रूस की कोरोना वैक्सीन को लेकर दुनियाभर में चर्चा जोरों पर है। यहां के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने खुद ही 11 अगस्त को कोरोना वायरस की दुनिया की पहली वैक्सीन बना लेने की घोषणा की थी। इस वैक्सीन का नाम स्पूतनिक वी रखा गया है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन समेत कई देशों ने इस वैक्सीन को लेकर संदेह जताया है कि पता नहीं यह प्रभावी होगी या नहीं, क्योंकि रूस ने तो वैक्सीन से संबधित कोई भी डाटा शेयर किया नहीं है। इस बीच ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा विकसित वैक्सीन को लेकर भी एक अच्छी खबर सामने आ रही है। फिलहाल इस वैक्सीन का मानव परीक्षण चल रहा है और इसी पर काम कर रही एस्ट्राजेनेका कंपनी का कहना है कि इसका मानव परीक्षण इसी साल नवंबर तक पूरा हो जाएगा।
इन दो वैक्सीन से उम्मीदें
ब्रिटेन की वैक्सीन टास्कफोर्स केट बिंघम ने कहा है, ‘मुझे लगता है कि हमारे पास इस साल वैक्सीन मिलने का मौका है। दो संभावित कैंडिडेट हैं- एक ऑक्सफर्ड की और दूसरी BioNTech की जर्मन वैक्सीन।’ उन्होंने कहा कि ये दोनों ऐसी हैं कि अगर सबकुछ ठीक रहा तो इन्हें बनाकर इस साल डिलिवर किया जा सकता है। ऑक्सफर्ड और AstraZeneca की वैक्सीन इस रेस में सबसे आगे मानी जाती रही है। हालांकि, रूस ने अपनी वैक्सीन को रजिस्टर करा लिया है और चीन ने अभी एक वैक्सीन का पेटेंट करा लिया है।
किसे दी जाएगी
बिंघम ने यह भी बताया कि बुजुर्ग लोगों को युवाओं से अलग वैक्सीन दिए जाने की भी संभावना है क्योंकि उनका इम्यून सिस्टम कमजोर होता है। वैक्सीन दिए जाने पर 65 की उम्र के लोगों को प्राथमिकता दी जाएगी। साथ ही, दूसरी बीमारियों से ग्रस्त लोगों, फ्रंटलाइन हेल्थ और सोशल केयर वर्कर्स को भी यह पहले दी जाएगी।
ट्रायल में हिस्सा लेना इसलिए जरूरी
बिंघम ने इसलिए इन लोगों से ज्यादा से ज्यादा संख्या में ट्रायल के लिए रजिस्टर करने की भी अपील की है। उन्होंने कहा है कि सिर्फ स्वस्थ्य युवाओं पर ट्रायल नहीं किया जा सकता है। यह सुनिश्चित करना होगा कि ब्रिटेन में क्षेत्रीय, शारीरिक स्वास्थ्य और उम्र की विविधता के हिसाब से यह टेस्ट किया जाए कि हर किसी के लिए वैक्सीन असरदार और सुरक्षित है।
ऐंटी-वैक्सिनेशन कैंपेन से नुकसान
दरअसल, अभी तक ऐसे सिर्फ 6% लोगों ने ही रजिस्टर किया है। बिंघम ने बताया है कि लोगों को आशंका रहती है। साथ ही ऐंटी-वैक्सिनेशन कैंपेन का भी असर पड़ता है। हालांकि, उन्होंने आश्वासन दिया है कि इन ट्रायल के पीछे मकसद सिर्फ असरदार और सुरक्षित वैक्सीन खोजना है। पश्चिमी देशों में बड़ी संख्या में लोग वैक्सिनेशन के खिलाफ हैं। उनका दावा है कि बड़ी कंपनियां और सरकारें इनके जरिए लोगों को धोखा देती हैं।