जिन्दगी का सफर है ये कैसा सफर..
यह उस मशहूर गीत की पहली पंक्ति है, जिसे पढ़कर कोई भी व्यक्ति पूरा गीत सुनने की चाह रख सकता है। नई पीढ़ी को इसमें अपवाद माना जा सकता है। नई पीढ़ी की पसंद नए जमाने की बदली हुई धुनें और गायन हो सकता है। पर किशोर कुमार की आवाज के शौकीन लोगों को ‘इंदीवर’ का यह गीत आज भी रास आता है। रास इसलिए भी आता है, क्योंकि ऐसे गीत जीवन का दर्शन, जीवन की सच्चाई बयां करते हैं। चलिए पूरा गीत पढ़ते हैं।
जिन्दगी का सफर है ये कैसा सफ़र
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
जिन्दगी का सफर है ये कैसा सफर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
है ये कैसी डगर चलते हैं सब मगर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
जिन्दगी को बहुत प्यार हमने दिया
मौत से भी मोहब्बत निभायेंगे हम
रोते रोते जमाने में आये मगर
हँसते हँसते जमाने से जायेंगे हम
जायेंगे पर किधर है किसे ये खबर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
ऐसे जीवन भी हैं जो जिये ही नहीं
जिनको जीने से पहले ही मौत आ गयी
फूल ऐसे भी हैं जो खिले ही नहीं
जिनको खिलने से पहले फिजां खा गयी
है परेशां नजर थक गये चारागर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं
जिन्दगी का सफर है ये कैसा सफर
कोई समझा नहीं कोई जाना नहीं।
आज इंदीवर की बात इसलिए क्योंकि 27 फरवरी को ही इनका निधन हुआ था। उनके सैकड़ों गीत आज हम सबकी जुबान पर रहते हैं। ऐसे प्रसिद्ध गीतकार इन्दीवर का जन्म उत्तर प्रदेश के झाँसी जनपद मुख्यालय से बीस किलोमीटर पूर्व की ओर स्थित ‘बरूवासागर’ कस्बे में ‘कलार’ जाति के एक निर्धन परिवार में 15 अगस्त, 1924 ई. में हुआ था। आपका मूल नाम ‘श्यामलाल बाबू राय’ था। इनके पिता हरलाल राय व माँ का निधन इनके बाल्यकाल में ही हो गया था। इनकी बड़ी बहन और बहनोई घर का सारा सामान और इनको लेकर अपने गाँव चले गये थे। कुछ माह बाद ही ये अपने बहन-बहनोई के यहाँ से बरूवा सागर वापस आ गये थे। बचपन था, घर में खाने-पीने का कोई प्रबन्ध और साधन नहीं था। ऐसे में उन्हें एक फक्कड़ बाबा मिले, जिनके साथ भोजन की व्यवस्था हुई तो गीत लिखने का सिलसिला भी शुरू हो गया। बाद में स्थानीय स्तर पर कवि के रूप में पहचान मिली, तो बाद में कुछ और की चाह में मुंबई की राह पकड़ ली।
मुंबई में लंबा संघर्ष हुआ, इस संघर्ष में जीवनसंगिनी पार्वती ने इंदीवर का पूरा साथ दिया। संघर्ष से हारकर जब इंदीवर वापस बरुवासागर लौटे तो पत्नी ने हौसला दिया और वापस मुंबई भेजा। और अंतत: वर्ष 1963 में बाबू भाई मिस्त्री की संगीतमय फ़िल्म ‘पारसमणि’ की सफलता के बाद इन्दीवर शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचे। इन्दीवर के सिने कैरियर में उनकी जोड़ी निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार के साथ बहुत खूब जमी। मनोज कुमार ने सबसे पहले इन्दीवर से फ़िल्म ‘उपकार’ के लिये गीत लिखने की पेशकश की। कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन मे फिल्म ‘उपकार’ के लिए इन्दीवर ने “कसमें वादे प्यार वफा सब बातें हैं, बातों का क्या…” जैसे दिल को छू लेने वाले गीत लिखकर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। इसके अलावा मनोज कुमार की फिल्म ‘पूरब और पश्चिम’ के लिये भी इन्दीवर ने “दुल्हन चली वो पहन चली” और “कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे” जैसे सदाबहार गीत लिखकर अपना अलग ही समां बांधा। इन्दीवर के सिने कैरियर मे संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी के साथ उनकी खूब जमी। “छोड़ दे सारी दुनिया किसी के लिये…”, “चंदन सा बदन…” और “मैं तो भूल चली बाबुल का देश…” जैसे इन्दीवर के लिखे न भूलने वाले गीतों को कल्याणजी-आनंदजी ने संगीत दिया। वर्ष 1970 में विजय आनंद निर्देशित फिल्म ‘जॉनी मेरा नाम’ में “नफरत करने वालों के सीने में…”, “पल भर के लिये कोई हमें…” जैसे रूमानी गीत लिखकर इन्दीवर ने श्रोताओं का दिल जीत लिया। मनमोहन देसाई के निर्देशन मे फ़िल्म ‘सच्चा-झूठा’ के लिये इन्दीवर का लिखा एक गीत “मेरी प्यारी बहनिया बनेगी दुल्हनियां…” को आज भी विवाह आदि के अवसर पर सुना जा सकता है। इसके अलावा राजेश खन्ना अभिनीत फ़िल्म ‘सफर’ के लिये इन्दीवर ने “जीवन से भरी तेरी आँखें…” और “जो तुमको हो पसंद…” जैसे गीत लिखकर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। 1970 में रिलीज हुई इसी फिल्म का एक गीत था जिन्दगी का सफर, है ये कैसा सफर। तो मधुबन खुशबू देता है (साजन बिना सुहागन) और होठों से छू लो तुम, मेरा गीत अमर कर दो (प्रेमगीत) जैसे अमर गीत इंदीवर को हमेशा जिंदा रखेंगे।
इन्दीवर ने अपने सिने कैरियर में लगभग 300 फिल्मों के लिये गीत लिखे। जाने माने निर्माता-निर्देशक राकेश रोशन की फिल्मों के लिये इन्दीवर ने सदाबहार गीत लिखकर उनकी फिल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। देश के ‘स्वतंत्रता संग्राम आन्दोलन’ में सक्रिय भाग लेते हुए इंदीवर ने श्यामलाल बाबू ‘आजाद’ नाम से कई देश भक्ति के गीत अपने प्रारम्भिक दिनों में भी लिखे थे। 1975 में प्रदर्शित फिल्म ‘अमानुष’ के लिये इन्दीवर को सर्वश्रेष्ठ गीतकार का ‘फिल्म फेयर पुरस्कार’ दिया गया। लगभग तीन दशक तक अपने गीतों से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले इन्दीवर ने 27 फरवरी, 1997 को इस दुनिया से विदा ली। आइए आज इंदीवर के कुछ गीत सुनते हैं और गुनगुनाते हैं…मेरे देश की धरती सोना उगले (उपकार,1967) और चन्दन सा बदन, चंचल चितवन (सरस्वतीचन्द्र 1968) जैसे देशभक्ति और प्रेमगीत भी सुने जा सकते हैं…।
कौशल किशोर चतुर्वेदी
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। दो पुस्तकों “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।