आरक्षण पर राजनीति

शिवराज नहीं चाहते पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण मिले,
13 सालों तक मुख्यमंत्री रहे तब कोर्ट में जवाब देने अधिवक्ता तक नियुक्त नहीं किया?
भोपाल/ग्वालियर, 2 अगस्त- मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग को शासकीय सेवाओं में 27 फीसदी आरक्षण नहीं मिलनेे पर प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री एवं प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष श्री कमलनाथ को पत्र लिखकर लगाए गए आरोपों पर पलटवार किया है। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता श्री केके मिश्रा, पूर्व महापौर एवं प्रदेश प्रवक्ता श्रीमती विभा पटेल एवं ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में याचिकाओं की पैरवी कर रहे अधिवक्ता श्री रामेश्वर सिंह ठाकुर ने संयुक्त बयान में कहा है कि शिवराज सिंह चौहान चाहते ही नहीं हैं कि मप्र में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को  27 फीसदी आरक्षण मिले। यदि ऐसा होता तो वे अपने पिछले 14 के कार्यकाल में ओबीसी आरक्षण को लेकर हाईकोर्ट में सरकार की ओर से मजबूती से पक्ष रखते थे! शिवराज सरकार ने हाईकोर्ट में ओबीसी आरक्षण पर सरकार का पक्ष रखने के लिए ऐसा अधिवक्ता ही नियुक्ति नहीं किया, जिसे ओबीसी आरक्षण की जानकारी हो। श्री शिवराज सिंह चौहान खुद पिछड़े वर्ग से आते हैं, लेकिन उन्हें पिछड़े वर्ग को 27 फीसदी आरक्षण देने के मामले में बोलने का अधिकार नहीं है।
  आज यहां जारी अपने संयुक्त बयान में कांग्रेस नेताओं ने कहा कि श्री दिग्विजयसिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने 17 साल पहले 30 जून 2003 को मप्र में पिछड़ों को 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला किया था। इसके बाद दिसंबर 2003 में भाजपा की सरकार आ गई और ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने का मामला जबलपुर हाईकोर्ट में गया। ओबीसी आरक्षण पर पूर्व मुख्यमंत्री श्री कमलनाथ की मंशा पर सवाल उठाने वाले श्री शिवराज सिंह चौहान 2005 से लेकर 2018 तक मप्र के मुख्यमंत्री रहे, लेकिन ओबीसी आरक्षण को लेकर उन्होंने हाईकोर्ट में सरकार का पक्ष रखने के लिए अधिवक्ता तक नियुक्त नहीं किया था,ऐसा क्यों?भाजपा सरकारों में तीन-तीन मुख्यमंत्री पिछड़े वर्ग के होने के बावजूद उनके द्वारा पिछड़े वर्ग के लिए कोई काम नहीं किया गया? मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा सरकार ने पिछड़ों के अधिकारों को लेकर घोर उपेक्षा एवं लापरवाही की थी। यही वजह रही कि 13 अक्टूबर 2014 को जबलपुर हाईकोर्ट में मप्र सरकार की ओर से० ओबीसी आरक्षण पर मजबूती से पक्ष नहीं रखने पर 27 प्रतिशत आरक्षण खारिज कर 14 फीसदी ही रखने का फैसला किया था। मिश्रा, श्रीमती पटेल एवं अधिवक्क्ता ठाकुर ने कहा कि मध्यप्रदेश में दिसंबर 2018 में फिर से श्री कमलनाथ जी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी। उन्होंने मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद ही ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने की दिशा में काम शुरू किया और 8 मार्च 2019 को ओबीसी को शासकीय सेवाओं में 14 से बढ़ाकर 27 फीसदी आरक्षण देने का फैसला कर दिया। इसके विरोध में जबलपुर हाईकोर्ट में पहली याचिका क्रमांक 5907/2019 दायर की गई। इसके बाद कमलनाथ सरकार ने जुलाई 2019 में विधानसभा में बहुमत से पारित कर आरक्षण अधिनियम की धारा-4 (चार)में विधिवत संशोधन किया गया। इसके बाद सामान्य प्रशासन विभाग की ओर से 19 अगस्त 2019 को ओबीसी को शासकीय सेवाओं में आरक्षण 14 फीसदी से बढ़ाकर 27 फीसदी करने का रोस्टर जारी किया गया।
  नेताओं ने आगे बताया कि ओबीसी के 27 फीसदी आरक्षण से जुड़ी सभी 14 याचिकाओं में अपाक्स (अन्य पिछड़ा वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संघ)कोर्ट में पक्ष रख रहा है। याचिकाओं की पैरवी अधिवक्ता श्री रामेश्वर ठाकुर कर  रहे हैं।
हाईकोर्ट ने आरक्षण पर नहीं लगाई रोक, सरकार भ्रम न फैलायें,
प्रवक्तागणों ने कहा कि प्रदेश में फिर से भाजपा की सरकार है और शिवराज सिंह चौहान ही मुख्यमंत्री हैं।ओबीसी आरक्षण पर दायर 14 याचिकाओं पर 20 जुलाई 2020 को जलबपुर हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान मप्र सरकार ने न तो उचित पक्ष रखा और न ही मप्र शासन द्वारा उक्त प्रकरणों जवाब प्रस्तुत किया जा रहा है। हाईकोर्ट द्वारा ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण के प्रवर्तन पर किसी प्रकार की रोक नहीं लगाई गई है, लेकिन वर्तमान भाजपा सरकार द्वारा मप्र में ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण लागू नहीं किया जा रहा है। मीडिया के माध्यम से भ्रामक जानकारी प्रकाशित करवाकर ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण पर रोक की बात कही जा रही है, जो कि सर्वथा गलत है। जब हाईकोर्ट ने रोक नहीं लगाई तो फिर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ओबसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने से पीछे क्यों हट रहे हैं।

सादर प्रकाशनार्थ
के.के.मिश्रा- विभा पटेल

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