नई दिल्ली : दिल्ली हाई कोर्ट ने यौन उत्पीड़न और जिस्मफरोशी में शामिल संस्थान का मैनेजर होने के आरोप में पिछले साल हिरासत में लिए गए एक शख्स की गिरफ्तारी को अवैध करार दिया। उसे रिहा करने का आदेश देते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने पर उसे फौरन गिरफ्तारी के आधार बताने जरूरी है, ताकि वह अपनी रिमांड या न्यायिक हिरासत का विरोध करने के लिए कानून की मदद ले सके। हाई कोर्ट ने पाया कि मौजूदा मामले में इस कानूनी प्रावधान का उल्लंघन हुआ।
‘फौरन’ शब्द की व्याख्या
“गिरफ्तारी के आधार” से जुड़ी सीआरपीसी की धारा 50 के अंतर्गत इस्तेमाल शब्द “फौरन” (forthwith) की सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के फैसलों में व्याखयाओं का हवाला देते हुए जस्टिस अनूप जयराम भंभानी ने कहा कि संबंधित प्रावधान के तहत एक अरेस्टिंग ऑफिसर को गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के साथ ही इसकी वजहें बताने की जिम्मेदारी से बांधा गया है।
‘गिरफ्तारी की वजह नहीं बताई’
मौजूदा मामले में हाई कोर्ट ने गौर किया कि याचिकाकर्ता को गिरफ्तार करने वाले जांच अधिकारी और उसे दो दिन की पुलिस रिमांड पर भेजने वाले मैजिस्ट्रेट की ओर से संबंधित प्रावधान का पालन करने में चूक हुई। इसलिए कोर्ट ने अरेस्ट को अवैध करार देते हुए रिमांड पर भेजने वाले आदेश को भी निरस्त कर दिया। साथ ही, याचिकाकर्ता मार्फिंग तमांग को निर्देश दिया कि वह कमला मार्केट पुलिस थाने में उसके खिलाफ दर्ज मामले की जांच में पूरा सहयोग करे। तमांग ने 17 मई, 2024 को अपनी गिरफ्तारी और 18 मई, 2024 को रिमांड पर भेजे जाने पर आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी। याचिकाकर्ता के वकील अदित एस पुजारी ने दलील दी कि याचिकाकर्ता को गिरफ्तार तो कर लिया, पर गिरफ्तारी की वजह नहीं बताई गई थी।