पीथमपुर में ‘कचरा निष्पादन’ को ‘उल्टा चश्मा’ लगाकर देखें तो…
मध्यप्रदेश में हुई दुनिया की बड़ी गैस त्रासदी का कचरा अब हाईकोर्ट के आदेश पर निष्पादन की प्रक्रिया में है। निष्पादन पीथमपुर में हो रहा है। निष्पादन पर राजनीति भी हो रही है। 1 जनवरी 2025 को दस बड़े कंटेनर में कचरा जब पीथमपुर पहुंचा, तब चौतरफा विरोध शुरू हो गया। तब विरोध करने वालों में कांग्रेस मुखर थी, तो स्थानीय भाजपा नेतृत्व भी विरोध के साथ खड़ा था। मामला कोर्ट का था। मंत्री कैलाश विजयवर्गीय कचरा निष्पादन पर स्थानीय संतुलन बनाने की कमान थामे थे। अंतत: मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने भी अपना पक्ष रखा। और पीथमपुर के हालातों से कोर्ट को अवगत कराया गया। इसके बाद जन-जागरूकता का सहारा लिया गया। विरोधी संगठन सुप्रीम कोर्ट की शरण में गए। सुप्रीम कोर्ट ने पल्ला झाड़ लिया और अब हाईकोर्ट के आदेश के मुताबिक कचरा निष्पादन प्रक्रिया 28 फरवरी 2025 से शुरू हो गई है। पहले तीन चरणों में 10-10 टन कचरा निष्पादन होना है। फिर इसकी रिपोर्ट हाईकोर्ट के सामने रखनी है। फिर बाकी कचरा निष्पादन की प्रक्रिया सामने आएगी। खैर फिलहाल 1984 में हुई गैस त्रासदी का दंश अब कचरा निष्पादन तक भी कम नहीं हुआ है। पूरे 40 साल बाद कचरा निष्पादन पीथमपुर में होने से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी बेहद खफा हैं। और कचरा निष्पादन को इंदौर-धार में मुफ्त में कैंसर बांटना बता रहे हैं। तो मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव आक्रोश जता रहे हैं कि गैस त्रासदी में कांग्रेस सरकार के समय ही मौतें बांटी गई थीं। अब हाईकोर्ट के आदेश पर कचरा निष्पादन पर भी कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी बिना किसी तथ्यात्मक जानकारी के राजनीति कर रहे हैं।
तटस्थ रूप से यह कैसे पता चले कि कचरा निष्पादन होने से हो रही समस्या सही है या कचरा निष्पादन सही है। एक बार ‘उल्टा चश्मा’ लगाकर पूरे मामले को देखा जाए तो शायद सही बात सभी को समझ में आ सके। एक पक्ष यह है कि जो कचरा 40 साल से भोपाल में तिरस्कृत तौर पर पड़ा रहा। गैस पीड़ित त्रासदी को जीते रहे। क्या यह गैस पीड़ित किसी राजनैतिक दल के हिस्से में नहीं थे। अब जब 40 साल बाद 850 डिग्री तापमान पर इसका निष्पादन हो रहा है, तब इसको लेकर इतना हो-हल्ला क्यों हो रहा है। कचरे पर तो अब चालीस साल होते-होते गैस पीड़ित भी आक्रोश खत्म कर चुके हैं। यूनियन कार्बाइड परिसर के चारों तरफ भरी पूरी आबादी है। मुझे लगता है कि सीधे चश्मे से अगर कोई बात समझ में न आए तो ‘उल्टा चश्मा’ लगाकर वही चीज देखी जानी चाहिए। हो सकता है तब ऐसे गंभीर और संवेदनशील मुद्दे राजनीति का शिकार न हो पाएं।
‘उल्टा चश्मा’ की बात आज खास तौर पर इसलिए, क्योंकि आज यानि एक मार्च ‘उल्टा चश्मा’ वाले तारक मेहता जी की पुण्यतिथि है। तारक मेहता ने गुजराती पत्रिका ‘चित्रलेखा’ में 1971 में कॉलम शुरू किया था ‘दुनिया ने ऊंधा चश्मा’ और उसी को सामयिक करते हुए यह सीरियल बना है। तारक मेहता (जन्म- 26 दिसम्बर, 1929, अहमदाबाद, गुजरात; मृत्यु- 1 मार्च, 2017, अहमदाबाद) भारतीय लेखक थे। उन्होंने कई प्रकार के हास्य कहानी आदि का गुजराती में अनुवाद भी किया था। तारक मेहता मुख्यतः ‘दुनिया ने उंधा चश्मा’ नामक गुजराती भाषा में एक लेख लिखने के कारण जाने जाते हैं। 2008 में असित कुमार मोदी ने इस कहानी पर ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ धारावाहिक बनाया था। यह कहानी मुंबई के गोकुलधाम की है, जहाँ सभी लोग एक दूसरे के साथ खुशी से रहते है। जेठालाल चम्पकलाल गड़ा एक व्यापारी है जो बहुत देर से उठते हैं और इन्हें जलेबी, फाफड़ा बहुत अच्छा लगता है। लेकिन सभी लोग इसे परेशान करते रहते हैं। इनके घर में टप्पू और दया और कभी कभी साला सुन्दर और दादा जी भी हैं। इसके अलावा कभी कभी जेठालाल को दुकान में भी परेशान होना पड़ता है। इसकी पत्नी दया जेठालाल गड़ा मुख्यतः कभी भी गरबा करने लगती है। टप्पू हमेशा शैतानी करनी की सोचता है और अपने शिक्षक आत्माराम भिड़े को सताता रहता है। कई बार टप्पू आत्माराम भिड़े के घर की खिड़की का काँच तोड़ चुका है। आत्माराम भिड़े बच्चों को पढ़ाते हैं और काफी बचत करने के पीछे रहते हैं।पोपटलाल एक पत्रकार है, जो हमेशा अपने छाते के साथ ही रहते हैं और अपनी शादी के लिए चिंतित रहते हैं। इसके अलावा तारक मेहता जेठालाल के परम मित्र हैं और उन्हें हमेशा मुसीबतों से बचाते हैं। हंसराज हाथी को हमेशा कुछ न कुछ खाना पसंद है। वह कभी खाने पर नियंत्रण नहीं कर पाते हैं। जिस कारण वह मोटे हो गये लेकिन मोटापे को कम करने के हर प्रयास पर उन्हें विफलता ही मिलती है। जेठालाल के दुकान में नट्टू काका और बाघा रहते हैं। नट्टू काका हमेशा जेठालाल को अपनी पगार बढ़ाने के लिए कहते हैं। बाघा हमेशा कार्य को खराब कर देता है। इसके अलावा वह बावरी के प्यार में बावरा भी हो जाता है। यह धारावाहिक सब टीवी में सबसे अधिक देखा जाने वाला कार्यक्रम है।
तारक मेहता 1958 में गुजराती नाट्य मंडल से जुड़े 1959-60 में वे दैनिक प्रजातंत्र में डिप्टी एडिटर थे। हालांकि उन्होंने लंबे समय तक अखबार में काम नहीं किया और कुछ समय बाद सूचना और प्रसारण विभाग से जुड़ गए थे। 1960 से 1986 तक तारक मेहता भारत सरकार के सूचना और प्रसारण विभाग में कंटेट राइटर रहे, बाद में वहीं पर अधिकारी बन गये। तारक मेहता का साप्ताहिक लेख पहली बार मार्च, 1971 में ‘चित्रलेखा’ नामक एक साप्ताहिक अखबार में आया। 1971 में इन्होंने 80 पुस्तकों को प्रकाशित किया जिसमें 3 पुस्तक उनके ‘दिव्य भास्कर’ नामक अखबार में छापे जाने वाले लेख पर आधारित थे। साहित्य मे महत्वपूर्ण योगदान के लिए भारत सरकार ने तारक मेहता को 2015 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया था। तारक मेहता का निधन 1 मार्च, 2017 को हुआ था।
तो पीथमपुर में ‘कचरा निष्पादन’ पर राजनीति कितनी उचित है, इस पर तो कुछ कहना बेकार है। पर तारक मेहता को याद करते हुए ‘कचरा निष्पादन’ की प्रक्रिया को सभी को ‘उल्टा चश्मा’ लगाकर जरूर देखना चाहिए। और फिर खुशी-खुशी ऐसी संवेदनशील और गंभीर समस्या के समाधान पर अपनी राय बनाना चाहिए…ताकि लॉ एंड आर्डर की स्थिति न बन सके ऐर और जनता की आंखों में संशय का पर्दा न पड़ पाए…।
कौशल किशोर चतुर्वेदी
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। दो पुस्तकों “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।