मध्यप्रदेश। भ्रष्टाचार, फर्जीवाड़ा और पद का दुरुपयोग… MP में नायब तहसीलदार को डिमोशन कर बनाया पटवारी — देखें VIDEO

 

अरुण चंद्रवंशी नायब तहसीलदार से पटवारी बनाए गए हैं।

मध्यप्रदेश एक नायब तहसीलदार को डिमोशन कर पटवारी बना दिया गया। ये मामला आगल-मालवा जिले का है। कलेक्टर कार्यालय से बाकायदा इसका आदेश भी जारी हुआ है। दरअसल, नायब तहसीलदार पर भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े का आरोप है।

नायब तहसीलदार का नाम अरुण चंद्रवंशी है। उन्हें पटवारी के रूप में उज्जैन जिले में पदस्थ किया गया है।

दरअसल, एक शिकायत के बाद लोकायुक्त टीम ने अरुण चंद्रवंशी को लेकर जांच की थी। जिसमें पाया गया कि चंद्रवंशी ने नियमों के खिलाफ करीब 400 लोगों के गरीबी रेखा के राशन कार्ड एक-एक साल की अवधि के लिए बनाए थे। लोकायुक्त ने इस मामले में कार्रवाई के लिए आगर कलेक्टर राघवेंद्र सिंह को पत्र लिखा था। मंगलवार को कलेक्टर ने इस संबंध में आदेश जारी किए।

पढ़ें, आगर कलेक्टर कार्यालय से जारी आदेश

एडवोकेट ने की थी नायब तहसीलदार की शिकायत एडवोकेट भागीरथ देवड़ा ने नायब तहसीलदार (अब पटवारी) अरुण चंद्रवंशी के खिलाफ फरवरी 2024 में कलेक्टर, कमिश्नर, मुख्यमंत्री और लोकायुक्त से शिकायत की थी। इसमें अरुण चंद्रवंशी पर अपने पद का दुरुपयोग करने, अपनी शक्तियों से बाहर काम करने और रिश्वत मांगने समेत कई आरोप लगाकर जांच की मांग की थी।

400 लोगों के एक साल के लिए राशन कार्ड बनाए एडवोकेट भागीरथ देवड़ा ने शिकायत में अधिकारियों को बताया था कि अरुण चंद्रवंशी ने बड़ोद तहसील की झोंटा और बीजा नगरी उप तहसील में पदस्थ रहते हुए करीब 400 लोगों के गरीबी रेखा के राशन कार्ड बनाए, जिनकी वैधता एक वर्ष के लिए रखी गई, जो कि नियम विरुद्ध है। यह फर्जी तरीके से राशन कार्ड बनाने की श्रेणी में आता है। एडवोकेट भागीरथ देवड़ा का कहना है कि देश में ऐसा कोई नियम नहीं है कि एक वर्ष की अवधि के लिए गरीबी रेखा के राशन कार्ड बनाए जाए।

एडवोकेट भागीरथ देवड़ा ने चंद्रवंशी द्वारा किए जा रहे भ्रष्टाचार और फर्जीवाड़े की शिकायत की थी।

पट्‌टे की जमीन बेचने की अनुमति देने का भी आरोप अरुण चंद्रवंशी पर कलेक्टर के अधिकारों का उपयोग करते हुए पट्टे की जमीन बेचने की अनुमति देने का भी आरोप लगा था। एडवोकेट भागीरथ देवड़ा ने यह भी शिकायत की थी कि एक विवादित भूमि का नामांतरण जो पूर्व पीठासीन अधिकारियों ने खारिज कर दिया था, जिसे लेकर दोनों पक्ष सिविल न्यायालय और कमिश्नर न्यायालय में चले गए थे। न्यायालय में केस लंबित होने के बावजूद अरुण चंद्रवंशी ने अपने निजी हित के लिए नामांतरण करा दिया था।

कोर्ट के बोर्ड पर ही 25 हजार रुपए मांग लिए थे एडवोकेट भागीरथ देवड़ा ने बताया कि उनके पक्षकार ने पट्‌टे की भूमि बेचने की अनुमति लेने के लिए कलेक्टर न्यायालय में आवेदन लगाया था, जिसको लेकर अरुण चंद्रवंशी को अपनी रिपोर्ट पेश करनी थी, लेकिन अरुण चंद्रवंशी ने बोर्ड पर ही एडवोकेट देवड़ा से 25 हजार रुपए की रिश्वत मांग ली और कहा कि शासन से मुझे सिर्फ एक चपरासी मिला है। मुझे अपने काम करने के लिए प्राइवेट लोगों को रखना पड़ रहा है, जिनकी तनख्वाह की व्यवस्था आप जैसे एडवोकेट से ही होती है।

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