कोरोना पर वैज्ञानिको का चौकाने वाला ख़ुलासा

पिछले साल नवंबर से चीन के वुहान में कोरोना वायरस इन्फेक्शन के मामले सामने आने लगे जिसने अब तक दुनियाभर में 2 करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में ले लिया है। हालांकि, वैज्ञानिकों का मानना है कि कोविड-19 दरअसल 7 साल पहले 2012 में ही पैदा हो गया था। इस दावे के मुताबिक चीन में ही एक खदान में 6 मजदूर निमोनिया जैसे वायरस से पीड़ित हुए थे जो चमगादड़ का मल साफ कर रहे थे। उन्होंने 14 दिन उस खदान में बिताए थे। बाद में उनमें तेज बुखार, सूखी खांसीं, हाथ-पैर में दर्द और सिरदर्द जैसे लक्षण देखने को मिले। इनमें से तीन की मौत हो गई थी। खास बात यह है कि इस वाकये का भी वुहान की लैब से कनेक्शन था।रिपोर्ट्स के मुताबिक, संक्रमित मजदूरों का इलाज चीन के एक डॉक्टर ली सू ने किया था। उन्होंने इस बारे में थीसिस भी लिखी थी, जिसे अमेरिकी वायरॉलजिस्ट जोनाथन लैथम और मॉलिक्यूलर बायोलॉजिस्ट ऐलिसन विल्सन ने पढ़ा है। उनका दावा है कि उन मजदूरों के सैंपल टिशू वुहान लैब भेजे गए थे, जहां चमगादड़ों में पाए जाने वाले खतरनाक वायरस पर रिसर्च होती है और वहीं से यह वायरस लीक हुआ। एक रिपोर्ट के मुताबिक, वुहान में कोविड-19 से मौत का पहला मामला 11 जनवरी, 2020 को सामने आया था। इसके महज नौ दिन बाद वायरस चीन से निकलकर जापान, दक्षिण कोरिया और थाईलैंड तक पहुंच गया था। अभी तो यह दुनियाभर के 180 से भी ज्यादा देशों में फैल चुका है। अब तक इसका कोई सफल इलाज नहीं मिल सका है, लेकिन दुनियाभर के वैज्ञानिक इस वायरस को खत्म करने के लिए वैक्सीन बनाने में जुटे हुए हैं।  इस बीच मलेशिया में एक नए प्रकार के कोरोना वायरस का पता चला है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह वायरस सामान्य से 10 गुना ज्यादा संक्रामक है। माना जा रहा है कि यह वायरस चीन के वुहान में पाए गए सबसे खतरनाक कोविड के प्रकार से भी ज्यादा घातक है। इसे डी614जी म्यूटेशन कहा जा रहा है। मलेशिया के स्वास्थ्य महानिदेशक दातुक डॉ. नूर हिशाम अब्दुल्ला के मुताबिक, यह म्यूटेशन पहली बार जुलाई में पाया गया था। यह इतना खतरनाक है कि दुनियाभर में वैक्सीन पर चल रही रिसर्च नाकाफी हो सकती है

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