इंदौर BRTS को हटाने पर बवाल — सुविधा और विरोध के बीच फंसा फैसला, इंदौर के दो बड़े नेता यह बोले… जानें BRTS तोड़ने की बड़ी वजहें — देखें VIDEO

इंदौर के BRTS में चलने वाली बसों से राेज 55 से 65 हजार यात्री सफर करते हैं।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 21 नवंबर को ऐलान किया कि इंदौर के बीआरटीएस को लेकर निर्णय ले लिया है। इससे लोगों को परेशानी हो रही है, इसे हटाया जाएगा। तब से यह चर्चाओं में है। एक तरफ जहां भाजपा-कांग्रेस के नेता एकमत होकर इसे तोड़ने के फैसले पर समर्थन दे रहे हैं तो दूसरी ओर स्टूडेंट्स और यात्री इसके विरोध में हैं।

यात्रियों का कहना है कि सफर में अभी 15 से 20 मिनट लग रहा है, वह आधे घंटे तक पहुंच जाएगा। जानकार भी इसके खिलाफ है। कहा कि बीआरटीएस प्रोजेक्ट को अगर प्रशासन समय-समय पर रूचि लेकर विस्तार करता तो तोड़ने की जरूरत ही नहीं पड़ती क्योंकि आज भी इंदौर का बीआरटीएस सफल प्रोजेक्ट की सूची में दूसरे नंबर पर है।

पहले जानिए कैसे बना इंदौर का BRTS

देश में पटाया सिटी के बीआरटीएस मॉडल को लागू किया गया है। सबसे पहले अहमदाबाद में बीआरटीएस बनवाया गया था। इंदौर में बीआरटीएस की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि पेट्रोल-डीजल महंगा हो रहा था। ऐसे में पब्लिश ट्रांसपोर्ट को बढ़ावा देकर निजी वाहनों की संख्या कम करना था। पॉल्यूशन लेवल को कम करना था। ऐसे में तत्कालीन कलेक्टर विवेक अग्रवाल ने इस पर काम शुरू किया।

पहला सवाल आया कि इसे कौन बनाएगा? क्योंकि तब भी इंदौर नगर निगम की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। उस समय केंद्र सरकार का एक प्रोजेक्ट आया था जवाहर लाल नेहरू नेशनल अर्बन रिनोवेशन मिशन। इस मिशन के तहत बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर वाले 63 शहरों को ग्रांट देने के लिए सिलेक्शन हुआ था। जिसमें इंदौर भी था।

तब इस प्रोजेक्ट के तहत इंदौर के बीआरटीएस का प्रपोजल आइडीए (इंदौर विकास प्राधिकरण) के जरिए तैयार कराया गया। इसके बाद राज्य सरकार ने केंद्र सरकार को भेजा था। केंद्र से पैसा मिल गया तब कलेक्टर विवेक अग्रवाल ने आइडीए से बीआरटीएस को आकार दिलाने का काम शुरू किया था।

दूसरा सवाल अब भी बाकी था। वह यह कि बसें कहां से आएगी? क्योंकि बीआरटीएस में चलाने के लिए बसें तो चाहिए। बसें देने के लिए राज्य और केंद्र सरकार ने मना कर दिया।

इसके बाद विवेक अग्रवाल जीरो फायनेंस बस मॉडल लेकर आए। एआईसीटीएसएल का गठन किया गया। यह ऐसा मॉडल था जिसमें प्रशासन या शासन ने अपनी जेब से एक रुपया भी नहीं लगाया और अलग-अलग ऑपरेटर के माध्यम से बसें शुरू की। इस मॉडल के तहत यह हुआ कि पूरा सिस्टम सरकारी था लेकिन बसें प्राइवेट थी।

इंदौर के ट्रांसपोर्ट विशेषज्ञों और वरिष्ठ पत्रकारों के अनुसार

BRTS तोड़ने की बड़ी वजहें…

फीडर कनेक्टिविटी को लागू नहीं किया गया। जिससे इसका इस्तेमाल सिर्फ स्टूडेंट और कुछ लोगों तक ही सिमट गया।

कॉमन व्हीकल लेन में एक जैसी जगह का नहीं थी। जिससे बॉटल नैक की समस्या बनती और बढ़ती गई। शासन-प्रशासन ने इस पर ध्यान नहीं दिया।

बस स्टाप के पास कार व दो पहिया वाहनों की पार्किंग न होना। इससे जो लोग बस में सफर करना चाहते हैं, उनके सामने वाहन रखने की समस्या थी।

आसपास की सर्विस रोड अवैध पार्किंग बनते गई। जहां पर सिर्फ कभी-कभार दिखावे की कार्रवाई की गई।

बीआरटीएस को इंदौर में 106.50 किलोमीटर हिस्से में बनाया जाना था लेकिन यह सिर्फ एबी रोड के 11.45 किलोमीटर में आने-जाने की बस सुविधा बनकर रह गया।

आगे बढ़ाने का काम विवेक अग्रवाल और आकाश त्रिपाठी तक ही सीमित रहा। किसी अन्य अधिकारी ने इस प्रोजेक्ट में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई।

देश का दूसरा सबसे अच्छा बीआरटीएस

वरिष्ठ पत्रकार जितेंद्र जाखेटिया ने बताया कि इंदौर का बीआरटीएस आज भी अहमदाबाद के बाद देश का दूसरा सबसे अच्छा बीआरटीएस है। बीआरटीएस तोड़ने के 3 प्रमुख कारण हैं।

पहला कारण : शुरुआत में तय हुआ था कि पायलट प्रोजेक्ट के तहत 11.5 किमी और बाद में अलग-अलग चरण में 105 किमी तक बनाया जाएगा। लेकिन, कभी भी पूरा काम नहीं हुआ।

दूसरा कारण: काॅरिडोर में बीच की लेन बस लेन और आसपास दोनों तरफ कॉमन व्हीकल लेन है, लेकिन कॉमन व्हीकल लेन की जगह पूरे बीआरटीएस में एक समान नहीं है। कहीं ज्यादा है तो कहीं कम है। अब बीआरएटीएस के इस लेन में आने वाले कई स्ट्रक्चर को तोड़ना था लेकिन वह नहीं हो पाया।

तीसरा कारण: बीआरटीएस पर सिर्फ कुछ कलेक्टरों ने ही ध्यान दिया। इस प्रोजेक्ट को शहर में आए हर कलेक्टर ने आगे बढ़ाने की तरफ देखा ही नहीं। जिससे बीआरटीएस प्रोजेक्ट की दुर्गति होती चली गई।

अब यात्रियों से जानिए कितना सही-गलत है BRTS

वसुधा ने बताया- हमें यह आने-जाने के लिए बहुत ही कनविनियंट रहता है। सस्ता पब्लिक ट्रांसपोर्ट भी है। इसे नहीं हटाना चाहिए।

विमल पारे ने बताया- इससे बहुत ही सुविधा होती है। इसके कारण हम समय पर गंत्वय तक पहुंच जाते हैं। लेट नाइट तक बसें चलती है।

सलोनी जायसवाल का कहना है कि सरकार को इसे नहीं हटाना चाहिए। यह सबसे अच्छी सुविधा है वहीं यह हम स्टूडेंट्स के लिए भी सबसे अच्छी सुविधा है।

नेहा परवार ने बताया कि जो इससे आना-जाना करते हैं। उनके लिए बहुत ही बढ़िया है। यह सुविधा सबसे अच्छी है।

प्रिंस अग्रवाल ने बताया कि इसे नहीं हटाना चाहिए। यह स्टूडेंट के लिए बहुत अच्छी सुविधा है। इसके कारण हम सस्ते में परिवहन कर पा रहे हैं।

सिटी इंजीनियर बोले- BRTS और मेट्रो जरूरत के हिसाब से नहीं

सिटी इंजीनियर अतुल सेठ का कहना है कि मेट्रो और बीआरटीएस दोनों एक लीनीयर फंक्शन है। जबकि इंदौर गोलाई में बसा हुआ शहर है। इंदौर के एक सिरे से दूसरे सिरे तक 12 से 13 किलोमीटर में आबादी है। आने वाले समय में अधिकतम 20 किलोमीटर होगी।

इंदौर शहर में मेट्रो और बीआरटीएस कभी भी उपयोगी नहीं होंगे। बीआरटीएस की बसों को नहीं हटा रहे बीआरटीएस का जो मार्ग है वह खत्म कर रहे, जो एलोकेटेड मार्ग है। बसें चलती रहेगी इंटरसिटी बस और बाकी जो बसे हैं वह भी यथावत रहेंगी। केवल उसके लिए एलोकेटेड डेडिकेटेड लेने हैं वह ओर बस स्टैंड हटाए जाएंगे। जिससे चौराहे पर जाम नहीं होगा। इंदौर शहर की एवरेज स्पीड में बढ़ोतरी होगी।

कांग्रेस ने कहा- 2015 से इसे हटाने की मांग कर रहे

इंदौर से बीआरटीएस को हटाने को लेकर कांग्रेस भी सरकार के पक्ष में नजर आ रही है। कांग्रेस प्रवक्ता अमित चौरसिया ने बताया-

2015 में महापौर का चुनाव हुआ था तब से कह रहे थे कि अधिकारी के भरोसे इंदौर को विकास की प्रयोगशाला नहीं बनाया जाए। BRTS को लेकर हमने उस समय भी कहा था कि हम बीआरटीएस को खत्म करेंगे। देखते हैं कितनी जल्दी अधिकारी इस पर अमल करते हैं।

हाईकोर्ट में है BRTS तोड़ने या न तोड़ने का मामला

इंदौर में बीआरटीएस तोड़ने या न तोड़ने का मामला मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में है। दरअसल, इंदौर में निरंजनपुर से राजीव गांधी प्रतिमा तक करीब 11.5 किमी लंबा बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम (बीआरटीएस) बना हुआ है। इसे लेकर दो जनहित याचिकाएं हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में लगी थी, जिसे हाईकोर्ट की मुख्य पीठ (जबलपुर) ट्रांसफर कर दिया है। मंगलवार को मुख्य न्यायाधिपति के सामने मामले में सुनवाई भी होना थी, लेकिन नंबर नहीं आया।

बीआरटीएस की उपयोगिता जांचने बनी थी ये कमेटी

हाईकोर्ट ने वर्तमान परिस्थितियों में बीआरटीएस प्रोजेक्ट की उपयोगिता और व्यावहारिकता की जांच के लिए 5 सदस्यों की कमेटी बनाने के निर्देश दिए थे। जिसमें वरिष्ठ अभिभाषक अमित अग्रवाल के साथ ही आईआईएम और आईआईटी के डायरेक्टर की ओर से नामित विशेषज्ञ शामिल थे। कोर्ट इसके पहले भी वर्ष 2013 में बीआरटीएस की उपयोगिता और व्यावहारिकता की जांच के लिए कमेटी गठित कर चुकी है।

अभी बीआरटीएस पर 59 बसें, इनमें 29 सीएनजी

इंदौर के बीआरटीएस पर अभी कुल 59 बस चल रही हैं। इनमें 29 बस सीएनजी हैं, बाकी डीजल हैं। डीजल की इन 20 बस को इलेक्ट्रिक बस से बदल दिया जाएगा। इसके अलावा 10 नई बस भी चलाई जाएगी। इससे बस ओवर लोडिंग की समस्या कम होगी। एआईसीटीएसएल (Atal Indore City Transport Services Limited) के अधिकारियों का कहना है कि डीजल बस को रिप्लेस करने का मुख्य उद्देश्य इंदौर बीआरटीएस को ग्रीन कॉरिडोर बनाना है। नई बस आने के बाद यहां चलने वाली बस की कुल संख्या 59 से बढ़कर 59 हो जाएगी। अभी बस का राजीव गांधी डिपो के अंदर ही चार्जिंग, कैपेसिटी और कम्फर्ट सहित अन्य पॉइंट पर ट्रायल किया जा रहा है।

रोज 55 से 65 हजार यात्री करते हैं सफर

बीआरटीएस कॉरिडोर शहर के बीचों बीच है, और ये लोगों के लिए बहुत ही उपयोगी है। इस रूट पर कई शैक्षणिक संस्थाएं, अस्पताल और कॉर्पोरेट ऑफिस हैं। यही वजह है कि बीआरटीएस में चलने वाली I-BUS में 55 से 65 हजार यात्री रोजाना सफर करते हैं। इनमें बड़ा वर्ग स्टूडेंट्स का है।

प्रदेश में सिर्फ इंदौर में ही बीआरटीएस

भोपाल में बना बीआरटीएस खत्म होने के बाद अब प्रदेश में सिर्फ इंदौर में ही बीआरटीएस है। साल 2013 में बस रैपिड ट्रांजिट सिस्टम की शुरुआत हुई। इंदौर में 11.5 किलोमीटर का बीआरटीएस कॉरिडोर बनाया गया है, जो निरंजनपुर से लेकर राजीव गांधी चौराहा तक है। पूरे कॉरिडोर में 20 बस स्टाप आते हैं। इस बीआरटीएस पर वर्तमान में 49 बसों का संचालन हो रहा है।

BRTS को लेकर इंदौर के दो बड़े नेता यह बोले

नगरीय प्रशासन मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने कहा-

यातायात के हिसाब से बीआरटीएस को लेकर यह निर्णय लेना जरूरी था। मैं शुरू से ही बीआरटीएस का विरोध कर रहा था। शहर में यातायात लगातार बढ़ रहा है। ऐसे में बीआरटीएस को हटाने का निर्णय सही है।

पूर्व लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन बोलीं-

इंदौर में बीआरटीएस प्रोजेक्ट सफलतापूर्वक चल रहा है। हालांकि मुख्यमंत्री और जनप्रतिनिधियों ने इसे तोड़ने का निर्णय लिया है तो कुछ सोच-समझकर ही लिया होगा। बीआरटीएस पर चल रही बसों से विद्यार्थियों और अन्य लोगों को बड़ी राहत है। एम्बुलेंस को भी इसमें चलाने की अनुमति है। इससे मरीज को समय पर अस्पताल पहुंचाने में मदद मिलती है।

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