मध्य प्रदेश के रीवा जिले से तकरीबन 55 किलोमीटर दूर एक गांव है- कैथा। इस गांव में घुसते ही एक मंदिर है, उससे सटा पीपल का पेड़ और बगल में छोटा-सा तालाब। मंदिर प्रांगण के एक हिस्से में छोटी-सी कोठरी है, जहां शिवानंद द्विवेदी रहते हैं।
पहली मुलाकात में शिवानंद किसी साधु-संन्यासी की तरह लग रहे हैं। सिर पर लपेटा भगवा गमछा। शरीर पर गुलाबी रंग का कुर्ता। दाएं कान की तरफ से लटकती जटा।
मेरे पूछने पर कि क्या आप यहां के पुजारी हैं?
शिवानंद कहते हैं, ‘आप पहले व्यक्ति नहीं हैं। कोई भी अनजान जब इस गांव में आता है, मुझे देखते ही यही सोचता है कि मैं मंदिर का पुजारी, साधु या कोई संन्यासी हूं। अन्य मंदिर के पुजारी की तरह पूजा-पाठ करता हूं, लेकिन ऐसा नहीं है। मैं एक समाजसेवी हूं, आसपास के गांव में आप मेरा नाम पूछेंगे, तो कोई भी बता देगा। मेरे पास पहुंचा देगा।’
आप कब से यह काम कर रहे हैं?
शिवानंद बताते हैं, ‘मैं पिछले 12 साल से गांव के लोगों की मदद कर रहा हूं। उनकी समस्या सुलझाने में लगा हूं। कैथा, हिनौती, सेदहा, परुआ, चौड़ी, बांस, देवहारा, मढ़ीकला…. समेत 500 पंचायतों के लोग मेरे साथ जुड़े हुए हैं। किसी की परेशानी को पुलिस नहीं सुन रही हो या कोर्ट-कचहरी का चक्कर हो। सरकारी सुविधा के न मिलने से लेकर इसे दिलाने तक, मैं सारे कामों में लोगों की मदद करता हूं।
आज का ही वाकया सुनाता हूं। एक सज्जन मेरे पास आए, सरकारी टीचर हैं। हाल ही में रिटायर हुए हैं। अब उनके अकाउंट से साइबर अपराधियों ने 8 लाख की चपत लगा दी। बैंक को पता है कि पैसे कहां गए हैं। सोर्स क्या है, फिर भी कार्रवाई नहीं कर रहा है। पुलिस रोज कुछ न कुछ बहाना बनाकर टाल रही है। अब मुझे इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा है।’
जिस गहराई के साथ शिवानंद बातचीत कर रहे हैं, वह पढ़े-लिखे लग रहे हैं। पूछने पर अपने मोबाइल से डिग्रियां दिखाने लगते हैं। कहते हैं, ‘भारत में मुंह देखकर काम होता है। पोशाक और जूते तय करते हैं कि उसे पहनने वाले की औकात क्या है।
जब मैं पुलिस के पास एक आम व्यक्ति बनकर जाता हूं, तो उन्हें लगता है कि कोई कहीं से उठकर अपनी समस्या बताने आ गया है। मामले को किसी तरह से लीपापोती करने में वह जुट जाते हैं। जब उन्हें बताता हूं कि IIT बॉम्बे से पढ़ा हुआ हूं। 10 साल तक 7 से ज्यादा देशों में रह चुका हूं। मैथमेटिक्स की थ्योरी पर रिसर्च कर चुका हूं। कई राज्यों और विदेशों में व्याख्यान के लिए जा चुका हूं। ये सब सुनने के बाद वे माफी मांगने लगते हैं। इज्जत से बात करने लगते हैं।
हकीकत में मैं तो अब भूल भी चुका हूं कि मैंने क्या-क्या किया है। क्या पढ़ा है। बस अब गांव वालों की तकलीफ में शामिल होता हूं। उनकी परेशानियों को दूर करता हूं। ‘सूचना का अधिकार’ के तहत अलग-अलग मुद्दों को लेकर सरकार से, विभाग से सवाल पूछता रहता हूं। अब तक कई मामलों को उजागर कर चुका हूं।
कई बार तो मुझे मारने, मर्डर करने तक की धमकी आ चुकी है, इन धमकियों से थोड़ा-सा भी डर नहीं लगता है।’
मंदिर के बरामदे में एक चौकी है। उस पर रखे बिछावन को शिवानंद बातचीत के साथ-साथ समेट रहे हैं।
आपने शादी नहीं की?
इस सवाल के साथ मेरी घूम रही नजरों को देख शिवानंद कहते हैं, ‘मैं अकेला हूं। मैंने शादी नहीं की है। अब करूंगा भी नहीं। अकेला हूं, तो खुलकर गांव वालों की समस्याओं को सुनता हूं। कोई डर- भय नहीं रहता है।
अगर शादी कर लेता, तो मैं भी बंधा होता। जिस तरह से मुझे हमेशा मर्डर की, किडनैपिंग की धमकियां मिलती रहती हैं, पत्नी होती, तब तो वह भी मेरे साथ-साथ परेशान होती।
एक और समस्या यह कि अगर शादी कर भी लेता, तो वह रहती कहां? मंदिर में? पीपल के पेड़ के नीचे?’
… तो आपका कोई घर नहीं?
‘भाई, बहन और चाचा की फैमिली, सब है। पापा 1997 और मां 2017 में गुजर गईं। पापा आर्मी में थे। वह 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध का हिस्सा रहे थे।
बाद में सेना के अधिकारियों से उनकी कहासुनी हो गई। इस वजह से समय से पहले ही पापा रिटायरमेंट लेकर घर वापस आ गए।
जब पापा की हार्ट अटैक से माैत हुई, उस वक्त मैं 10वीं क्लास में था।
बमुश्किल घर का खर्च चलता था। इस वजह से 14-15 साल की उम्र से ही मैं अपनी पढ़ाई के साथ ही ट्यूशन पढ़ाने लगा। मैथ्स में तेज था, उस सब्जेक्ट में रुचि थी।
मेरे एक चाचा पुलिस डिपार्टमेंट में थे। अब वह रिटायर हो गए हैं। पापा के गुजर जाने के बाद पढ़ाई का अधिकांश खर्च उन्होंने ही उठाया। यह बात मैं साल 2000 के आसपास की बता रहा हूं।’
IIT बॉम्बे से ही पढ़ने के लिए क्यों सोचा?
शिवानंद कहते हैं, ‘जब मैथ्स में दिलचस्पी बढ़ने लगी, तो मैंने अपने एक टीचर से पूछा कि आगे करियर में क्या करना चाहिए। उन्होंने सलाह दी- रिसर्च में जाओ। मैं खोजबीन करने लगा कि कहां एडमिशन लेना चाहिए। बैचलर कम्प्लीट हो चुका था। इसी दौरान IIT बॉम्बे के बारे में पता चला।
मैं साइंस में मास्टर्स करने के लिए IIT बॉम्बे चला गया। जब मेरा एडमिशन हुआ, तब गांव वाले, घर वाले… सभी खुश थे। उनके मन में था कि उनके गांव का लड़का IIT जैसी संस्था में पढ़ने के लिए गया है। गर्व से उनका सीना चौड़ा हो जाता था।
2003 में मास्टर्स कम्प्लीट करने के बाद मैं जर्मनी चला गया। वहां करीब ढाई साल रहा। इसी तरह से इटली और फिर अलग-अलग देशों में रिसर्च पर काम करने लगा। आखिरी बार जब विदेश से वापस आया, तब मैं इटली के मिलान में था।’
गांव लौटने के पीछे की वजह?
इसके पीछे शिवानंद कहानी सुनाते हैं- ‘मास्टर्स की पढ़ाई के दौरान ही मैं अध्यात्म से जुड़ चुका था। गीता और रामायण की चौपाइयां पढ़ीं। जब विदेश गया, तो वहां का कल्चर मुझे पसंद नहीं आ रहा था।
खानपान भी अलग था। मेरा वहां से मोहभंग होने लगा। मैं सोचने लगा कि जो सपना था, वह तो अब पूरा हो गया। अब आगे क्या, कहीं नौकरी करूंगा, पैसे कमाऊंगा। यही न।
एक रोज अचानक मैं गांव वापस आ गया। जब गांव आया, तो लोग पागल कहकर बुलाने लगे। सबको लगता था- विदेश रहा। अच्छी पढ़ाई-लिखाई की और आज वापस गांव आकर बस गया।
आपको जानकर हैरानी होगी कि विदेश जाने के लिए फ्लाइट के टिकट के पैसे भी मेरे पास नहीं होते थे। पापा तो गुजर चुके थे। किससे पैसे मांगता?
मेरे चाचा जो पुलिस में थे, उन्होंने फाइनेंशियली काफी मदद की।
चाचा बैंक से लोन लेकर पैसा देते थे। इससे मैं अपना टिकट और रहने-खाने का इंतजाम करता था। इस दौरान कई स्कॉलरशिप भी मिलीं। मैं हमेशा यही सोचता रहता था कि अब इससे आगे क्या। सब कुछ तो मैंने पा ही लिया। अब क्या, ज्यादा से ज्यादा जॉब करूंगा।’
जब मैं गांव में पीपल के पेड़ के नीचे रहने लगा, तो चाचा का कहना था- अब ये नालायक हो गया है। इतना सब कुछ करने के बाद भी इसकी जिंदगी गांव में कटेगी। हालांकि, उन्होंने मुझे कुछ कहा नहीं।
विदेश से वापस आने के बाद मां क्या बोलीं?
‘मुझे हमेशा यह मलाल रहेगा कि लोगों की सेवा की वजह से मैं अपनी मां की सेवा नहीं कर पाया। 2017 में मां की डेथ हो गई। उन्होंने सामने से कुछ कहा नहीं, लेकिन शायद उनकी भी इच्छा रही होगी कि घर में बहू हो, पोता हो…।
आप ही सोचिए कौन-सी मां यह देखकर खुश होगी कि उसका बेटा विदेश से सब-कुछ छोड़कर समाजसेवा के लिए गांव वापस आ गया हो। इस तरह की जिंदगी जिए। हमेशा मां को लेकर सोचता हूं कि मैं देशभक्ति की वजह से मातृ भक्ति नहीं कर पाया।’