हर दिल में ‘भारत रत्न’ की तरह समाए रहेंगे ‘राम सहाय पांडे’… कौशल किशोर चतुर्वेदी

हर दिल में ‘भारत रत्न’ की तरह समाए रहेंगे ‘राम सहाय पांडे’…

‘अपमान’ को ‘सम्मान’ में बदलने का संघर्ष करने का हौसला महापुरुष होने का प्रमाण है। ‘उपेक्षित’ को गले लगाकर पहली पंक्ति में स्थापित करने का आत्मबल रखना देवपुरुष की पहचान है। छुआछूत और जातिवाद से अभिशप्त ‘कला’ को पूरे बुंदेलखंड और देश में गौरव दिलाने का महायज्ञ करने का महाबल ‘युगपुरुष’ की सोच में ही समाहित होता है। ऐसे ही गुणों की खान रहे राम सहाय पांडे आपने बुंदेलखंड में जाति और छुआछूत से लिपटी ‘राई’ को आज ‘नृत्य लोककला’ में स्थापित कर एक ‘पर्वत’ की तरह ऊंचाई प्रदान की है। आइए आज ऐसे विराट व्यक्तित्व ‘राम सहाय पांडे’ के अनुकरणीय जीवन को दिल में बसाते हैं।
राम सहाय पांडे (11 मार्च 1933 – 8 अप्रैल 2025) मध्य प्रदेश के सागर जिले के एक राई नर्तक थे। राई नृत्य पारंपरिक रूप से बेडिया समुदाय से जुड़ा हुआ था, जो समुदाय खुद देह व्यापार से जुड़ा हुआ था। इस तथ्य के बावजूद कि वे समुदाय के सदस्य नहीं थे, उन्होंने अपना पूरा जीवन राई नृत्य के अभ्यास और प्रदर्शन के लिए समर्पित कर दिया और नृत्य शैली को स्वीकृति और सम्मान दिलाया। उनके अथक प्रयासों से इस नृत्य शैली को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मान्यता मिली।
“राई नृत्य शैली मूल रूप से बुंदेलखंड क्षेत्र का एक लोक नृत्य है। राई का मतलब है सरसों के बीज। जब सरसों के बीज एक तश्तरी में डाले जाते हैं तो वे झूलते हैं। इसी तरह, जब गायक किस्से और गीत गाते हैं तो क्षेत्र के मूल निवासी भी झूमते हैं। यह संगीत की धुनों और नर्तकियों के बीच एक तरह की प्रतिस्पर्धा है। ढोल बजाने वाला और नर्तक एक-दूसरे को जीतने की कोशिश करते हैं और प्रतिस्पर्धा आनंद की ओर ले जाती है।” वर्ष 2022 में भारत सरकार ने कला में उनके योगदान के लिए राम सहाय पांडे को पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित कर वास्तव में इस पुरस्कार को सम्मानित किया है।
राम सहाय पांडे का जन्म 11 मार्च 1933 को मध्य प्रदेश के सागर जिले के मडहर पाठा गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता लालजू पांडे एक किसान थे और राम सहाय पांडे चार भाइयों में सबसे छोटे थे। पांडे का राई नृत्य से पहला परिचय तब हुआ जब वह 14 वर्ष के थे। इस नृत्य शैली से मोहित होकर उन्होंने इसका अभ्यास करना शुरू कर दिया। मध्य प्रदेश में, राई का लोक नृत्य बेड़िया समुदाय से जुड़ा हुआ है। वे एक खानाबदोश जनजाति हैं जिन्हें आपराधिक जनजाति अधिनियम के तहत अधिसूचित किया गया था। इसके अलावा, कुछ लोग समुदाय को देह व्यापार से जोड़ते हैं। समुदाय और उनके नृत्य शैली से जुड़े इस कलंक के कारण, पांडे का परिवार उनके राई नृत्य शैली का अभ्यास करने के पूरी तरह से खिलाफ था। पांडे ने कहा है कि “मैं इस नृत्य का अभ्यास करने के लिए अपने परिवार के साथ-साथ ब्राह्मण समुदाय से भी लड़ रहा था। मैं उन्हें समझाता था कि यह एक कला है और कुछ नहीं, लेकिन उन्होंने मुझे बहिष्कृत कर दिया। लेकिन इससे मुझे इसे चरम पर ले जाने की प्रेरणा मिली।” यहां तक ​​कि उनके बच्चे भी अपने पिता के राय नर्तक होने के कारण शर्मिंदा थे।
वर्ष 1968 में उन्होंने आकाशवाणी भोपाल में मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद नारायण सिंह और कई अन्य गणमान्य लोगों की मौजूदगी में राई नृत्य की प्रस्तुति दी। नृत्य की कला से सभी लोग आश्चर्यचकित रह गए और यही घटना उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई, क्योंकि इसके बाद उन्हें समाज में कुछ सम्मान मिलना शुरू हुआ। उनके ऐसे अथक संघर्ष के कारण ही आज बुंदेलखंड का यह नृत्य अपनी अलग पहचान बना चुका है, जिसका पूरा श्रेय राम सहाय पांडे को जाता है। पांडे कई वर्षों से युवक-युवतियों को राई नृत्य का प्रशिक्षण दे रहे थे। वर्ष 2006 में पांडे के नेतृत्व में मध्य प्रदेश सरकार की ओर से दुबई में राई नृत्य की प्रस्तुति दी गई। वर्ष 2000 में बुन्देली लोकनृत्य एवं नाट्य कला परिषद नामक संस्था की स्थापना की गई, जहां राई नृत्य का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। ऐसी महान शख्सियत राम सहाय पांडे का 8 अप्रैल 2025 को 92 वर्ष की आयु में निधन हो गया। ऐसे पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित पांडे जी को 1980 में मध्य प्रदेश सरकार द्वारा स्थापित आदिवासी लोककला परिषद का सदस्य चुना गया। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 1980 में ही “नृत्य शिरोमणि” की उपाधि से सम्मानित किया गया। मध्य प्रदेश सरकार द्वारा 1984 में “शिखर सम्मान” से सम्मानित किया गया। यह सभी सम्मान राम सहाय पांडे के पर्वत जैसे विराट कार्य के सामने राई की तरह ही हैं।
ऐसे में कबीरदास जी का यह दोहा मन में उतर जाता है। ” साहब सौ सब होत हैं बंदे ते कछु नाहिं, राई से परबत करे, परबत राई माहिं” यानि कबीरदास जी कहते हैं कि जीवन में जो भी कार्य हैं वह प्रभु की कृपा से ही पूर्ण होता है, सेवक के प्रयत्न से नहीं हो सकता। प्रभु ऐसी शक्ति है कि वह राई को पर्वत और पर्वत को राई में बदल सकते हैं। तो राम सहाय पांडे जी आपके माध्यम से ईश्वर की वह शक्ति ही फलीभूत हुई है, जिसके चलते ‘राई’ को कलारूपी पर्वत का आकार मिला है। आप यह महान कार्य कर हर दिल में ‘भारत रत्न’ की तरह समाए रहेंगे ‘राम सहाय पांडे जी’…बुंदेलखंड और भारत में आपका स्थान और कोई नहीं ले पाएगा…।

कौशल किशोर चतुर्वेदी

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। दो पुस्तकों “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।

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