स्कूल जाने के लिए निकली अंजलि पड़ोस की बिल्डिंग में जाकर 14वीं मंजिल से कूद गई।
इंदौर में 18 जून को 14वीं मंजिल से कूदकर जान देने वाली 7वीं की छात्रा अंजलि (13) एक गेम में फंस चुकी थी। भाई आदित्य ने पुलिस को बताया कि अंजलि अपने आईपैड पर ‘रो-ब्लॉक्स’ नाम का गेम खेलती थी। वह कई घंटों तक लगातार कमरे में अकेले रहती थी। बहुत बार टोका भी, लेकिन गेम से उसका मोह छूटता ही नहीं था।
अंजलि ने गेम में 45 दोस्त बना लिए थे, जो गेम में उसके साथ ऑनलाइन जुड़े रहते थे। हालांकि अभी पुलिस गेम को आत्महत्या की वजह नहीं मान रही, लेकिन इस गेम के कारण ऊंचाई से बिना डर के कूदने की बात से इनकार भी नहीं कर रही।
एसआई खुशबू परमार ने बताया कि अंजलि का आईपैड अब भी उसके पासवर्ड से लॉक है। इसे कंपनी भिजवाकर ओपन करवाना पड़ेगा। परिजन द्वारा बताए गए संभावित सभी पासवर्ड डालकर खोलने का प्रयास किया, लेकिन नहीं खुला। भाई के बयान के आधार पर गेम भी कारण के रूप में सामने आ रहा है।
मां का मोबाइल लेकर सहेलियों से बात करती थी, उन्हीं के करीब थी
अंजलि अपनी मां का मोबाइल लेकर सहेलियों से बात करती थी। उसकी विशाखापट्टनम में स्कूल की जो सहेलियां बनी थीं, उनसे ज्यादा अटैचमेंट रहा है। पुलिस ने जब सहेलियों के मोबाइल फोन की चैट देखी तो पता चला कि कुछ सहेलियों को वह अपने घर की गैलरी से ऊंचाई के फोटो भेजा करती थी। उसके द्वारा भेजे गए गैलरी के फोटो पर सहेलियां रिप्लाय में गुस्से वाली इमोजी भेजती थीं।
पुलिस ने इस मामले में मनोचिकित्सकों से परामर्श लिया तो पता चला इस तरह ऊंचाई के फोटो भेजने से स्पष्ट है कि वह अपने दिमाग में बैठे ऑनलाइन गेम के किसी टास्क को पूरा करना चाहती हो। यह भी आत्महत्या की वजह हो सकती है।
मृतक अंजलि एडवांस एकेडमी की छात्रा थी। उसने 18 जून को 14वीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली थी।
घर-परिवार से दूर कर आभासी दुनिया में ले जाता है रो-ब्लॉक्स
रो-ब्लॉक्स ऑनलाइन गेम है, जिसमें खेलने वाला अपने अनुभव शेयर करने के साथ-साथ लाखों फ्रेंड्स बना सकता है। यह गेम एक ऐसी आभासी दुनिया में ले जाता है, जहां गेम खेलने वालों को दोस्त बनाने के साथ अनुभव साझा करने और वह सब कुछ बनने की सुविधा देता है, जैसी कल्पना करते हैं। इस गेम में बच्चों को ऊंचाई से कूदने सहित कई तरह के टास्क मिलते हैं।
सुबह छात्रा के पिता लिफ्ट से उसे अपार्टमेंट के गेट तक छोड़कर वापस घर आ गए।
पुणे का है परिवार, विशाखापट्नम से आए इंदौर
पुलिस अफसरों के मुताबिक छात्रा और उसका परिवार मूल रूप से पुणे का रहने वाला है। उसके पिता CCI (कंटेनर कॉरर्पोरेशन कंपनी) में मैनेजर हैं। पहले विशाखापट्टनम में पोस्टिंग थी। मार्च 2024 में वह इंदौर आए। यहां निपानिया इलाके की बिल्डिंग में फ्लैट लिया। पिता ने इसी साल दोनों बच्चों का स्कूल में एडमिशन कराया था। छात्रा का बड़ा भाई 11वीं में पढ़ता है। पुलिस ने भाई के बयान दर्ज किए हैं।
थोड़ी देर बाद छात्रा स्कूल बस में बैठने के बजाय दूसरी बिल्डिंग की ओर जाती दिख रही हैं।
विशाखापट्टनम से आकर खुश नहीं थी अंजलि : भाई आदित्य
भाई आदित्य ने मीडिया से चर्चा में बताया, अंजलि की विशाखापट्टनम में दो सहेलियां हैं। वह उनसे ही बात करती थी। विशाखापट्टनम से आने के बाद से वह खुश नहीं थी।
पुलिस को अंजलि के बड़े भाई आदित्य ने यह भी बताया कि अंजलि अंतरमुखी थी। वह काफी कम बोलती थी। सोमवार को पापा (अमोल) के साथ पूरा परिवार मॉल में घूमने गया था। मैंने शॉपिंग की, लेकिन अंजलि ने कुछ नहीं खरीदा। उससे कपड़े खरीदने को कहा, तो उसने मना कर दिया। हम सबने खाना भी बाहर खाया था। मैं कई बार उससे बात करता, उसे समझाने की कोशिश करता था।
छात्रा दूसरी बिल्डिंग की लिफ्ट में अकेली जाते हुए दिखाई दे रही है।
एक्सपर्ट व्यू- ऑटिज्म सिंड्रोम के शिकार हो जाते हैं बच्चे, संवाद क्षमता खत्म हो जाती है
मनोचिकित्सक डॉ. उज्ज्वली सरदेसाई का कहना है कि गेम की दुनिया आभासी दुनिया होती है। घर में क्या चल रहा, कौन क्या बोल रहा, क्या कह रहा, उन्हें कुछ सुनाई, दिखाई नहीं देता। गेम उन्हें एक तरह से सम्मोहित कर लेता है। गेम में जैसे टास्क मिलते हैं, बस उन्हें कैसे भी करके पूरा करने की जिद सी हो जाती है। बच्चों का खुद पर नियंत्रण समाप्त हो जाता है।
किस तरह की घटना से उन्हें नुकसान होगा, जान भी जा सकती है, यह सोचने-समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है। वे ऑटिज्म सिंड्रोम के शिकार हो जाते हैं। ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक जटिल न्यूरोडेवलपमेंटल डिसऑर्डर है जो बच्चे की संवाद करने और सामाजिक रूप से बातचीत करने की क्षमता को प्रभावित करता है। यह बच्चे के सोचने और व्यवहार करने के तरीके को भी प्रभावित करता है।