उसे आईआईटी टॉप ही नहीं करना चाहिए था। ऐसा नहीं होता तो मेरी बेटी आज मेरे साथ होती।
ये कहते हुए अंशु की मां अंजना रोने लगती है। रुक-रुककर कहती हैं- उसने फोन पर कहा था कि आपकी शादी की सालगिरह क्या गिफ्ट लाऊं? परिवार के लोग और पड़ोस की महिलाएं उन्हें ढांढस देती हैं। आईआईटी रुड़की की स्टूडेंट अंशु मलैया ने 4 फरवरी को हॉस्टल के कमरे में फांसी लगाकर खुदकुशी कर ली। वह इटारसी के मेहरागांव की रहने वाली थी। 6 फरवरी को जब उसकी बॉडी मेहरागांव पहुंची तो गांव का माहौल गमगीन हो गया।
गांव के लोग और परिजन के मुताबिक अंशु एक होनहार स्टूडेंट थी। दसवीं क्लास में उसके 99% और बारहवीं में 95% मार्क्स आए थे। बिना किसी कोचिंग के वह पहले ही अटेंप्ट में आईआईटी में सिलेक्ट हो गई थी। परिजन के मुताबिक, हर क्लास में टॉप करने वाली अंशु के बीटेक सेकेंड ईयर में कम मार्क्स आए थे, इससे वह तनाव में थी।
अंशु के बीटेक सेकेंड ईयर में कम मार्क्स आए थे, इससे वह तनाव में थी।
अंशु की खुदकुशी के पीछे परिजन यही वजह बता रहे हैं। रुड़की पुलिस मामले की जांच कर रही है। मेहरागांव पहुंचकर अंशु के परिजन और पड़ोसियों से बात की। साथ ही मनोचिकित्सक से समझा कि कम नंबर आने पर अंशु किस मानसिक अवस्था से गुजर रही थी, क्या उसे खुदकुशी करने से रोका जा सकता था…पढ़िए रिपोर्ट
दोस्त ने खिड़की से झांका तो खुदकुशी का पता चला
अंशु के बड़े पापा वनराज मलैया ने बताया कि 4 फरवरी को उसने करीब 4 बजे आईआईटी रुड़की के कस्तूरबा हॉस्टल में फांसी लगा ली थी। शाम को उसकी दोस्त उससे मिलने पहुंची। उसने कमरे का दरवाजा खटखटाया। जब काफी देर तक दरवाजा नहीं खुला तो खिड़की से झांका। देखा कि अंशु का शव पंखे से लटका हुआ था।
दोस्त ने तत्काल ही हॉस्टल प्रबंधन को इसकी सूचना दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम के लिए भिजवाया। हरिद्वार की फोरेंसिक टीम ने भी कमरे की जांच की। पुलिस ने अंशु का मोबाइल और लैपटॉप जब्त किया है।
पीएम रिपोर्ट के हिसाब से ये सुसाइड का ही केस है। परिवार ने भी अभी तक कोई शिकायत नहीं की है। अंशु का मोबाइल जब्त किया है, वो लॉक है। हम जांच कर रहे हैं।
– नरेन्द्र पंथ
सर्कल ऑफिसर रुड़की
मां हाउसवाइफ, पिता बिहार में नौकरी करते हैं
अंशु के बड़े पापा वनराज मलैया बताते हैं कि वे तीन भाई हैं। अंशु के पिता मुकेश मलैया सबसे छोटे हैं। वह बिहार के दरभंगा में प्राइवेट जॉब करते हैं। अंशु अपनी मां और छोटी बहन के साथ ही मेहरागांव में रहती थी।
पिछले महीने ही उसकी बुआ के लड़के सत्यम की शादी थी। वह परिवार में किसी से ज्यादा बात नहीं करती थी, लेकिन इस शादी में उसने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। वनराज कहते हैं कि उसे इस बात का एहसास था कि पिता कितनी तकलीफ से उसे पढ़ा रहे हैं। उसने पिता से कहा था- आप एक-दो साल और जॉब कीजिए, उसके बाद घर की जिम्मेदारी मैं संभालूंगी।
दो साल घर पर रहकर आईआईटी की तैयारी की थी
6 फरवरी को अंशु की बॉडी जैसे ही इटारसी के मेहरागांव पहुंची, पूरा गांव गम में डूब गया। गांव के लोगों ने बताया कि अंशु ने आईआईटी टॉप कर उनके गांव और इटारसी का नाम रोशन किया था। उन्हें इस बात से हैरानी है कि वह ऐसा कदम उठा सकती है।
गांव के सरपंच जितेंद्र पटेल कहते हैं कि दसवीं में जब उसके 99% मार्क्स आए थे, तब पूरे गांव में उसके पिता मुकेश मलैया ने मिठाई बांटी थी। 12वीं में भी उसके 95% मार्क्स आए थे। पटेल कहते हैं कि वह दिनभर घर में ही रहती थी। महीनों तक हम लोग उसकी शक्ल नहीं देख पाते थे। वह किसी से ज्यादा बात भी नहीं करती थी।
आईआईटी के लिए उसने किसी भी कोचिंग से पढ़ाई नहीं की थी। घर पर ही रहकर दो साल तक स्कूल की पढ़ाई के साथ आईआईटी की तैयारी की और पहले ही प्रयास में उसे कामयाबी मिली। जब उसका सिलेक्शन हुआ तो हम लोगों को काफी खुशी हुई थी।
बहन बोली-कम मार्क्स आते थे तो उसे तनाव होता था
अंशु की मौसेरी बहन रुपांशी से बात की तो उसने बताया- अंशु हमेशा से ही टॉपर थी। बचपन से ही मार्क्स को लेकर बेहद जुनूनी थी। एग्जाम में एक भी नंबर कम आता था, तो वह पूरा घर सर पर उठा लेती थी।
रुपांशी आगे कहती है कि वह अपने काम से काम रखती थी। उसे किसी से कोई मतलब नहीं था। उसका फ्रेंड सर्किल भी लिमिटेड था। उसकी दुनिया पढ़ाई, लैपटॉप और कॉलेज तक सीमित थी। रुड़की में वह अकेली थी। हम लोग उसे फोन लगाते तो कहती थी कि ज्यादा फोन मत लगाओ, कॉलेज जाना होता है। पढ़ाई करनी पड़ती है। जब उसे खुद लगता था, तब वह फोन लगाती थी।
मैं और वह बचपन से साथ रहे हैं। जितना मैं उसे जानती थी, उतना पूरे परिवार के लोग नहीं जानते थे। रुपांशी कहती हैं- रुड़की में उसके टेस्ट में कम मार्क्स आ रहे थे। इससे वो कभी-कभी स्ट्रेस में चली जाती थी। उसने अपनी मां से भी ये बात शेयर की थी और पूछा था कि मेरे इतने कम मार्क्स क्यों आ रहे हैं?
उसका कहना था कि मैं जब 10वीं-12वीं में अच्छे नंबर ला सकती हूं, टॉप कर सकती हूं तो मुझे रुड़की में भी टॉप करना है।
– रुपांशी
अंशु की मौसेरी बहन
रुड़की जाने के बाद दोस्तों से बातचीत बंद हो गई थी
अंशु की स्कूल में पढ़ने वाली दोस्त संस्कृति कहती हैं- 10वीं के बाद से ही वह आईआईटी की तैयारी में जुट गई थी। उसका स्कूल आना भी कम हो गया था। वह केवल और केवल पढ़ाई में ही बिजी रहती थी। छुट्टी वाले दिन हम लोग ही उससे मिलने चले जाया करते थे।
जब उसका आईआईटी में सिलेक्शन हुआ तो हम सभी लोग खुश थे। वह जाते वक्त हम सभी से मिली थी। पिछले दो साल से रुड़की में रह रही थी। हम लोग भी अपने-अपने करियर में बिजी हो गए थे, इसलिए उससे रेगुलर बात नहीं होती थी। रुड़की में उसका नया फ्रेंड सर्किल बन गया गया था। मार्क्स को लेकर वह तनाव में तो आती थी, लेकिन ये पता नहीं था कि इतना बड़ा कदम उठा लेगी।
एक्सपर्ट बोले- एकेडेमिक स्ट्रेस खुदकुशी का बड़ा कारण मनोचिकित्सक सत्यकांत त्रिवेदी का कहना है कि किसी भी व्यक्ति की मेंटल कंडिशन परिस्थितियों पर निर्भर करती है। इसके और भी कारण हो सकते हैं। ज्यादातर युवाओं या विद्यार्थियों में कई बार एकेडेमिक स्ट्रेस खुदकुशी का बहुत बड़ा कारण बन जाता है।
इस स्ट्रेसफुल लाइफ में बच्चे अनावश्यक दबाव महसूस करते हैं। उनमें एक तरह की चाह पैदा हो जाती है कि अच्छे मार्क्स नहीं मिले तो उनका वेलिडेशन कम हो जाएगा। आगे बढ़ते रहने या टॉप करना बड़ा अहम फैक्टर हो जाता है। साथ ही ऐसी उम्र में रिलेशनशिप भी कई बार खुद को नुकसान पहुंचाने की वजह बनती है।
डॉ. त्रिवेदी कहते हैं- जरूरत है कि हम बच्चों से संवाद करें, जिससे वह अपने मन की बात कह सकें। बच्चा अगर कटा-कटा सा रहता है, दूसरों से कम बात करता है या उसकी हॉबीज कम हुई हैं, वहां मनोचिकित्सक की मदद लेना चाहिए। कई बार जानकारी के अभाव में मनोचिकित्सक के पास जाने से लोग डरते हैं।
मुझे लगता है कि आईआईटी जैसे इंस्टीट्यूट में स्ट्रेस मैनेजमेंट उनके पाठ्यक्रम में शामिल होना चाहिए। आंकड़े बताते हैं कि देश में रोड एक्सीडेंट के बाद 21 से 40 साल की उम्र के लोगों की मौत की सबसे बड़ी वजह सुसाइड है।
-डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी,
मनोचिकित्सक