्यान आया कि हो सकता है कि उन्होंने जो पानी पिया था मछली की पित्त की थैली हो। उन्होंने यह बात डॉक्टरों को बताई तो उन्हें तुरंत इलाज की दिशा मिली।

मल्टी ऑर्गन फेल की तरह कर दिया था ट्रीटमेंट

दुर्गाप्रसाद का इलाज करने वाले डॉ. जय सिंह अरोरा (नेफ्रोलॉजिस्ट) ने बताया कि जब पेशेंट को एडमिट किया था और उनकी जो दूसरे अस्पतालों में जांच हुई थी उसमें पता चला कि लिवर के एंजाइम्स 15 से 50 तक होने चाहिए, वे 4 हजार तक पहुंच गए थे।

ऐसे ही क्रिएटिनिन 12 तक पहुंच गए थे जो 1-2 होना चाहिए थी। उनकी यूरिन भी काफी कम हो गई थी। उनके लिवर और किडनी काफी खराब हो गए थे। उनका दूसरे अस्पतालों में बैक्टीरियल और वायरल इन्फेक्शन का इलाज किया गया था। उन्हें वहां मल्टी ऑर्गन फेल की तरह ट्रीट किया गया था। काफी मात्रा में उन्हें एंटीबायोटिक मेडिसिन दी गई। दरअसल ऐसा इसलिए हुआ कि उनकी पूरी रिपोर्ट में ही अटपटापन था।

 टॉक्सिन होती है मछली की पित्त की थैली, 100% हो जाती है मौत

डॉ. अरोरा का कहना है कि जैसे ही पेशेंट ने बताया कि उन्होंने गलती से मछली की पित्त की थैली का सेवन कर लिया तो डॉक्टरों की टीम भी चौंक गई। दरअसल पित्त की थैली का सेवन बहुत घातक होता है। ऐसे केसों में अगर सही समय पर इलाज नहीं मिले तो मृत्यु की 100% आशंका रहती है।

चूंकि क्रिएटिनिन भी बहुत ज्यादा बढ़ चुका था तो स्पेशल फिल्टर से टॉक्सिन (जहरीले तत्व) निकालने की प्रोसेस शुरू की। इसके लिए पेशेंट को इस ट्रीटमेंट के तीन सेशन दिए। इस दौरान एक हफ्ते में काफी सुधार हुआ और उन्हें 3 जनवरी को डिस्चार्ज कर दिया गया। इस दौरान उनकी दवाइयां चालू थी। इसके साथ ही नियमित फॉलोअप के लिए आने को कहा गया।

ऐसा हुआ स्पेशल ट्रीटमेंट, सेंट्रल इंडिया में पहला मामला डॉक्टर का कहना है कि डायलिसिस ब्रॉड इलाज होता है। अब नेफ्रोलॉजिस्ट का काम किडनी के अलावा दूसरे अंगों की खराबी को सहायता करना भी हो गया है। हॉस्पिटल में कई तरह के टॉक्सिन केस भी आए हैं। ऐसे मरीजों का इलाज एक मशीन से होता है। इसमें खून में जो गंदगी होती है उसे एक स्पेशल फिल्टर से साफ करते हैं।

फिर साफ खून फिर से मरीज के शरीर में चला जाता है। ऐसे में शरीर में टॉक्सिन को जो दुष्प्रभाव पड़ रहा था वह खत्म हो जाता है। इस पेशेंट के लिए भी यह स्पेशल ट्रीटमेंट किया। इसके बाद नतीजा यह हुआ यह कि एक हफ्ते पहले SGOT जो 4 हजार थे, वो 100 से कम हो गए। फिर वे नॉर्मल हो गए।

क्रिएटिनिन भी पुरुषों में 1.3 के नीचे रहना चाहिए। डॉक्टर का कहना है कि आमतौर पर फूड पॉयजनिंग, टॉक्सिन के दूसरे कारणों के केस हॉस्पिटल में आते हैं। मछली की पित्त की थैली का सेवन करने के बाद उसे इस स्पेशल ट्रीटमेंट से बचाने का संभवत: यह सेंट्रल इंडिया का पहला मामला है।

मछली के साथ पित्त की थैली का सेवन घातक हो सकता है।

जानिए नॉनवेजीटेरियन के लिए डॉक्टर की सलाह

डॉ. अरोरा के मुताबिक फिश में जो एक्वेटिक या जो समुद्रीय फिश रहती है, उनके सेवन में खास ध्यान रखना चाहिए। दरअसल प्रकृति ने हर जीव-जंतु में डिफेंस के लिए कुछ न कुछ बनाया है। मछली अगर कोई चीज का सेवन करती है तो उसके पाचन के दौरान और शरीर में बहुत ही टॉक्सिक और खतरनाक एन्जाइम्स रहते हैं।

लोगों को ध्यान रखना चाहिए कि जब भी नॉन वेजिटेरियन फूड हो उसमें सिर्फ मसल्स पार्ट का ही सेवन करना चाहिए। इसके अलावा और कोई अंग का सेवन नहीं करना चाहिए खासकर अंदरूनी अंगों का। सिर्फ ऊपरी मसल्स ही खाई जाती है। समुद्रीय मछली ही नहीं बल्कि नदियों की मछलियों के सेवन में इसका ध्यान रखना बहुत जरूरी है। मेडिकल के लिहाज से यह जरूरी नहीं है कि लिवर या किडनी इन्फेक्शन से ही खराब हो। टॉक्सिन से भी ये खराब हो सकते हैं।

पेशेंट ने कहा लोग भी रखें ध्यान

दुर्गाप्रसाद का कहना है मेरे सहित पूरा परिवार केवट समाज से है। हम बचपन से ही मछली का सेवन करते आए हैं। हमें पता है कि मछली की पित्त की थैली और अंदरूनी अंगों का सेवन नहीं किया जाता इसलिए दुकानदार भी ग्राहकों को गोश्त देने के दौरान ये सभी पहले ही निकाल देते है।

यह बस दुर्भाग्य ही था कि पित्त की थैली उछलकर पानी के गिलास में गिरी जो तब देखने में नहीं आई। मैंने उसका सेवन कर लिया। मैं बहुत डर गया था कि क्योंकि शुरू में जिन अस्पतालों में गया तो वहां मुझे डायलिसिस की नौबत आने की स्थिति बता दी थी।

इलाज में डेढ़ लाख रु. खर्च

दुर्गाप्रसाद ने बताया कि मुझे 3 जनवरी को डिस्चार्ज कर दिया गया। फिर 18 जनवरी को फॉलोअप में डॉक्टर को दिखाया तो अधिकांश दवाइयां बंद कर दी गई और अब सिर्फ दो ही दवाइयां चल रही हैं। मैं अब पूरी तरह से स्वस्थ हूं। क्या अब आप फिश खाएंगे, इस पर कहा कि मैंने ठीक होने के बाद फिर से फिश खाना शुरू कर दिया है। हफ्ते में दो बार सेवन करता हूं। उनका कहना है कि मछली स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायक है।

डॉक्टर भी मरीजों को अण्डे और मछली सेवन करने की सलाह देते हैं। मैं डॉक्टरों के कारण ही अच्छा हुआ हूं अन्यथा स्थिति भयावह होती।

डॉ. जय सिंह अरोरा, सीनियर नेफ्रोलॉजिस्ट

बिना सर्जरी के हुआ सफल उपचार डॉ. जय सिंह अरोरा ने बताया कि ऐसे मामलों में समय पर रोगी की सही हिस्ट्री लेना बेहद महत्वपूर्ण होता है। मरीज को तुरंत स्टेरॉयड और डायलिसिस (स्पेशल ट्रीटमेंट( की मदद से इलाज दिया गया। शुरुआती तीन डायलिसिस के बाद मरीज की हालत में सुधार दिखने लगा और डायलिसिस बंद कर दिया गया। बिना किसी सर्जरी के, सही दवाइयों और लगातार मॉनिटरिंग से मरीज को बचा लिया गया।

 टॉक्सिन का प्रभाव और सावधानियां

डॉ. अरोरा ने बताया कि मछली की पित्त की थैली में सायरपरोल नामक टॉक्सिन होता है, जो शरीर में पहुंचने पर लिवर और किडनी को तेजी से नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि पित्त की थैली मल के साथ बाहर निकल जाती है, लेकिन इसका विष शरीर में गंभीर असर डालता है। यह समस्या समुद्री क्षेत्रों में आम होती है, लेकिन मध्य भारत में ऐसे मामले दुर्लभ हैं। लोगों को मछली के अंगों के सेवन के प्रति सतर्क रहना चाहिए।

लिवर और किडनी के प्रति जागरूक रहे लोग

डॉ. अरोरा ने बताया कि मछली के साथ पित्त की थैली का सेवन घातक हो सकता है। लोगों को जागरूक रहना चाहिए और खाने-पीने में सावधानी बरतनी चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को उल्टियां, दस्त और अचानक लिवर-किडनी की खराबी के लक्षण दिखे तो यह जांचना जरूरी है कि उसने मछली या किसी अन्य जहरीले पदार्थ का सेवन तो नहीं किया। समय पर सही इलाज से ही मरीज की जान बचाई जा सकती है।

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