एक तरफ प्रधानमंत्री मेक इन इंडिया को बढ़ावा देने की बता कर रहे हैं और दूसरी तरफ इंदौर में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड हमें बात-बात पर फैक्टरी बंद करने के नोटिस दे रहा है। इंदौर ही ऐसा शहर है जहां एक ही काम के दो लाइसेंस लेना पड़ रहे हैं। बोर्ड कभी पॉल्यूशन के उपकरण लगाने तो कभी सीएनजी के उपयोग की बात करता है।
35 से 40 लाख खर्च कर सीएनजी कनेक्शन ले लिया पर 1450 से 1500 डिग्री तापमान ही नहीं मिल रहा। गैस सिर्फ कैंटीन में काम आ रही है। अब कह रहे हैं, इंडस्ट्री हटाओ।
यह पीड़ा है एसोसिएशन ऑफ इंडस्ट्री से जुड़े उन उद्योगों की, जो प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अलग-अलग नोटिस व नियमों से परेशान हैं। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट से पहले शुक्रवार को एआईएमपी मेंबर और पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. नवनीत मोहन कोठारी के बीच एआईएमपी कार्यालय में खुला संवाद हुआ। उद्योगपतियों ने बैठक में जमकर भड़ास निकाली।
एक प्रतिनिधि ने कहा कि हमें कहा जा रहा है कि यहां से फैक्ट्री बंद करके बाहर लगाओ। हमें 30 से 40 किमी बाहर जाना पड़ेगा। जो लोग काम कर रहे हैं, उनकी नौकरी चली जाएगी। अब तक जो कहा गया, सब किया। आगे भी जो कहा जाएगा वह करेंगे पर वह फिजिबल तो हो। ये कहां का न्याय है कि सारे नियम केवल इंदौर के लिए हैं। ऐसा ही रहा तो हम ग्वालियर, भोपाल से भी मुकाबला नहीं कर पाएंगे। इंदौर में कोई निवेश ही नहीं होगा।
पूरा जोर उपकरण लगवाने पर- किसी ने कहा, हमें 50 साल हो गए फैक्ट्री चलाते हुए। 150 कर्मचारी अंदर काम करते हैं, 350 को उसी से बाहर रोजगार मिलता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से हर तीन-चार महीने में नोटिस आ जाता है कि या तो प्लांट बंद कर दो या पॉल्यूशन के उपकरण लगवा लो। हमारा इंटरनेशनल एक्सपोजर है। नेशनल एनर्जी कंजर्वेशन अवॉर्ड भी मिला है। माल एक्सपोर्ट होता है तो हमें पहले ही कई कम्प्लाइंस देना होते हैं।
उद्यमी बोले- हम बिजनेस करें या जेल जाएं
- ईज ऑफ डूइंग बिजनेस तभी जब विभाग हाथ थामेगा।
- यदि उद्योगपतियों की ऊर्जा केवल चक्कर काटने में जाएगी तो बिजनेस कैसे करेंगे?
- चिप्स निर्माता कंपनी के प्रतिनिधि ने कहा, हम मात्र एक से डेढ़ रुपए के मार्जिन पर काम करते हैं। बॉयलर और पीएनजी पर जाते हैं तो कॉस्ट में दो से तीन रुपए का अंतर आएगा। 15 टन का बॉयलर एकदम शिफ्ट करना मुश्किल है।
- सिंगल लाइसेंस सिस्टम हो। कॉस्ट कैलकुलेशन में अन्य चीजों को जोड़ा जाता है, वह गलत है।
- एक उद्यमी ने कहा 2012 में हमारी फैक्टरी से पानी का सैंपल लेकर गए थे। कब आए, कब लेकर गए, हमें भी पता नहीं। जिस जगह काम कर रहे हैं, वहां न ड्रेनेज, न वाटर लाइन है, जंगल जैसा इलाका है। पास में नाला है जो आधा सूखा है। 2012 का केस लेकर 2022 में पुलिस आती है कि आप पर एफआईआर दर्ज है। क्या है केस, पता ही नहीं? किससे पूछेंगे हम?
जो नियम देश में लागू है, वही इंदौर में लागू हो एक नमकीन मैन्युफैक्चर ने कहा, हमें अभी दो रुपए किलो का खर्च आता है। गैस पर जाएंगे तो 7 से 8 रुपए किलो खर्च आएगा। मार्जिन 50 पैसे से एक रुपए का ही है। ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की बात तो होती है पर इसका असर नहीं दिखता। इंदौर में भी वही नियम लागू कीजिए जो पूरे भारत में है। एआईएमपी के अध्यक्ष योगेश मेहता ने इंडस्ट्री की परेशानी बताते हुए कहा, हमें इंडस्ट्री चलाने दीजिए, कोर्ट के चक्कर मत कटवाइए। संवाद में प्रमुख रूप से सतीश मित्तल, नवीन धूत, मनीष चौधरी, भुवनेश पांडेय, अजय शर्मा, सचिव तरुण व्यास, प्रमोद डफरिया ने भी बात रखी।
पीएस बोले- समस्याएं समझीं, स्टडी करवाएंगे
^प्रमुख सचिव डॉ. कोठारी ने कहा, आपकी समस्याएं जानने के लिए ही यह खुला संवाद रखा था। इंदौर अच्छा शहर है, इसलिए यहां अपेक्षाएं ज्यादा हैं। आपकी समस्याएं समझना थीं। हम स्टडी करवाएंगे, कोशिश करेंगे, किसी को शिफ्ट न करना पड़े।