जन्माष्टमी व्रत कब मनाया जाए

जन्माष्टमी व्रत कब मनाया जाए

यह व्रत भाद्रपद कृष्ण अष्टमी को किया जाता है। भगवान श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्ण अष्टमी बुधवार को रोहिणी नक्षत्र में अर्धरात्रि के समय में वृष के चंद्रमा में हुआ था अतः अधिकांश उपासक उक्त बातों में अपने अपने अभीष्ट युग का ग्रहण करते हैं । परंतु शास्त्र में इसका दो भेद है एक है सुद्धा और विद्धा। सुद्धा मतलब यह है कि उदय से उदय पर्यंत अष्टमी हो तो सूद्धा कहलाता है। और सप्तमी या नवमी युक्ता अष्टमी हो तो विद्धा कहा जाता है। समान समान और न्यून अधिक भेद से तीन प्रकार है। यदि परंतु सिद्धांत रूप में तत्काल व्यापिनी अर्धरात्रि में रहने वाले तिथि को ही अधिक मान्य होती है। वह यदि 2 दिन का हो या दोनों ही दिन में ना हो तो सप्तमी विद्धा को सर्वथा त्याग कर नवमी विद्धा को ग्रहण करना चाहिए।

हमारे अनेक अनेक पुराणों में भी इसका वर्णन है।

माधव का मत है कि अष्टमी दो प्रकार की है पहले जन्माष्टमी और दूसरी जयंती इसमें पहले केवल अष्टमी को ही माना गया है।
स्कंद पुराण में भी यही बात कही गई है

निर्णय सिंधु में कहा गया है कि यदि दिन या रात में कला मात्र में भी रोहिणी हो तो विशेषकर चंद्रमा से मिली हुई रात्रि को मान लेना चाहिए।

भविष्य पुराण में कहा गया है कि भाद्रपद मास के कृष्ण जन्माष्टमी व्रत को कहा गया है। केवल जन्माष्टमी में ही उपवास करना है। यदि वह तिथि रोहिणी नक्षत्र युक्त हो तो जयंती नाम से कही जाती है।
बन्ही पुराणों में कहा गया है कृष्ण पक्ष की अष्टमी यदि एक कला भी रोहिणी नक्षत्र हो तो उसको जयंती के नाम से कहा जाता है उसमें प्रयत्न से उपवास करना चाहिए।

विष्णु रहस्य में भी कहा गया है कि कृष्ण पक्ष अष्टमी में रोहिणी नक्षत्र युक्त भाद्रपद मास में हो तो जयंती नाम वाली कही गई है।

ज्योतिष के विद्वानों ने भी रोहिणी योग अर्धरात्रि में उत्तम , अर्ध रात्रि के बाद रोहिणी योग मध्यम, और दिन के आदि में रोहिणी नक्षत्र अधम कहा गया है।
वशिष्ट संहीता में वर्णन है कि यदि अष्टमी तथा रोहिणी इन दोनों का योग अर्धरात्रि में अंश पूर्ण भी हो तो मुहूर्त मात्र में भी यह योग से उसी दिन को ही मान लेना चाहिए।

विष्णुधर्मोत्तरा पुराण में भी कहा गया है यह योग आधी रात के बाद रोहिणी उदय होने पर शुद्ध आत्मा स्नान कर यदि उसी दिन अगर उदय कालीन में अष्टमी हो तो भी उसी दिन को व्रत पालन कर लेना चाहिए ।

निर्णय सिंधु में एक और वाक्य कहा है कि जब पूर्व दिन या पर दिन रोहिणी नक्षत्र योग हो और अष्टमी का सहयोग हो तो उसी दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म उत्सव पालन करना चाहिए।

इसी बात को माधव ने भी यही कहा है कि जिस वर्ष में जयंती का योग जन्माष्टमी में हो तो जयंती में अन्तर्भूत नक्षत्र योग की प्रशंसा जानना चाहिए।

मदन रत्न, निर्णयामृत, गौड़ और मैथिली मत भी यही है ।

हिमाद्रि में वर्णन है कि रोहिणी युक्त उपष्य (उपवास के तुल्य) सब पाप को नाश करने वाली है। यदि आधीरात के पूर्व हो या बाद हो एक कला से भी रोहिणी सहयोग हो तो उस दिन जन्माष्टमी व्रत अत्यंत शुभ है।

अग्नि पुराण के अनुसार आधी रात में रोहिणी का योग अंश मात्र भी हो आधी रात्रि में ना हो परंतु चंद्रमा से ही रोहिणी नक्षत्र का योग हो तो उसी दिन ही जन्माष्टमी व्रत पालन करना यह उत्तम है।

विष्णुधर्मोत्तरा पुराण में भी कहा गया है आधी रात के समय में रोहिणी में जब कृष्णाष्टमी हो तो उसमें कृष्ण अर्चन पूजन करने से अनेक पापों को नष्ट हो जाता है।

हम श्री कृष्ण जन्म का पालन करते समय कुछ अन्य बात भी ध्यान रखना चाहिए कि अगर दिन में अष्टमी हो और रात्रि के अंत में रोहिनियुक्त हो तो यह जयंती के लिए विशेष शास्त्र मत है।

ब्रह्मांड पुराण में कहा गया है अभिजीत नामवाला नक्षत्र था जयंती नामवाली रात्रि विजय नाम का मुहूर्त होता है इसी में भगवान श्रीकृष्ण जनार्दन अवतरित हुए हैं। तो दिन में या रात में कला मात्र भी रोहिणी का योग हो अष्टमी संयोग हो बुधवार का दिन हो तो यह जन्म उत्सव के लिए सबसे ग्राहय् है । इसमें रोहिणी का योग आधी रात में भी ही तो व्रत महोत्सव के लिए उत्तम है। इन सभी पुराण मत के अनुसार इस वर्ष भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म उत्सव 12 अगस्त को मनाया जाए क्योंकि 12 अगस्त को बुधवार भी है उदया तिथि में अष्टमी है रोहिणी नक्षत्र रात्रि में स्पर्श कर रही है और इसी दिन भाद्रपद कृष्ण अष्टमी भी है इस सूत्र के अनुसार 12 तारीख को भगवान श्री कृष्ण जी का जन्म उत्सव व्रत है बड़े आनंद से हर्ष उल्लास से व्रत महोत्सव मनाएं।

पंडित दिनेश गुरुजी
माँ शारदा ज्योतिषधाम अनुसंधान संस्थान इंदौर
*9977794111,982602535

आप सभी को श्री कृष्ण जन्म उत्सव पावन पर हार्दिक शुभकामनाएं। भगवान बालमुकुंद श्री गोपाल जी की कृपा से आप सभी का मंगलमय हो स्वस्थ रहें निरोग रहे यही में कामना करता हूं??????

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