अब जोड़ो के दर्द के छुट्टी,शोध से जागी उम्मीद इससे लंगड़ा चूहा भी सही चलने लगा

लोहे के मशीन, घर के गेट-ग्रील वगैरह या फिर गाड़ी का इंजन के ठीक से चलने और काम करने के लिए जिस तरह ग्रीस, मोबिल, पेस्ट और इंजन ऑयल का महत्व होता है, उसी तरह शरीर के जोड़ों के ठीक से काम करने के लिए कार्टिलेज का महत्व होता है। कार्टिलज यानी ऊतकों का समूह, जो हड्डियों के जोड़ों के बीच गद्दी की तरह काम करता है। इसके खत्म होने की वजह से ही जोड़ों की हड्डियां टकराती हैं और ऑस्टियोआर्थराइटिस जैसी दर्दनाक समस्या पैदा होती है। बढ़ती उम्र के साथ अक्सर लोगों को यह समस्या होती है। वैज्ञानिकों ने इस बीमारी का इलाज ढूंढ निकाला है।

चूहों के जोड़ों में नए कार्टिलेज विकसित करने में मिली सफलता

नेचर मेडिसिन में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक वैज्ञानिकों ने आर्थराइटिस से पीड़ित चूहों के जोड़ों में नए कार्टिलेज विकसित करने में सफलता हासिल कर ली है। इसके लिए स्टेम सेल का इस्तेमाल किया गया, वह हड्डियों के कोनों में निष्क्रिय पड़ी थी। वैज्ञानिकों ने इन्हें जागृत किया और विकसित होने के लिए प्रेरित किया। वैज्ञानिकों के मुताबिक नया शोध ऐसे चूहों पर किया गया, जिनके घुटनों में आर्थराइटिस था। प्रयोग में ऐसे चूहे भी शामिल किए, जिन्हें मानव हड्डी प्रत्यारोपित की गई थी। दोनों स्थितियों में सामान्य कार्टिलेज विकसित हुए। पहला चूहा ठीक से चल नहीं पाता था। कार्टिलेज विकसित होने के बाद उसका लंगड़ापन खत्म हो गया है।

भारत में हर साल 1.5 करोड़ वयस्क ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित

शोधकर्ताओं का कहना है कि अब वे बड़े जानवरों में इन कार्टिलेज को विकसित करके देखेंगे। उम्मीद है कि इसके निष्कर्ष इंसानों में आर्थराइटिस के इलाज का मार्ग प्रशस्त करेंगे। मालूम हो, डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 60 साल से ज्यादा उम्र के 9.6 फीसदी पुरुष और 18 फीसदी महिलाएं ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित होती है। डॉक्टरों का दावा है कि भारत में हर साल 1.5 करोड़ वयस्क ऑस्टियोआर्थराइटिस से पीड़ित होते हैं। 2025 तक ऐसे छह करोड़ केस के साथ भारत ऑस्टियोआर्थराइटिस की कैपिटल बन सकता है।

इससे महिलाएं ज्यादा प्रभावित शुरुआत में इलाज हो सकेगा

2018 में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के चार्ल्स वॉक फई चान ने हड्डियों में ऐसी सुप्त स्टेम सेल खोजी थी, जिनसे कार्टिलेज विकसित हो सकते थे। चुनौती यह थी कि इन्हें जागृत कैसे किया जाए। ताजा शोध के अगुवा डॉ माइकल लोंगाकर ने तीन चरण खोजें। उन्होंने उम्मीद जताई है कि इंसानों में बीमारी के शुरुआती चरण में ही इलाज हो सकेगा।

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