ऐसे थे राहत साहब …
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..हृदय वाणी.. हृदये़श दीक्षित
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सामान्य तौर पर लेखक, पत्रकार साहित्यकार, शायर को कभी किसी धर्म विशेष से नहीं जोड़ा जाना चाहिए हो सकता है इस मामले में लोगों की अपनीं-अपनी निजी राय हों.. लेकिन मुझे नहीं पता कि अधिकांश लोग डॉक्टर राहत इन्दौरी को कितना जानते थे लेकिन यह दुर्भाग्य ही रहा कि उनके जीवन के अंतिम पड़ाव पार लोगों ने उनको देखने और समझने का नज़रिया अपने-अपने सुविधा के संतुलन के लिहाज़ से गढ़ लिया.. शायद हमारे लोकतंत्र की भी यही ख़ूबसूरती है कि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार सुरक्षित है.. लेकिन एक नंगा सच लोगों ने यह भी देखा है कि उज्जैन के पवित्र सिंहस्थ के दौरान डॉक्टर राहत इन्दौरी के सामने जब हिन्दू धर्म के बड़े पुज्य संत मौजूद थे तो उन्होने जो शायरी सुनाई.. उससे वो तमाम मिथक टूटते नज़र आते हैं.. जिस पर पिछले एक दशक से बेफिजुल बहस छिड़ी हुई थी.. आप भी देखें सुनें..?? ढलती उम्र के पड़ाव में राहत साहब उन पर उठ रहे सवालों पर मज़ाकिया अंदाज़ में कहते थे कि मेंरा विरोध करने वाले …ये जान ले मेरा शरीर भले ही कमज़ोर हो रहा है लेकिन मेंरी शोहरत लगातार बढ़ रही है… डॉं. राहत क़ुरैशी यानि राहत इंदौरी साहब से मेंरा नाता उनके भाई रंगमंच के बेहतरीन कलाकार एवं लेखक डॉ. आदिल क़ुरैशी के कारण लंबे समय तक बना रहा.. उनके पुश्तैनी घर रानीपुरा पर भी मेंरा आना-जाना रहा है ? दैनिक भास्कर में आदिल भाई और मेंरा साथ लगभग एक दशक तक बना रहा.. वो जल्दी ही दुनिया को अलविदा कह गए थे लेकिन उनके और राहत साहब के परिवार से मेंरा रिश्ता बरसों जुड़ा रहा उर्दू-हिन्दी साहित्य/शायरी का एक बड़ा नैसर्गिक सितारा अस्त हो गया.. ???..पुन: विनम्र श्रध्दांजलि..
संतो के समक्ष राहत साहब का शाही स्नान
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