तहूँ होबे राख महूँ होहू राख…कौशल किशोर चतुर्वेदी

तहूँ होबे राख महूँ होहू राख…

तुमको भी राख हो जाना है और मुझको भी राख होना है। यह भाव हैं छत्तीसगढ़ी में लिखी गई चर्चित कविता ‘राख’ के। पर राख होने से पहले हर इंसान ‘साख’, ‘धाक’ और ‘संपदा’ जुटाने में मानो अंधा ही हो जाता है। और अंधत्व से उबरता है, तब तक कंधों पर उठने की नौबत आ जाती है। और फिर खुद ‘राख’ हो जाता है, धन-संपदा और ऐश्वर्य धरा का धरा रह जाता है। ताज्जुब की बात यह है कि यह सार्वभौमिक सत्य का ज्ञान सभी को है, पर इससे सीख लेने की चाह किसी में भी नहीं है। खैर पहले हम पढ़ते है कविता ‘राख’ को…

चर्चित कविता ‘राख’

राखत भर ले राख …

तहाँ ले आखिरी में राख।।

राखबे ते राख…।।

अतेक राखे के कोसिस करिन…।।

नि राखे सकिन……

तेके दिन ले…।

राखबे ते राख…।।

नइ राखस ते झन राख…।

आखिर में होना च हे राख…।

तहूँ होबे राख महूँ होहू राख…।

सब हो ही राख…

सुरू से आखिरी तक…।।

सब हे राख…।।

ऐखरे सेती शंकर भगवान……

चुपर ले हे राख……।

यह कविता छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के स्वप्नदृष्टा, छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण आंदोलन के प्रखर नेता, संत और कवि पवन दीवान की है। पवन दीवान की पहचान मुख्य रूप से एक आध्यात्मिक सन्त, विद्वान भागवत प्रवचनकर्ता और हिन्दी तथा छत्तीसगढ़ी के लोकप्रिय कवि के रूप में आजीवन बनी रही। उनकी प्रकाशित पुस्तकों में कविता संग्रह ‘मेरा हर स्वर इसका पूजन’ और ‘अम्बर का आशीष’ उल्लेखनीय हैं। वह छत्तीसगढ़ी, हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेज़ी भाषाओं के प्रखर वक्ता थे। उन्होंने महानदी के किनारे छत्तीसगढ़ की तीर्थ नगरी राजिम से ‘अंतरिक्ष’ ,’बिम्ब’ और ‘महानदी’ नामक साहित्यिक पत्रिकाओं का सम्पादन किया। पवन दीवान लम्बे समय तक राजिम स्थित संस्कृत विद्यापीठ के प्राचार्य भी रहे। वह खूबचन्द बघेल द्वारा स्थापित ‘छत्तीसगढ़ भातृसंघ’ के भी अध्यक्ष रहे। पवन दीवान उन व्यक्तियों में से एक थे जिन्होंने छत्तीसगढ़ियों में स्वाभिमान जगाने का काम किया था। जिन्होंने पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के लिए आंदोलन किया था। जिन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा को भागवत कथा में शामिल कर उसे जन-जन में प्रसारित करने, प्रचारित करने और मातृभाषा के प्रति सम्मान जगाने का काम किया था। जिन्होंने हर मंच पर अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी। जिन्होंने एक पंक्ति में जीवन के मूल्य को समझा दिया था- “तहूँ होबे राख… महूँ होहू राख…” जिनके लिए सन् 1977 में एक नारा गूँजा था- पवन नहीं ये आँधी है, छत्तीसगढ़ का गाँधी है।

अध्ययनकाल के समय ही पवन दीवान में वैराग्य की भावना बलवती हो गई थी। 21 वर्ष की आयु में हिमालय की तराई में जाकर अंततः उन्होंने स्वामी भजनानंदजी महराज से दीक्षा लेकर सन्यास धारण कर लिया और भी पवन दीवान से अमृतानंद बन गए। इसके बाद वे आजीवन सन्यास में रहे और गाँव-गाँव जाकर भागवत कथा का वाचन करने लगे। अध्ययन काल के दौरान पवन दीवान की रुचि खेल में भी रही। फ़ुटबॉल के साथ बॉलीबॉल में वे स्कूल के दिनों में उत्कृष्ट खिलाड़ी रहे। इस दौरान ही उन्होंने कविता लेखन की शुरुआत भी कर दी थी। धीरे-धीरे वे एक मंच के एक धाकड़ कवि बन चुके थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ी और हिंदी दोनों में ही कविताएं लिखी। उनकी कुछ कविताएं जनता के बीच इतनी चर्चित हुई कि वे जहाँ भी भागवत कथा को वाचन को जाते लोग उनसे कविता सुनाने की मांग अवश्य करते। इन कविताओं में ‘राख’ और ‘ये पइत पड़त हावय जाड़’ प्रमुख रहे। वहीं कवि सम्मेलनों में उनकी जो कविता सबसे चर्चित रही उसमें एक थी ‘मेरे गाँव की लड़की चंदा उसका नाम था’ शामिल है।

भागवत कथा वाचन, कवि सम्मेलनों से राजिम सहित पूरे अँचल में पवन दीवान प्रसिद्ध हो चुके हैं। उनके शिष्यों की संख्या लगातार बढ़ते ही जा रही थी। राजनीति दल के लोगों से उनका मिलना-जुलना जारी था। और उनकी यही बढ़ती हुई लोकप्रियता एक दिन उन्हें राजनीति में ले आई। राजनीति में उनका प्रवेश हुआ जनता पार्टी के साथ। 1975 में आपात काल के बाद सन 1977 में जनता पार्टी से राजिम विधानसभा सीट से चुनाव लड़े। एक युवा संत कवि के सामने तब कांग्रेस के दिग्गज नेता श्यामाचरण शुक्ल कांग्रेस पार्टी से मैदान में थे। लेकिन युवा संत कवि पवन दीवान ने श्यामाचरण शुक्ल को हराकर सबको चौंका दिया था। तब उस दौर में एक नारा गूँजा था- पवन नहीं ये आँधी है, छत्तीसगढ़ का गाँधी है। श्यामाचरण शुक्ल जैसे नेता को हराने का इनाम पवन दीवान को मिला और अविभाजित मध्य प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार में जेल मंत्री रहे। इसके बाद वे कांग्रेस के साथ आ गए और फिर पृथक राज्य छत्तीसगढ़ बनने तक कांग्रेस में रहे।2003 में रमन सरकार बनने के साथ वे भाजपा में और रमन सरकार में गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष रहे।

अपनी खिलखिलाहट से समूचे छत्तीसगढ़ को हंसा देने वाले पवन दीवान को 23 फ़रवरी, 2014 को राजिम कुंभ मेला में कार्यक्रम के दौरान ब्रेम हेमरेज हुआ। फिर वे कोमा में चले गए। फिर वह चेतना में नहीं आ सके। 2 मार्च, 2014 को दिल्ली में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। पवन दीवान का जन्म 1 जनवरी, 1945 को राजिम के पास ग्राम किरवई में हुआ था। और अंतत: किरवई में ही उनकी देह ‘राख’ बन गई। पर वह पृथक छत्तीसगढ़ राज्य के सपने को सच कर और छत्तीसगढ़ के जन-जन में स्वाभिमान जगाकर वास्तव में अमृत आनंद की वर्षा कर हमेशा जिंदा रहेंगे…।

कौशल किशोर चतुर्वेदी

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। दो पुस्तकों “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।

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