अनमोल ‘रतन’ जो सभी दिलों में समाया है…
यह किसी उद्योगपति की विदाई नहीं है, यह किसी धनवान की विदाई नहीं है, यह किसी अनजान की विदाई नहीं है…यह तो हर दिल पर राज करने वाले किसी अपने इंसान की विदाई है, जिसे किसी ने पास से भले ही न देखा हो पर जो हर दिल के करीब था, है और रहेगा… दिल का एक कोना इस प्रिय की विदाई संग हमेशा के लिए खाली हो गया। जिसकी संवेदनशीलता सभी के दिल को छू गई है, जिसकी उदारता ने सबको अपना सगा बना लिया और जिसकी परोपकार की भावना ने हर मन को अपना कायल कर दिया है। ऐसा ‘रतन’ जिसको सम्मानित कर पुरस्कार और सम्मान खुद सम्मानित और पुरस्कृत होते रहे। जिसकी एक झलक पाकर लोगों को यही लगा कि अपलक देखते ही रहें। जो देह में रहा, पर हमेशा वही आत्मा बनकर कि जिसे न मारा जा सकता है, न जलाया जा सकता है और जिसे न पानी गीला कर सकता है और हवा न सुखा सकती है। जो कल जब सबके सामने नहीं था, तब भी किसी न किसी रूप में घर से लेकर बाहर तक आसपास था। जो आज भी सबके बीच है। और जो कल देहातीत होकर भी हम सबके बीच किसी न किसी रूप में हमेशा रहेगा। महाराष्ट्र सरकार ने इस ‘रतन’ को मरणोपरांत भारत रत्न देने की मांग की है। पर अब तो वह ‘भारत रत्न’ से कोसों मील दूर बहुत ऊंचे पायदान पर खड़े यह अहसास करा रहे हैं कि वह हमेशा से ही इन सबसे बहुत ऊपर रहे हैं, परे रहे हैं और उन्हें जो सम्मान मिलना था, वह उन्हें बहुत पहले जिंदा रहते ही मिल गया है। भरोसा न हो, तो करोड़ों दिलों में झांककर देख लो, भरोसा हो जाएगा। इसका दूसरा जवाब इस वाकये में छिपा है जो बिजनेसमैन कॉलमनिस्ट और एक्टर सुहेल सेठ ने एक इंटरव्यू में बताया था। साल 2018 में ब्रिटेन के तत्कालीन प्रिंस चार्ल्स तृतीय ने लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड देने के लिए बंकिंघम पैलेस में आमंत्रित किया था। इसके लिए एक पूरा फंक्शन भी आयोजित किया गया था। रतन टाटा ने प्रिंस चार्ल्स के अनुरोध को स्वीकार किया और लंदन आने के लिए हामी भर दी। 6 फरवरी के इस इवेंट के लिए सेठ 2 या 3 फरवरी को ही लंदन पहुंच गए थे। पर उन्होंने देखा कि टाटा के 11 मिस्ड कॉल हैं। उन्होंने कॉल बैक किया तो फोन पर रतन टाटा ने सुहेल से कहा कि वह इस अवॉर्ड को लेने नहीं आ सकते क्योंकि उनके डॉग टैंगो और टीटो में से कोई एक बहुत बीमार है। इसके बाद सुहेल ने टाटा से कहा कि प्रिंस चार्ल्स ने यह लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड इवेंट आपके लिए रखा है। लेकिन बावजूद इसमें रतन टाटा नहीं आए। और जब इस बात का पता प्रिंस चार्ल्स को लगा, तो वह रतन टाटा से काफी प्रभावित हुए। सुहेल सेठ ने बताया कि प्रिंस चार्ल्स ने रतन टाटा की तारीफ करते हुए कहा कि ‘इंसान ऐसा ही होना चाहिए, रतन टाटा कमाल के इंसान हैं। रतन टाटा की इसी आदत की वजह से आज टाटा समूह इस मुकाम पर है।’
वास्तव में रतन टाटा कमाल के थे। जिनका चेहरा उनके दौर का हर इंसान याद रखेगा। और यह किस्सा तो दिलों को उनके प्रति प्यार, सम्मान और श्रद्धा-आस्था से भर देता है। जब रतन टाटा से उस एक बच्चे ने कहा था कि ‘मैं आपका चेहरा याद रखना चाहता हूं ताकि जब मैं आपसे स्वर्ग में मिलूं, तो मैं आपको पहचान सकूं और एक बार फिर आपका धन्यवाद कर सकूं।” यह किस्सा खुद रतन टाटा ने ही साझा किया था। जब एक टेलीफोन साक्षात्कार में भारतीय अरबपति रतनजी टाटा से रेडियो प्रस्तोता ने पूछा:
“सर आपको क्या याद है कि आपको जीवन में सबसे अधिक खुशी कब मिली”?
तब रतनजी टाटा ने कहा:
“मैं जीवन में खुशी के चार चरणों से गुजरा हूं, और आखिरकार मुझे सच्चे सुख का अर्थ समझ में आया।” पहला चरण धन और साधन संचय करना था। लेकिन इस स्तर पर मुझे वह सुख नहीं मिला जो मैं चाहता था। फिर क़ीमती सामान और वस्तुओं को इकट्ठा करने का दूसरा चरण आया। लेकिन मैंने महसूस किया कि इस चीज का असर भी अस्थायी होता है और कीमती चीजों की चमक ज्यादा देर तक नहीं रहती। फिर आया बड़ा प्रोजेक्ट मिलने का तीसरा चरण। वह तब था जब भारत और अफ्रीका में डीजल की आपूर्ति का 95% मेरे पास था। मैं भारत और एशिया में सबसे बड़ा इस्पात कारखाने का मालिक भी था। लेकिन यहां भी मुझे वो खुशी नहीं मिली जिसकी मैंने कल्पना की थी। चौथा चरण वह समय था जब मेरे एक मित्र ने मुझे कुछ विकलांग बच्चों के लिए व्हीलचेयर खरीदने के लिए कहा।लगभग 200 बच्चे। दोस्त के कहने पर मैंने तुरंत व्हीलचेयर खरीद ली। लेकिन दोस्त ने जिद की कि मैं उसके साथ जाऊं और बच्चों को व्हीलचेयर सौंप दूं। मैं तैयार होकर उसके साथ चल दिया। वहाँ मैंने इन बच्चों को अपने हाथों से ये व्हील चेयर दी। मैंने इन बच्चों के चेहरों पर खुशी की अजीब सी चमक देखी। मैंने उन सभी को व्हीलचेयर पर बैठे, घूमते और मस्ती करते देखा। यह ऐसा था जैसे वे किसी पिकनिक स्पॉट पर पहुंच गए हों, जहां वे बड़ा उपहार जीतकर शेयर कर रहे हों। मुझे अपने अंदर असली खुशी महसूस हुई। जब मैंने छोड़ने का फैसला किया तो बच्चों में से एक ने मेरी टांग पकड़ ली। मैंने धीरे से अपने पैरों को छुड़ाने की कोशिश की, लेकिन बच्चे ने मेरे चेहरे को देखा और मेरे पैरों को कस कर पकड़ लिया। मैं झुक गया और बच्चे से पूछा: क्या तुम्हें कुछ और चाहिए? इस बच्चे ने मुझे जो जवाब दिया, उसने न केवल मुझे झकझोर दिया बल्कि जीवन के प्रति मेरे दृष्टिकोण को भी पूरी तरह से बदल दिया।
इस बच्चे ने कहा: “मैं आपका चेहरा याद रखना चाहता हूं ताकि जब मैं आपसे स्वर्ग में मिलूं, तो मैं आपको पहचान सकूं और एक बार फिर आपका धन्यवाद कर सकूं।”
टाटा की जुबानी यह अनुभव और उनके मन की बात यही कह रही है कि जीवन के मर्म से हमेशा ही ‘रतन’ सराबोर थे और वह हमेशा से ही माया से निर्विकार रहकर माया जगत को लुभाते रहे। चाहे नैनो कार का किस्सा हो या अनगिनत हजारों दूसरी कहानियां। अब सच यही है कि रतन टाटा ने देह स्वरूप में 28 दिसंबर 1937 से 9 अक्टूबर 2024 तक पृथ्वी गृह की यात्रा की थी…अब उनका नया ठिकाना उस प्यारे बच्चे की निगाहों में समाया वही ‘स्वर्ग’ है, जिसे किसी भी नाम से पुकारा जा सकता है। पर यह सच है कि देह स्वरूप में उनसे बेहतर और सच्चे इंसान की कल्पना नहीं की जा सकती। यह वही अनमोल ‘रतन’ है जो सभी दिलों में समाया है और समाया रहेगा…जिसके सामने ‘भारत रत्न’ जैसा शब्द भी फीका है। और आजादी के बाद के महापुरुषों की श्रंखला में ‘रतन टाटा’ का नाम स्वर्ण अक्षरों में पहली पंक्ति में अंकित रहेगा…।
कौशल किशोर चतुर्वेदी
कौशल किशोर चतुर्वेदी मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पिछले ढ़ाई दशक से सक्रिय हैं। दो पुस्तकों “द बिगेस्ट अचीवर शिवराज” और काव्य संग्रह “जीवन राग” के लेखक हैं। स्तंभकार के बतौर अपनी विशेष पहचान बनाई है।
वर्तमान में भोपाल और इंदौर से प्रकाशित दैनिक समाचार पत्र “एलएन स्टार” में कार्यकारी संपादक हैं। इससे पहले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में एसीएन भारत न्यूज चैनल में स्टेट हेड, स्वराज एक्सप्रेस नेशनल न्यूज चैनल में मध्यप्रदेश संवाददाता, ईटीवी मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ में संवाददाता रह चुके हैं। प्रिंट मीडिया में दैनिक समाचार पत्र राजस्थान पत्रिका में राजनैतिक एवं प्रशासनिक संवाददाता, भास्कर में प्रशासनिक संवाददाता, दैनिक जागरण में संवाददाता, लोकमत समाचार में इंदौर ब्यूरो चीफ दायित्वों का निर्वहन कर चुके हैं। नई दुनिया, नवभारत, चौथा संसार सहित अन्य अखबारों के लिए स्वतंत्र पत्रकार के तौर पर कार्य कर चुके हैं।