दतिया जिले के गांव जानोरी का हर नागरिक आज सिर गर्व से ऊंचा किए खड़ा है। वजह है, गांव के वीर सपूत- सैनिक रविन्द्र सिंह परमार। वे पाकिस्तान के हमले में घायल हुए हैं।
‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद 7-8 मई की दरम्यानी रात पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की कोशिश हुई। मुठभेड़ के दौरान रविन्द्र सिंह ने अदम्य साहस दिखाते हुए घुसपैठियों को माकूल जवाब दिया। दुश्मन की एक गोली रविन्द्र के पैर में जा फंसी, जिसे बाद में ऑपरेशन कर निकाला गया। घायल सैनिक का जज्बा अभी भी मजबूत है- वे जल्द ही फिर से ड्यूटी पर लौटना चाहते हैं।
टीम गांव जानोरी पहुंची। परिवार के साथ ही गांववालों की आंखों में बेटे के लिए गर्व नजर आया। उन्होंने कहा- ‘हमें रविन्द्र पर नाज है। भगवान से प्रार्थना है कि वह जल्द ठीक हो और फिर दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दे।’ परिजनों ने बताया कि रविन्द्र इस साल दिसंबर-जनवरी में 40 दिन की छुट्टी पर घर आया था। 12 मई को फिर घर आने वाला था। पढ़िए पूरी रिपोर्ट…
सुबह 7 बजे फोन आया, सुनते ही सब कुछ ठहर गया सैनिक रविन्द्र सिंह परमार के बड़े भाई जगभान सिंह परमार ने बातचीत में बताया कि उन्हें रात में बॉर्डर पर हुई मुठभेड़ की कोई जानकारी नहीं थी। परिवार के सभी लोग रोजमर्रा के कामों में व्यस्त थे। सुबह करीब 7 बजे रविन्द्र का फोन आया। उन्होंने कहा- ‘भाईसाहब, रात में बॉर्डर पर जवाबी कार्रवाई के दौरान मेरे पैर में गोली लगी है।’
यह सुनते ही एक पल को तो लगा जैसे जमीन खिसक गई हो। कांपती आवाज में मैंने पूछा- तुम्हारी हालत कैसी है? वह गर्व से बोला- ‘ज्यादा कुछ नहीं हुआ, जल्द ठीक हो जाऊंगा। उसके ये शब्द सुनकर मेरा सीना चौड़ा हो गया। उसने हमें और गौरव महसूस करवाया। उसने आगे कहा- भाईसाहब जैसे ही ठीक हो जाऊंगा, फिर से दुश्मनों से मुकाबला करूंगा।
ऑपरेशन कर निकाली गई पैर में फंसी गोली जगभान ने कहा- रविन्द्र वर्ष 2003 में भारतीय सेना में भर्ती हुए थे और फिलहाल वे 5वीं रेजिमेंट में तैनात हैं। पैर में गोली लगने के बाद रविन्द्र को तत्काल सेना के अस्पताल में भर्ती कराया गया। गोली पैर में फंसी थी, जिसे ऑपरेशन कर निकाला गया। मुझे गर्व है कि पाकिस्तान से चल रहे तनावपूर्ण हालात में मेरे छोटे भाई को सरहद पर दुश्मनों को जवाब देने का मौका मिला। जैसे ही वह पूरी तरह स्वस्थ होगा, फिर से मोर्चे पर डट जाएगा।
बचपन से है देश सेवा का जज्बा
जगभान ने बताया कि रविन्द्र को बचपन से ही देश सेवा का जज्बा है। वह भगत सिंह, चंद्र शेखर आजाद जैसे वीर शहीदों को अपना आदर्श मानता है। रविंद्र के दो बेटे हैं। वे भी बड़े होकर सेना में जाना चाहते हैं।
रविन्द्र के चचेरे भाई राहुल राजा परमार भी 2006 से सेना में हैं और वर्तमान में बॉर्डर पर ही तैनात हैं। पंचायत के लगभग एक दर्जन से अधिक युवा सेना में सेवाएं दे रहे हैं। ग्रामीणों ने बताया कि यह भूमि वीरों की भूमि है- जहां हर घर से कोई न कोई देश सेवा में योगदान दे रहा है।
घर लौटने की थी तैयारी
रविन्द्र 12 मई को अपने घर आने वाले थे, लेकिन अब उनकी छुट्टी रद्द कर दी गई है। परिवार के अनुसार वे दिसंबर-जनवरी में 40 दिन की छुट्टी लेकर घर आए थे और इस बार बच्चों से वादा किया था कि फिर से मिलेंगे, लेकिन देश सेवा पहले है। यही वजह है कि परिवार पूरी तरह से इस स्थिति को समझ रहा है और गर्व से हर दिन उनके स्वस्थ होने की दुआ कर रहा है। पूरे गांव को उन पर गर्व है।