मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सुरेश कुमार कैत कहा कि ‘हम जज, पुलिस और प्रशासन के अधिकारी, एसपी, कलेक्टर, मंत्री, मुख्यमंत्री पद के बाद एक आम आदमी की तरह हैं। कुर्सी पर बैठकर पावर यूस करना और कुर्सी को सिर पर बैठा लेना, दोनों में फर्क है। अगर पावर को सिर पर चढ़ा लिया तो फिर आपकी बहुत बड़ी प्रॉब्लम है, खासकर रिटायरमेंट के बाद
उन्होंने न्यायिक व्यवस्था में सुधार की जरूरत पर भी जोर दिया है। कहा कि, वर्तमान में हाईकोर्ट में 4 लाख 64 हजार केस लंबित हैं, जबकि जज की संख्या कम हैं। वर्तमान में हाईकोर्ट में जज के 53 पद है। लेकिन 34 जज अभी कार्यरत है। स्थिति को देखते हुए मैंने जज के पदों की संख्या 85 करने की सिफारिश की है।
उज्जैन में चल रहे विक्रमोत्सव 2025 के दौरान शनिवार को आयोजित विक्रमादित्य का न्याय वैचारिक समागम में चीफ जस्टिस कैत ने यह बात कही। कार्यक्रम में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने आश्वासन दिया कि वे लंबित मामलों को देखते हुए जज के पदों की संख्या बढ़ाने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजेंगे।
यह कार्यक्रम 1 से 3 मार्च 2025 तक पं. सूर्यनारायण व्यास संकुल, कालिदास अकादमी में आयोजित किया जा रहा है। तीन दिवसीय इस समागम में विक्रमादित्यकालीन राजधर्म, न्याय व्यवस्था और दंड विधान पर विस्तृत चर्चा होगी। इसमें जिला विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला अभिभाषक संघ और विक्रम विश्वविद्यालय समेत कई संस्थाएं भाग ले रही हैं।
‘कुर्सी की शक्ति का उपयोग समाज कल्याण में हो’
मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने कहा कि, विक्रमादित्य का सिंहासन चारों ओर से मिट्टी का बना था। वो सिंहासन पर बैठकर न्याय करते थे, लेकिन जब वो सिंहासन से उतरते थे तो वो आम आदमी होते थे। हम जिलाधीश, पुलिस ऑफिसर, प्रशासानिक अधिकारी, एसपी, कलेक्टर, जज, मंत्री, मुख्यमंत्री है, लेकिन उसके बाद आप एक आम आदमी की तरह हैं।
मुख्य न्यायाधीश कैत ने कहा कि, अपनी कुर्सी की शक्ति का उपयोग हमेशा समाज कल्याण, समाज हित में करना चाहिए। न्याय केवल दंड देने का माध्यम नहीं, बल्कि समाज में नैतिकता और सामाजिक संतुलन बनाने के लिए होना चाहिए। हमारी वर्तमान न्याय प्रणाली प्राचीन न्याय प्रणाली पर ही आधारित है।
विक्रमादित्य का न्याय त्वरित और पारदर्शी था’
चीफ जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने कहा कि, सम्राट विक्रमादित्य का शासन व्यवस्था प्रधान था, न कि व्यक्ति प्रधान। विक्रमादित्य का शासन तंत्र न्याय, प्रशासनिक दक्षता और सामाजिक समरसता पर आधारित था। विक्रमादित्य का शासन एक संगठित और सुव्यवस्थित प्रणाली पर आधारित था। सम्राट विक्रमादित्य का न्याय त्वरित और पारदर्शी था। उन्हें न्याय और सुशासन का प्रतीक भी माना जाता है। आज भी उनके न्याय की मिसाल दी जाती है।
CM बोले- विक्रमादित्य की प्रणाली आज भी प्रासंगिक
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि, भारतीय न्याय व्यवस्था का आरंभ वैदिक काल में हुआ। जहां सभा और समिति जैसी संस्थाओं के माध्यम से विवादों का निपटारा किया जाता था। सम्राट विक्रमादित्य के समय यह प्रणाली और अधिक सशक्त हुई। हमारे लिए आज भी उनकी न्याय प्रणाली की प्रासंगिकता अत्यंत महत्वपूर्ण है। समय बदल चुका है लेकिन न्याय की अवधारणा वही है जो विक्रमादित्य ने स्थापित की थी। उन्होंने न्यायपूर्ण, निष्पक्ष और समान समाज की स्थापना की थी।
मुख्यमंत्री बोले- उज्जैन की धरा विक्रमादित्य जैसे वीरों की जन्मदायनी
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा कि, उज्जैन की धरा वैभव के साथ ही सम्राट विक्रमादित्य जैसे साहसी वीरों की भी जन्मदायनी है। उज्जैन एक समय तक ज्ञान, विज्ञान, कला, संस्कृति, न्याय, सुशासन, व्यापार, व्यवसाय का एक सर्वमान्य केन्द्र रहा है। सभ्यता और संस्कृति की जन्म भूमि भारत अनादि काल से ही अत्यंत वैभवशाली राष्ट्र है। भारत की उर्वरा भूमि ने पृथ्वीराज चौहान, राणा सांगा, सम्राट अशोक, महाराजा प्रताप, छत्रपति शिवाजी जैसे अनगिनत वीरों का मार्ग प्रशस्त करने का श्रेय जिस वीर को जाता है, वे है उज्जैन के चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य।
CM बोले- विक्रमादित्य के न्यायिक वैभव इतिहास में अमर
CM ने कहा विक्रमादित्य ने जो अदम्य पराक्रम दिखाया, वह किसी के बस की बात नहीं। गणतंत्र की स्थापना का श्रेय सम्राट विक्रमादित्य को है। उन्होंने जो दान दिया वह आज तक किसी ने नहीं दिया। उनका नाम सदैव अमर रहेगा। सम्राट विक्रमादित्य का न्यायिक वैभव इतिहास में अमर है। भारत का इतिहास न्यास के आदर्शों से परिपूर्ण है। हम सभी ने सिंहासन बत्तीसी में बत्तीस पुतलियों के माध्यम से विक्रमादित्य के न्यायिक वैभव को पढ़ा और सुना है। वह संपूर्ण भारतीय जनमानस में आज भी एक प्रेरक कथा के रूप में जीवित है।
विक्रमादित्य के शासन में न्याय केवल एक विधिक प्रक्रिया नहीं था बल्कि यह समाज के सामाजिक और नैतिक दायित्वों को भी ध्यान में रखते हुए एक सशक्त प्रणाली थी, जो समाज को न्याय और सदाचार की दिशा में अग्रसर करती थी।