‘वक्फ बिल’ की तरह आरक्षण में भी ‘अंत्योदय’ पर गौर करो सरकार…
पूरे देश ने 14 अप्रैल 2025 को हर साल की तरह संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर को श्रद्धा और आस्था से याद किया। भारत में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर जैसे गिने-चुने राजनैतिक महापुरुष हैं, जिन्हें सभी राजनैतिक दल बराबरी से सम्मान देते हैं। केंद्र की एनडीए सरकार ने हाल ही में वक्फ बिल संशोधन कर यह महत्वपूर्ण तर्क दिया था कि इससे वास्तव में जरूरतमंद मुस्लिमों को वक्फ संपत्ति का लाभ मिलेगा। और इसीलिए वक्फ बिल संशोधन के जरिए अंत्योदय का दावा भी किया गया था। वैसे केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्य सरकारों का दावा है कि पंडित दीनदयाल उपाध्याय के ‘अंत्योदय’ की विचारधारा के पथ पर उनकी सरकारें पूरे समर्पण भाव से आगे बढ़ रही हैं। वक्फ बिल संशोधन पर राजनैतिक दलों में मतभिन्नता है, पर ‘आरक्षण’ के प्रावधान ने ‘वोट बैंक’ का आवरण धारण कर सभी राजनैतिक दलों को बराबरी से सम्मोहित किया हुआ है। और हमारा मत भी आरक्षण देने के पक्ष में ही है ताकि भारतमाता की सभी संतानें मुख्यधारा में शामिल हो सकें। पर वोट बैंक ने वास्तव में राजनैतिक दलों को काला चश्मा पहनाकर आरक्षण के मूलभाव की उपेक्षा करने का अपराधी बनाने की गहरी साजिश का शिकार बना लिया है।
यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जमाना है। हमने आरक्षण के मुद्दे पर संविधान निर्माता बाबा साहब की राय जानी। तो सामने आया कि बाबा साहेब अंबेडकर ने आरक्षण को सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना था। उन्होंने कहा कि यह एक बैसाखी नहीं है बल्कि एक सहारा है, जिसका उपयोग सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए किया जाना चाहिए। उन्होंने यह भी सुझाव दिया था कि जब एक वर्ग आरक्षण के माध्यम से विकास कर लेता है, तो भविष्य की पीढ़ियों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए। अंबेडकर ने आरक्षण को सामाजिक न्याय प्राप्त करने का एक तरीका माना था।उन्होंने महसूस किया कि भारतीय समाज में जातिगत भेदभाव के कारण वंचित वर्ग को अवसरों से वंचित किया गया है और आरक्षण से उन्हें उचित अवसर मिल सकते हैं। आरक्षण को दलितों, आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्गों को सशक्त बनाने का एक तरीका माना गया। उन्होंने महसूस किया कि आरक्षण से इन वर्गों को शिक्षा, रोजगार और अन्य सामाजिक और आर्थिक लाभों तक पहुंच मिल सकती है, जिससे वे सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त हो सकते हैं।
अंबेडकर ने आरक्षण को 10 वर्षों के लिए प्रस्तावित किया था, जो एक सीमित अवधि थी। उन्होंने कहा था कि यदि इस अवधि के भीतर इन वर्गों को सामाजिक और आर्थिक रूप से विकास करने का मौका मिल जाता है, तो आरक्षण को हटा दिया जाना चाहिए। अंबेडकर ने आरक्षण को योग्यता के साथ जोड़ा। उन्होंने कहा कि आरक्षण के लाभ केवल योग्य लोगों को दिए जाने चाहिए, और यदि वे अपनी योग्यता के आधार पर आरक्षण के बिना प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते हैं, तो वे आरक्षण के लाभ प्राप्त करने के योग्य नहीं हैं। अंबेडकर ने जोर देकर कहा कि आरक्षण धर्म के आधार पर नहीं होना चाहिए, बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के आधार पर होना चाहिए। अंबेडकर ने संविधान में आरक्षण के लिए प्रावधान किए थे ताकि वंचित वर्गों को उचित अवसर मिल सकें।
तो सार यही है कि अंबेडकर के विचारों के मुताबिक “आरक्षण का मतलब बैसाखी नहीं है, जिसके सहारे पूरी जिंदगी काट दी जाए।” इसके साथ ही अंबेडकर का मत था कि “यदि आरक्षण से किसी वर्ग का विकास हो जाता है, तो उसके आगे की पीढ़ी को आरक्षण का लाभ नहीं देना चाहिए।” अंबेडकर के विचारों के अनुसार, आरक्षण एक अस्थायी उपाय है जो केवल सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करने के लिए है। इसका उद्देश्य वंचित वर्गों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है ताकि वे मुख्यधारा में शामिल हो सकें।
वास्तव में अंबेडकर भी अगर जिंदा होते तो आरक्षण के लाभ से वंचित आरक्षित वर्ग के लोगों की पीड़ा को सहज ही महसूस करते। और आरक्षण का लाभ लेकर जो एक बार सांसद-विधायक बन गया है, उस व्यक्ति को दोबारा आरक्षित सीट पर चुनाव लड़ाने की जगह किसी दूसरे वंचित परिवार के व्यक्ति को आरक्षण का लाभ देकर समाज की मुख्यधारा में लाने की कोशिश करते। यदि किसी व्यक्ति को आरक्षण के लाभ से अखिल भारतीय सेवा या कोई भी नौकरी मिल जाती, तो अंबेडकर साहब कहते कि अब इस परिवार की अगली पीढ़ी को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाए। बल्कि आरक्षण के लाभ से वंचित दूसरे परिवारों को नौकरी देकर समाज की मुख्यधारा से जोड़ा जाए। तो सभी राजनैतिक दलों से यही गुजारिश है कि जो परिवार आरक्षण का लाभ लेकर समाज की मुख्यधारा में आ गए हैं, उनकी अगली पीढ़ी को आरक्षण का लाभ लेने से वंचित कर दूसरे वंचित परिवार को इसका लाभ देकर मुख्यधारा से जोड़ा जाए…और संविधान निर्माण के 75 साल बाद संविधान और बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर की इस मंशा को आबाद कर दिया जाए। ताकि ‘वोट बैंक’ भी बना रहे और वंचित वर्ग के अधिकतम परिवार समाज की मुख्यधारा से जुड़ जाएं, तो बाबा साहब की सोच सच हो जाए। वहीं ‘वक्फ बिल संशोधन’ की तरह आरक्षण सोच संशोधन के जरिए भी ‘अंत्योदय’ की राह खुल जाए…तो वंचित वर्गों के सभी परिवारों को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनने का सौभाग्य मिल जाए और यही बाबा साहब को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
कौशल किशोर चतुर्वेदी
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। दो पुस्तकों “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।