मैक्सिम गोर्की मतलब ‘बेहद कड़वा’…
‘मां’ उपन्यास की जब भी चर्चा होगी, तब मैक्सिम गोर्की की चर्चा भी अवश्य होगी। क्योंकि ‘मदर’ यानि ‘मां’ उपन्यास के लेखक गोर्की की जिंदगी में वास्तव में कुछ अगर कमी रही तो वह मां की ही रही।मैक्सिम गोर्की का उपन्यास “माँ” रूस में 1905 की क्रांति के समय की कहानी है। यह उपन्यास मजदूर वर्ग के परिवार के संघर्षों और जागरूकता की यात्रा का विवरण देता है। मुख्य पात्र, पेलागेय निलोवाना वलासोवा, एक मजदूर की पत्नी है जो अपने बेटे, पावेल, के क्रांतिकारी विचार से प्रेरित है। पावेल अपने साथी गीतकार के साथ मिलकर सामूहिक समाजवाद और लोकतंत्र के अधिकार के लिए संघर्ष करता है। पेलागेय, जिसने केवल एक साधारण गृहिणी में शुरुआत की, धीरे-धीरे अपने बेटों के विचारों को समझ गई और उसकी क्रांतिकारी क्रांतिकारी स्थिति में भाग लेना शुरू कर दिया। आज गोर्की की चर्चा इसलिए क्योंकि आज उनकी जन्म जयंती है।
मैक्सिम गोर्की (28 मार्च 1868 -18 जून 1936) रूस/सोवियत संघ के प्रसिद्ध लेखक तथा राजनीतिक कार्यकर्ता थे। उनका असली नाम “अलिक्सेय मक्सीमविच पेश्कोव” था। उन्होंने “समाजवादी यथार्थवाद” नामक साहित्यिक परिभाषा की स्थापना की थी। सन् 1906 से लेकर 19130तक और फिर 1921 से 1929 तक वे रूस से बाहर इटली के कैप्री में रहे। सोवियत संघ वापस आने के बाद उन्होंने उस समय की सांस्कृतिक नीतियों को स्वीकार किया किन्तु उन्हें देश से बाहर जाने की आज़ादी नहीं थी। मैक्सिम गोर्की का जन्म निझ्नी नोवगरद नगर में हुआ। गोर्की के पिता बढ़ई थे। 11 वर्ष की आयु से ही गोर्की काम पर लग गए। 1884 में गोर्की का मार्क्सवादियों से परिचय हुआ। 1888 में गोर्की पहली बार गिरफ्तार किए गए । 1891 में गोर्की देशभ्रमण करने के लिए निकले। 1892 में गोर्की की पहली कहानी “मकर छुद्रा” प्रकाशित हुई। गोर्की की प्रारंभिक कृतियों में रोमांसवाद और यथार्थवाद का मेल दिखाई देता है। “बाज़ के बारे में गीत” (1895), “झंझा-तरंगिका के बारे में गीत” (1895) और “बुढ़िया इजरगिल” (1901) नामक कृतियों में क्रांतिकारी भावनाएँ प्रकट हुई थीं। दो उपन्यासों, “फ़ोमा गार्दियेफ़” (1899) और ” वे तीन” (1901) में गोर्की ने शहर के अमीर और गरीब लोगों के जीवन का वर्णन किया है। 1899-1900 में गोर्की का परिचय चेख़फ़ और लेव तलस्तोय से हुआ। उसी समय से गोर्की क्रान्तिकारी आंदोलन में भाग लेने लगे। 1901 में उन्हें फिर गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें कालेपानी की सज़ा हुई। 1902 में विज्ञान अकादमी ने गोर्की को सामान्य सदस्य की उपाधि दी परन्तु रूस के ज़ार ने इसे रद्द कर दिया।
गोर्की ने अनेक नाटक भी लिखे, जैसे “सूर्य के बच्चे” (1905), “बर्बर” (1905), “तलछट” (1902) आदि, जो बुर्जुआ विचारधारा के विरुद्ध थे। गोर्की के सहयोग से “नया जीवन” बोल्शेविक समाचारपत्र का प्रकाशन हो रहा था। 1905 में गोर्की पहली बार लेनिन से मिले। 1906 में गोर्की विदेश गए, वहीं इन्होंने “अमरीका में” नामक एक कृति लिखी, जिसमें अमरीकी बुर्जुआ संस्कृति के पतन का व्यंगात्मक चित्र दिया गया था। नाटक “शत्रु” (1906) और “मां” उपन्यास में (1906) गोर्की ने बुर्जुआ लोगों और मजदूरों के संघर्ष का वर्णन किया है। विश्वसाहित्य में पहली बार इस विषय में कुछ लिखा गया था। इन रचनाओं में गोर्की ने पहली बार क्रांतिकारी मज़दूर का चित्रण किया था। लेनिन ने इन कृतियों की प्रशंसा की। 1905 की क्रांति के पराजय के बाद गोर्की ने एक लघु उपन्यास – “पापों की स्वीकृति” (“इस्पावेद”) लिखा, जिसमें कई अध्यात्मवादी भूलें थीं, जिनके लिए लेनिन ने इसकी सख्त आलोचना की। “आखिरी लोग” और “गैर-ज़रूरी आदमी की ज़िन्दगी” (1911) में सामाजिक कुरीतियों की आलोचना है। “मौजी आदमी” नाटक में (1910) बुर्जुआ बुद्धिजीवियों का व्यंगात्मक वर्णन है। इन वर्षों में गोर्की ने बोल्शेविक समाचारपत्रों “ज़्विज़्दा” और “प्रवदा” के लिये अनेक लेख लिखे। 1911-13 में गोर्की ने “इटली की कहानियाँ” लिखीं जिनमें आजादी, मनुष्य, जनता और परिश्रम की प्रशंसा की गई थी। 1912-16 में “रूस में” कहानी-संग्रह प्रकाशित हुआ था जिसमें तत्कालीन रूसी मेहनतकशों की मुश्किल ज़िन्दगी प्रतिबिम्बित होती है।
गोर्की सोवियत लेखकसंघ के अध्यक्ष थे। गोर्की की समाधि मास्को के क्रेमलिन के समीप है। मास्को में गोर्की संग्रहालय की स्थापना की गई थी। निझ्नी नावगरद नगर को “गोर्की” नाम दिया गया था। गोर्की की कृतियों से सोवियत संघ और सारे संसार के प्रगतिशील साहित्य पर गहरा प्रभाव पड़ा। गोर्की की अनेक कृतियाँ भारतीय भाषाओं में अनूदित हुई हैं। महान हिंदी लेखक प्रेमचंद गोर्की के गहरे प्रशंसक थे।
असमर्थ युग के समर्थ लेखक के रूप में मैक्सिम गोर्की को जितना सम्मान, कीर्ति और प्रसिद्धि मिली, उतनी शायद ही किसी अन्य लेखक को अपने जीवन में मिली होगी। वे क्रांतिदृष्टा और युगदृष्टा साहित्यकार थे। जन्म के समय अपनी पहली चीख़ के बारे में स्वयं गोर्की ने लिखा है- ‘मुझे पूरा यकीन है कि वह घृणा और विरोध की चीख़ रही होगी।’ इस पहली चीख़ की घटना 1868 ई. की 28 मार्च की 2 बजे रात की है लेकिन घृणा और विरोध की यह चीख़ आज इतने वर्ष बाद भी सुनाई दे रही है। यह आज का कड़वा सच है और मैक्सिम गोर्की शब्दों का अर्थ भी है — बेहद कड़वा। निझ्नी नोवगरद ही नहीं विश्व का प्रत्येक नगर उनकी उस चीख से अवगत हो गया है।
अल्योशा यानी अलिक्सेय मक्सिमाविच पेशकोफ यानी मैक्सिम गोर्की पीड़ा और संघर्ष की विरासत लेकर पैदा हुए। उनके बढई पिता लकड़ी के संदूक बनाया करते थे और माँ ने अपने माता-पिता की इच्छा के प्रतिकूल विवाह किया था, किंतु मैक्सिम गोर्की सात वर्ष की आयु में अनाथ हो गए। उनकी ‘शैलकश’ और अन्य कृतियों में वोल्गा का जो संजीव चित्रण है, उसका कारण यही है कि माँ की ममता की लहरों से वंचित गोर्की वोल्गा की लहरों पर ही बचपन से संरक्षण प्राप्त करते रहे। साम्यवाद एवं आदर्शोन्मुख यथार्थभाव के प्रस्तोता मैक्सिम गोर्की त्याग, साहस एवं सृजन क्षमता के जीवंत प्रतीक थे। उनकी दृढ़ मान्यता थी कि व्यक्ति को उसकी उत्पादन क्षमता के अनुसार जीविकोपार्जन के लिए श्रम का अवसर दिया जाना चाहिए एवं उसकी पारिवारिक समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए वेतन या वस्तुएँ मिलना चाहिए। कालांतर में यही तथ्य समाजवाद का सिद्धांत बन गया। गोर्की का विश्वास वर्गहीन समाज में था एवं इस उद्देश्य- पूर्ति के लिए वे रक्त-क्रांति को भी जायज़ समझते थे।
उनकी रचनाओं में व्यक्त यथार्थवादी संदेश केवल रूस तक ही सीमित नहीं रहे। उनके सृजनकाल में ही उनकी कृतियाँ विश्वभर में लोकप्रिय होना प्रारंभ हो गईं। भारत वर्ष में तो 1932 से ही उनकी रचनाओं ने स्वतंत्रता संग्राम में अपनी निजी भूमिका संपादित की। उनकी रचनाओं के कथानक के साथ-साथ वह शाश्वत युगबोध भी है, जो इन दिनों भारत की राजनीतिक एवं साहित्यिक परिस्थिति में प्रभावशील एवं प्रगतिशील युगांतर उपस्थित करने में सहायक सिद्ध हुआ।
गोर्की ने अपने देश और विश्व की जनता को फासिज्म की असलियत से परिचित कराया था, इसलिए ट्राटस्की बुखारिन के फासिस्ट गुट ने एक हत्यारे डॉक्टर लेविल की सहायता से 18 जून 1936 को उन्हें जहर देकर मार डाला। गोर्की आज हमारे बीच नहीं हैं किंतु उनके आदर्श हमारे बीच जीवित हैं।
मानववाद के सजीव प्रतिमान, क्रांतिदृष्टा, कथाकार और युगदृष्टा विचारक के रूप में मक्सीम गोर्की आने वाली कई पीढ़ियों तक स्मरण किए जाते रहेंगे।
कौशल किशोर चतुर्वेदी
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। दो पुस्तकों “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।