हजार साल पहले धार में परमार वंश का शासन था। यहां पर 1000 से 1055 ईस्वी तक राजा भोज ने शासन किया। कहा जाता है कि उन्होंने भोजशाला का निर्माण कराया था।
मध्यप्रदेश के धार की भोजशाला पर हिंदू और मुस्लिम समाज के बाद अब जैन समाज ने भी दावा किया है। जैन समाज ने 22 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर समाज को तीसरी पार्टी के रूप में शामिल करने की अपील की है। इसकी खबर बुधवार को सामने आई।
याचिका में कहा गया है, ‘सुप्रीम कोर्ट इस मामले में जैन समाज का पक्ष भी सुने क्योंकि ब्रिटिश म्यूजियम में जो मूर्ति है, वह जैन धर्म की देवी अंबिका की है, वाग्देवी (सरस्वती) की नहीं। भोजशाला में ASI के वैज्ञानिक सर्वे में भी बहुत सी मूर्तियां निकली हैं, वह भी जैन धर्म से संबंधित हैं।’
जैन समाज ने कहा- भोजशाला हमारी, पूजा का अधिकार मिले
जैन समाज के याचिकाकर्ता सलेकचंद्र जैन ने कहा कि भोजशाला जैन समाज की है। समाज को पूजा का अधिकार मिले और इसे समाज को सौंपा जाए। उन्होंने कहा कि 1875 में खुदाई के दौरान भोजशाला से वाग्देवी की मूर्ति निकली थी, लेकिन दरअसल वह जैन धर्म की देवी अंबिका की मूर्ति है।
वाग्देवी सरस्वती की मूर्ति अभी लंदन के म्यूजियम में सुरक्षित है।
जैन समाज की कहानी…भोजशाला एक जैन गुरुकुल था
जैन समाज के याचिकाकर्ता सलेकचंद्र जैन ने बताया, ‘राजा भोज कवियों को पसंद करते थे। वे सर्व धर्म प्रेमी थे। उनके दरबार में धनंजय जैन कवि थे। उनका नाम धनपाल भी था। कवि धनंजय जैन ने एक किताब संस्कृत में लिखी थी। उसके कुछ श्लोक राजा भोज को सुनाए थे। राजा भोज काफी प्रभावित हुए और कवि की प्रशंसा की।
कवि ने राजा से कहा कि मैं तो कुछ भी नहीं हूं। मेरे गुरु आचार्य महंत मानतुंग हैं। मैं उनका शिष्य हूं। उन्हीं से मैंने सीखा है। तब राजा भोज को लगा कि ऐसे गुरु से मिलना चाहिए। उन्होंने सेवक भेज गुरु को बुलावा भेजा। आचार्य पहाड़ पर तपस्या कर रहे थे। उन्होंने जाने से मना कर दिया। इससे राजा भोज नाराज हो गए और उन्होंने आचार्य को बलपूर्वक खींचकर लाने के आदेश दे दिए। बाद में आचार्य को कारागार में डाल दिया। आचार्य ने भक्तामर स्तोत्र की रचना की।
बाद में आचार्य से राजा भोज बहुत प्रभावित हुए। राजा भोज ने मालवा प्रांत में जैन धर्म के बहुत सारे मंदिर बनवाए। भोजशाला एक जैन गुरुकुल था। इसमें सभी धर्म के बच्चे पढ़ने आते थे। जैन धर्म की प्राकृत भाषा का संस्कृत में अनुवाद भी भोजशाला में होता था। यहां आदिनाथ भगवान का मंदिर भी था। यहां से नेमीनाथ भगवान की मूर्ति भी निकली है, जो 22वें तीर्थंकर है। भोजशाला में जैन धर्म से संबंधित कुछ चिह्न भी निकले है। जैसे कछुआ निकला है। हमारे जो 20वें तीर्थंकर है, उनका चिह्न कछुआ था। शंख भी मिला है। 22वें तीर्थंकर नेमीनाथ भगवान का चिह्न शंख था।
ASI सर्वे में 7 प्रमुख तथ्य सामने आए
गर्भगृह का पिछला हिस्सा: यहां अंदर 27 फीट तक खुदाई की गई है, जहां दीवार का ढांचा मिला है।
सीढ़ियों के नीचे का बंद कमरा: यहां से वाग्देवी, मां सरस्वती, हनुमानजी, गणेशजी समेत अन्य देवी प्रतिमा, शंख, चक्र सहित 79 अवशेष मिले हैं।
उत्तर-पूर्वी कोना व दरगाह का पश्चिमी हिस्सा: यहां से श्रीकृष्ण, वासुकी नाग और शिवजी की प्रतिमा मिली है।
उत्तर-दक्षिणी कोना: स्तंभ, तलवार, दीवारों के 150 नक्काशी वाले अवशेष मिले हैं।
यज्ञशाला के पास: सनातनी आकृतियों वाले पत्थर मिले हैं।
दरगाह: अंडरग्राउंड अक्कल कुइया चिह्नित हुई।
स्तंभों पर: केमिकल ट्रीटमेंट के बाद सीता-राम, ओम नम: शिवाय की आकृतियां चिह्नित हुई हैं।