और बर्बाद हो गई हीरे की राजधानी…कौशल किशोर चतुर्वेदी

और बर्बाद हो गई हीरे की राजधानी.

भारत में मुगल शासन के पतन के लिए सबसे बड़ा गुनाहगार यदि कोई है, तो दक्षिण और पश्चिम तक साम्राज्य विस्तार की लालसा रखने वाला औरंगजेब। कहा भी जाता है कि दक्षिण ने औरंगजेब की कब्र खोद दी थी, वह वापस उत्तर भारत पहुंच भी नहीं सका। वैसे तो औरंगजेब को फकीर शासक भी कहा जाता है, पर इस फकीर ने बहुत उपद्रव किए। और इसी का खामियाजा बाद के कमजोर मुगल शासकों को भुगतना पड़ा। परिणाम मुगल साम्राज्य का मिट्टी में मिलना ही रहा। आज यानि 30 सितंबर को औरंगजेब की चर्चा इसलिए, क्योंकि 30 सितंबर 1687 को साजिश कर औरंगजेब ने गोलकुंडा के किले पर कब्जा कर अकूत संपदा लूटी थी। हालांकि गोलकुंडा किले को फतह करने में इस मुगल बादशाह के पसीने छूट गए थे। पर जिद्दी शासक ने गोलकुंडा के किले को जीतकर बर्बाद कर दिया था। गोलकुंडा को उस समय हीरे की राजधानी कहा जाता था। ऐसा कहा जाता है कि यहीं की कोल्लूर खदान में दुनिया के सबसे खूबसूरत हीरे मिले थे, इन्हीं में से एक कोहिनूर था। गोलकोंडा किला (गोल्ला कोंडा (तेलुगु: “चरवाहों की पहाड़ी”) के रूप में भी जाना जाता है। हीरे की खदानों, विशेष रूप से कोल्लूर खदान के आसपास के कारण, गोलकोंडा बड़े हीरे के व्यापार केंद्र के रूप में विकसित हुआ, जिसे गोलकोंडा हीरे के रूप में जाना जाता है। इस क्षेत्र ने दुनिया के कुछ सबसे प्रसिद्ध हीरे का उत्पादन किया है, जिसमें रंगहीन कोह-ए- नूर (अब यूनाइटेड किंगडम के स्वामित्व में), ब्लू होप (संयुक्त राज्य अमेरिका), गुलाबी डारिया-ए-नूर (ईरान), सफेद रीजेंट (फ्रांस), ड्रेसडेन ग्रीन (जर्मनी), और रंगहीन ओर्लोव (रूस) , निज़ाम और जैकब (भारत), साथ ही अब खोए हुए हीरे फ्लोरेंटाइन येलो, अकबर शाह और ग्रेट मोगुल, सब गोलकुंडा के हीरे थे।

 

 

मुगल सल्तनत को दक्षिण में फतह शाहजहां और उसके बाद औरंगजेब ने दिलाई थी। हालांकि अपने दक्षिण अभियान के दौरान मुगल सल्तनत को सबसे ज्यादा मुश्किल हुई थी गोलकुंडा किला फतह करने में। यह ऐसा किला था जिस पर कब्जा करने के लिए मुगल बादशाह औरंगजेब के पसीने छूट गए थे। इतिहास में दर्ज जानकारी के मुताबिक जब मुगल सेना गोलकुंडा दुर्ग पर कब्जा नहीं जा सकी तो वह खुद यहां आया था और कई माह तक दुर्ग के बाहर ही डेरा डाले रहा, जब ताकत से उसे सफलता नहीं मिली तो उसने एक साजिश चली थी। औरंगजेब गुस्से से आग बबूला था, लेकिन उसने आपा नहीं खोया। उसने गोलकुंडा को मुगल साम्राज्य से संयुक्त होने की घोषणा की और ये ऐलान कराया कि गोलकुंडा के सुल्तान को कोई किसी तरह की सहायता न दे। जब उसे कोई विशेष सहायता नहीं मिली तो उसने सुल्तान के एक अफगान सरदार अब्दुल्ला को घूस देकर धोखे से किले के गेट खुलवा दिए। युद्ध में औरंगजेब की जीत हुई और सुल्तान को कैद कर दौलताबाद दुर्ग में भेज दिया गया। इस दुर्ग से मुगल सल्तनत को अकूत संपत्ति मिली थी।

इस बहाने ही सही, आज हम गोलकुंडा के प्राचीन किले के बारे में चर्चा करते हैं। गोलकोण्डा दक्षिणी भारत में, हैदराबाद नगर से पाँच मील पश्चिम स्थित एक दुर्ग तथा ध्वस्त नगर है। पूर्वकाल में यह कुतबशाही राज्य में मिलनेवाले हीरे-जवाहरातों के लिये प्रसिद्ध था। इस दुर्ग का निर्माण वारंगल के राजा ने 14वीं शताब्दी में कराया था। बाद में यह बहमनी राजाओं के हाथ में चला गया और मुहम्मदनगर कहलाने लगा। 1512 ई. में यह कुतबशाही राजाओं के अधिकार में आया और वर्तमान हैदराबाद के शिलान्यास के समय तक उनकी राजधानी रहा। फिर 1687 ई. में इसे औरंगजेब ने जीत लिया। यह ग्रैनाइट की एक पहाड़ी पर बना है जिसमें कुल आठ दरवाजे हैं। किला पत्थर की तीन मील लंबी मजबूत दीवार से घिरा है। यहाँ के महलों तथा मस्जिदों के खंडहर अपने प्राचीन गौरव गरिमा की कहानी सुनाते हैं। मूसी नदी दुर्ग के दक्षिण में बहती है। दुर्ग से लगभग आधा मील उत्तर कुतबशाही राजाओं के ग्रैनाइट पत्थर के मकबरे हैं जो टूटी फूटी अवस्था में अब भी विद्यमान हैं।

 

2014 में यूनेस्को द्वारा इस परिसर को विश्व धरोहर स्थल बनने के लिए अपनी “अस्थायी सूची” में रखा गया था। इसे शुरू में शेफर्ड हिल (तेलुगु में गोला कोंडा) कहा जाता था। किंवदंती के अनुसार, इस चट्टानी पहाड़ी पर एक चरवाहा लड़का एक मूर्ति के पास आया। इस पवित्र स्थान के चारों ओर मिट्टी के किले का निर्माण करने वाले शासक काकतीय राजा को जानकारी दी गई। काकतीय शासक गणपतिदेव 1199-1262 ने अपने पश्चिमी क्षेत्र की रक्षा के लिए एक पहाड़ी की चोटी पर चौकी का निर्माण किया- जिसे बाद में गोलकोण्डा किला के नाम से जाना गया।रानी रुद्रमा देवी और उनके उत्तराधिकारी प्रतापरुद्र ने किले को और मजबूत किया। गोलकोंडा किला सबसे पहले काकतीय राजवंश द्वारा कोंडापल्ली किले की तर्ज पर उनके पश्चिमी सुरक्षा के हिस्से के रूप में बनाया गया था। इसके बाद बहमनी शासकों ने एक किला बनाने के लिए पहाड़ी पर कब्जा कर लिया। बहमनी सल्तनत के तहत, गोलकुंडा धीरे-धीरे प्रमुखता से ऊपर उठ गया। सुल्तान कुली कुतुब-उल-मुल्क ( 1487-1543), (गोलकुंडा में एक गवर्नर के रूप में बहमनियों द्वारा भेजे गए) ने शहर को 1501 के आसपास अपनी सरकार की सीट के रूप में स्थापित किया। इस अवधि के दौरान बहमनी शासन धीरे-धीरे कमजोर हो गया, और सुल्तान कुली कुतुब शाह काल औपचारिक रूप से 1538 में स्वतंत्र हो गया, गोलकुंडा में स्थित कुतुब शाही राजवंश की स्थापना हुई। गोलकोंडा किला 1687 में आठ महीने की लंबी घेराबंदी के बाद मुगल बादशाह औरंगजेब के हाथों यह किला अंततः बर्बाद हो गया।

गोलकुंडा का किला यह चिल्ला-चिल्ला कर कह रहा है कि उत्थान है तो पतन है, उदय है तो अस्त भी है…और औरंगजेब जैसे शासक ऐसे किले को जीतकर अपनी बर्बादी की तरफ ही कदम बढ़ाते हैं। तो हीरे की राजधानी भी अपना अस्तित्व खोने को मजबूर हो जाती है…।

कौशल किशोर चतुर्वेदी

कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। दो पुस्तकों “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।

वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश‌ संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।

 

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