मध्यप्रदेश में कांग्रेस नेताओ का पार्टी छोड़ने का सिलसिला जारी, पिछले 10 साल में 35 विधायकों ने छोड़ी पार्टी; 22 नेताओं का गुमनामी में जाने का दावा – देखे VIDEO

मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने कुछ दिनों पहले एक बयान दिया था। कहा था- बीजेपी भय और लालच के दम पर विपक्ष को खत्म करना चाहती है। डरे हुए कुछ मौका परस्त मन बदल भी रहे हैं, लेकिन उनकी स्थिति जनता भी देख, समझ रही है।

 

इसके साथ ही जीतू पटवारी ने दावा किया था कि बीते 10 सालों में कांग्रेस के 35 विधायकों ने पाला बदलकर बीजेपी जॉइन की, लेकिन इनमें से 22 नेता गुमनामी के अंधेरे में खो गए हैं। उनका सियासी सफर खत्म सा हो गया है। ज्यादातर नेता या तो चुनाव हार गए या फिर उन्हें टिकट ही नहीं मिला। उन्होंने ये भी कहा कि इस समय कांग्रेस छोड़कर बीजेपी जॉइन करने वाले केवल 9 नेता विधायक हैं, उनमें भी केवल 4 ही मंत्री पद तक पहुंचे हैं।

 

जीतू पटवारी ने ये बयान इसलिए दिया क्योंकि हाल ही में कांग्रेस के तीन विधायकों ने पार्टी छोड़ दी है। इनमें से एक ने तो विधानसभा से भी इस्तीफा दे दिया है। इसी साल जनवरी से अब तक कांग्रेस के कई सीनियर और जूनियर लीडर पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो चुके हैं। बीजेपी की न्यू जॉइनिंग टोली के संयोजक और मप्र के पूर्व गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने तो दावा किया कि अब तक कांग्रेस और दूसरे दलों से जुड़े करीब 4 लाख नेता बीजेपी जॉइन कर चुके हैं।

पिछले दशक में हुए राजनीतिक घटनाक्रम को देखा, तो पता चला कि दलबदल करने वाले 33 विधायक थे। इनमें से 2 ने अलग राह पकड़ ली। एक नेता दो बार दल बदलकर फिर बीजेपी में आ गए। बचे 30 नेताओं में से 13 फिर से विधायक बने हैं। बाकी 17 नेता पार्टी में है, लेकिन कोई जिम्मेदारी नहीं है। मंडे स्पेशल में पढ़िए मप्र में पिछले एक दशक में हुए सियासी दलबदल की पड़ताल…

पिछले दो महीने में कांग्रेस के तीन विधायक बीजेपी में शामिल हुए

2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 163 सीटों पर जीत दर्ज की। कांग्रेस के खाते में 66 सीटें आई थीं। एक सीट पर भारत आदिवासी पार्टी ने जीत दर्ज की है। इस चुनाव के बाद कांग्रेस के तीन विधायक बीजेपी में शामिल हो चुके हैं।

छिंदवाड़ा जिले की अमरवाड़ा सीट से कांग्रेस विधायक कमलेश शाह ने लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी की सदस्यता ले ली। उन्होंने विधानसभा से भी इस्तीफा दे दिया। अब कांग्रेस के 65 विधायक बचे हैं। इसके बाद लोकसभा के तीसरे चरण के चुनाव से पहले विजयपुर सीट से विधायक रामनिवास रावत ने पार्टी छोड़ी, मगर उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा नहीं दिया है।

ऐसा ही कुछ बीना विधायक निर्मला सप्रे ने भी किया है। वे भी कांग्रेस छोड़ चुकी हैं, मगर विधानसभा से उन्होंने भी इस्तीफा नहीं दिया है।

अब जानिए कब से शुरू हुआ दलबदल

कांग्रेस विधायक राकेश सिंह विधानसभा से सीधे बीजेपी कार्यालय गए

साल 2012 में एमपी विधानसभा का शीतकालीन सत्र चल रहा था। तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए थे। जिस दिन सदन के पटल पर अविश्वास प्रस्ताव रखा जाना था, उसी दिन एक बड़ा सियासी घटनाक्रम हुआ। इसकी भनक किसी को नहीं थी।

अजय सिंह अविश्वास प्रस्ताव रखने के लिए सदन में अपनी कुर्सी से उठे, जैसे ही उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव की लाइनें पढ़ना शुरू की उनके पीछे वाली कुर्सी पर बैठे उप नेता प्रतिपक्ष चौधरी राकेश सिंह अपनी कुर्सी से उठे और उन्होंने इस अविश्वास प्रस्ताव का विरोध कर दिया। सदन से उठकर वे सीधे बीजेपी दफ्तर पहुंचे और बीजेपी जॉइन कर ली। अजय सिंह अविश्वास प्रस्ताव पेश ही नहीं कर पाए।

2013 विधानसभा चुनाव के बाद दो कांग्रेस विधायक विजयराघवगढ़ से संजय पाठक और मैहर सीट से विधायक नारायण त्रिपाठी ने भी बीजेपी जॉइन की थी। इन्होंने विधानसभा से भी इस्तीफा दिया था, लेकिन टीकमगढ़ की जतारा सीट से विधायक बने दिनेश अहिरवार पूरे पांच साल तक बीजेपी को सपोर्ट करते रहे। उन्होंने न तो कांग्रेस छोड़ी न ही पार्टी से इस्तीफा दिया।

2013 के चुनाव से पहले कांग्रेस नेता और तत्कालीन उप नेता प्रतिपक्ष चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी ने बीजेपी जॉइन कर ली थी।

2020 में सबसे बड़ा दलबदल, सिंधिया समर्थक 22 विधायकों ने छोड़ी कांग्रेस

साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी बहुमत हासिल नहीं कर सकी और सत्ता से बाहर हो गई। बीजेपी को दोबारा सत्ता में लौटने का मौका मिला ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से। तत्कालीन सीएम कमलनाथ से मनमुटाव के चलते सिंधिया ने 2020 में अपने 22 समर्थक विधायकों के साथ कांग्रेस छोड़ दी थी।

नतीजा ये हुआ कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई और बीजेपी ने बहुमत के आधार पर फिर सरकार बना ली। सिंधिया समर्थक विधायकों के अलावा 2018 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते तीन और विधायकों ने पार्टी छोड़ी थी। तीन सीटें विधायकों के निधन की वजह से पहले से खाली थीं। इस तरह कोरोना काल में 28 सीटों पर उपचुनाव हुआ, जिसमें से बीजेपी ने 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी।

अब जानिए 2013 के चुनाव के दौरान दल बदलने वाले नेताओं की स्थिति

राकेश फिर कांग्रेस में, त्रिपाठी नई पार्टी बना चुके

2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने राकेश चौधरी की बजाय उनके छोटे भाई मुकेश चौधरी को मेहगांव से टिकट दिया, वे चुनाव जीते। इसके बाद 2018 के चुनाव में बीजेपी ने भाई का टिकट काटकर राकेश सिंह को भिंड से टिकट दिया, लेकिन वे बसपा के संजीव सिंह से 35 हजार वोटों से हार गए।

इसके बाद राकेश सिंह ज्यादा दिनों तक बीजेपी में नहीं रहे। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भिंड में एक सभा में उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ले ली। 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उन्हें भिंड से टिकट दिया, लेकिन वे चुनाव हार गए।

वहीं, कांग्रेस छोड़ने के बाद नारायण त्रिपाठी ने 2015 में मैहर सीट से उपचुनाव जीता और विधायक बने। 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें फिर मैहर से टिकट दिया और वे जीते। बीजेपी की सरकार नहीं बनी तो त्रिपाठी की नजदीकी कांग्रेस नेताओं से बढ़ने लगी।

विधानसभा में कई महत्वपूर्ण विधेयकों को पूर्ण बहुमत से पास करवाने में उन्होंने तत्कालीन कमलनाथ सरकार की मदद की। इसके बाद उन्होंने विंध्य जनता पार्टी (VJP) बनाई और अलग विंध्य प्रदेश की मांग करते हुए आंदोलन शुरू किया। 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने बगावती तेवर की वजह से उन्हें टिकट नहीं दिया। वे अपनी पार्टी (VJP) से मैहर से चुनाव लड़े, मगर हार गए। उन्होंने सतना लोकसभा सीट से भी चुनाव लड़ा है।

मैहर से विधायक रहे नारायण त्रिपाठी ने 2015 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थामा था।

संजय पाठक टिके, दिनेश अहिरवार दो बार बदल चुके पार्टी

संजय पाठक ने अप्रैल 2014 में कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया था। इसके बाद 2015 में कटनी की विजयराघवगढ़ सीट पर हुए उपचुनाव में वे बीजेपी के टिकट पर विधायक चुने गए। जुलाई 2016 से दिसंबर 2018 तक वे शिवराज सरकार में लघु, सूक्ष्म और मध्यम उद्यम राज्य मंत्री रहे।

दिसंबर 2018 में विजयराघवगढ़ से फिर से विधायक बने। 2020 में जब बीजेपी ने दोबारा सरकार बनाई तो उन्हें मंत्री पद नहीं मिला। अब 2023 में हुए विधानसभा चुनाव में वे 5वीं बार विधायक चुने गए हैं, लेकिन उन्हें मंत्री नहीं बनाया है। मगर, वे बीजेपी की न्यू जॉइनिंग टोली के सह संयोजक बनाए गए हैं।

2013 में जतारा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते दिनेश अहिरवार ने 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी प्रत्याशी डॉ. वीरेंद्र खटीक का खुलकर प्रचार किया था। पूरे पांच साल वे कांग्रेस में रहकर बीजेपी को सपोर्ट करते रहे। 2018 का चुनाव आया तो बीजेपी ने उन्हें टिकट नहीं दिया।

नाराज होकर उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा, मगर हार गए। इसके बाद जब कांग्रेस की सरकार आई तो उन्होंने फिर कांग्रेस जॉइन की। 2023 के चुनाव में कांग्रेस ने भी उन्हें टिकट नहीं दिया। अब एक महीने पहले वे फिर बीजेपी में शामिल हुए हैं। फिलहाल उनके पास कोई पद नहीं है।

बीजेपी की न्यू जॉइनिंग टोली के प्रमुख सदस्य

 

अब जानिए दलबदल करने वाले सिंधिया समर्थक 22 विधायकों की क्या है स्थिति

सिंधिया समर्थक 22 विधायकों ने इस्तीफा देने के बाद 2020 में उन्हीं सीटों से उपचुनाव लड़ा। इनमें से 16 उप चुनाव जीतकर विधायक बने और 12 विधायकों को चौथी बार सत्ता में आई शिवराज सरकार में कैबिनेट और राज्यमंत्री बनाया गया था। जो 6 नेता विधायक का चुनाव हार गए थे, उन्हें निगम मंडलों में जगह मिली थी।

इसके बाद 2023 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने सिंधिया समर्थक नेताओं में से 16 को दोबारा टिकट दिया, इनमें से 7 चुनाव हार गए और 9 चुनाव जीतकर दोबारा विधायक बने। अब इनमें से 4 डॉ. मोहन सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं।

दल-बदलने के बाद वर्तमान में सिर्फ ये चार मंत्री हैं

 

22 में से 9 मौजूदा विधायक, बाकी 13 नेता क्या कर रहे ?

इमरती देवी: 2020 का उपचुनाव हार गईं। 2023 में फिर भाजपा ने डबरा से टिकट दिया और हारीं। भाजपा के संगठन में भी किसी पद पर नहीं है।

रघुराज सिंह कंषाना: 2020 का उपचुनाव हारे, इसके बाद 2023 का विधानसभा चुनाव भी मुरैना सीट से हार गए। इस समय भाजपा संगठन में किसी भी पद पर नहीं है।

कमलेश जाटव: अंबाह सीट से उपचुनाव जीते। साढ़े तीन साल तक विधायक रहने के बाद 2023 में फिर टिकट मिला, लेकिन हार गए। संगठन में किसी पद पर नहीं।

सुरेश धाकड़: पोहरी सीट से उपचुनाव जीते। शिवराज सरकार में पीडब्ल्यूडी राज्यमंत्री रहे। पार्टी ने 2023 में एक बार फिर टिकट दिया, मगर हार गए। संगठन में भी जगह नहीं

जजपाल सिंह जज्जी: अशोकनगर सीट से उपचुनाव जीते। 2023 के चुनाव में पार्टी ने टिकट दिया, मगर हार गए। संगठन में किसी पद पर नहीं।

राजवर्धन सिंह दत्तीगांव: बदनावर से उपचुनाव जीते, शिवराज कैबिनेट में उद्योग मंत्री बने। 2023 में चुनाव हार गए। भाजपा संगठन में कोई पद नहीं।

महेन्द्र सिंह सिसोदिया: बमोरी सीट से उपचुनाव जीते। शिवराज कैबिनेट में पंचायत मंत्री बने। 2023 में विधानसभा चुनाव हारे। भाजपा के संगठन में भी किसी पद पर नहीं।

इन छह नेताओं को न तो टिकट मिला, न संगठन में जगह

गिर्राज डंडौतिया: दिमनी से 2020 का उपचुनाव हारे। निगम मंडल में एडजस्ट किया। 2023 में टिकट नहीं मिला। संगठन में भी जगह नहीं।

ओपीएस भदौरिया: 2020 में मेहगांव से चुनाव जीते। शिवराज सरकार में नगरीय प्रशासन राज्य मंत्री बनाए गए। 2023 में टिकट काट दिया। संगठन में भी जगह नहीं।

रणवीर जाटव: 2020 का उपचुनाव गोहद से हार गए। निगम मंडल में एडस्ट किया। 2023 में टिकट काट दिया।

मुन्नालाल गोयल: 2020 में ग्वालियर पूर्व से उपचुनाव हारे। बीज निगम का अध्यक्ष बनाया। 2023 में टिकट नहीं दिया।

रक्षा संतराम सिरोनिया: भांडेर सीट से बेहद कम अंतर से उप चुनाव जीतीं। 2023 में टिकट नहीं मिला। संगठन में भी जगह नहीं।

जसवंत जाटव: करैरा सीट से 2020 का उपचुनाव हार गए। निगम मंडल में एडजस्ट किया गया। 2023 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने टिकट नहीं दिया।

सिंधिया के साथ बीजेपी में गए ये नेता हैं विधायक

कमलनाथ सरकार गिरने के बाद 7 विधायकों ने बीजेपी जॉइन की, इनमें से तीन फिर विधायक

प्रद्युम्न सिंह लोधी: 12 जुलाई 2020 को बीजेपी जॉइन की, मलहरा से उप चुनाव जीते। 2023 में कांग्रेस की रामसिया भारती से हारे, भाजपा संगठन में कोई पद नहीं।

सुमित्रा देवी कास्डेकर: 17 जुलाई 2020 को बीजेपी जॉइन की, नेपानगर से उप चुनाव जीतीं। 2023 में टिकट कटा। संगठन में भी कोई पद नहीं।

नारायण पटेल: 23 जुलाई 2020 को बीजेपी जॉइन की, मांधाता से उपचुनाव जीते। 2023 में भाजपा से फिर विधायक चुने गए हैं।

राहुल सिंह लोधी: 25 अक्टूबर 2020 को बीजेपी जॉइन की, दमोह सीट से उपचुनाव हारे। 2023 में टिकट नहीं मिला, मगर 2024 में दमोह से लोकसभा प्रत्याशी हैं।

सचिन बिरला: साल 2021 में बीजेपी में शामिल हुए। न तो कांग्रेस की सदस्यता से इस्तीफा दिया था न ही विधानसभा की सदस्यता से। 2023 में बीजेपी के टिकट पर फिर विधायक चुने गए।

संजीव सिंह कुशवाह : 2018 में बसपा के टिकट पर भिंड से विधायक बने। 2020 में बीजेपी में शामिल हुए। 2023 में बीजेपी ने भिंड से टिकट नहीं दिया, तो फिर बसपा से चुनाव लड़े, मगर हार गए।

राजेश शुक्ला : 2018 में सपा के टिकट पर बिजावर से विधायक बने। पहले कमलनाथ सरकार को सपोर्ट किया, फिर बीजेपी की सरकार को। 2023 में बीजेपी ने टिकट दिया, चुनाव जीत गए।

बीजेपी का दुपट्टा ओढ़े संजीव सिंह( बाएं) और उनके बगल में राजेश शुक्ला। शुक्ला बीजेपी से विधायक बन गए, मगर संजीव को टिकट नहीं दिया।

प्रभुराम चौधरी बोले- जीतू खुद विधायक का चुनाव नहीं जीत पाए

ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में आए पूर्व मंत्री और सांची विधायक डॉ. प्रभुराम चौधरी कहते हैं- मैं जीतू पटवारी से कहूंगा कि वो आत्म अवलोकन करें कि उनके अध्यक्ष के 4 महीने के कार्यकाल में कितने लोगों ने कांग्रेस छोड़कर भाजपा जॉइन की है।

जीतू पटवारी खुद भी विधायक नहीं हैं, कांग्रेस में रहते हुए वे अपनी सीट से चुनाव हार गए। चौधरी बोले- पटवारी को अध्यक्ष बने इतने दिन हो गए, लेकिन उनकी अब तक टीम ही नहीं बनी। मप्र में लोकसभा का चुनाव खत्म हो गया। वे अकेले ही थे, कोई उनके साथ नहीं था।

पटवारी का पलटवार- धन्यवाद उनका जो चले गए

इसका जवाब देते हुए प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी का कहना है कि चुनाव खत्म हो चुके हैं तो जाने वालों की पूछ परख खत्म हो गई है। जो लोग गए हैं उन्हें एक दिन बीजेपी के किसी स्टेज पर बैठा कर देखना। जिनमें दृढ़ता नहीं हैं, आइडियोलॉजी नहीं हैं, जो सरकार की सुविधा भोगकर परिवार का जीवन यापन करना चाहते हैं वो विपक्ष में रहकर काम ही नहीं कर सकते। ऐसे लोगों को धन्यवाद जो पार्टी छोड़कर चले गए

बीजेपी बोली- कांग्रेस समीक्षा करें, कांग्रेस बोली- जरूरत नहीं

इस मसले पर बीजेपी और कांग्रेस नेताओं के बीच भी वार पलटवार का दौर जारी है। बीजेपी के प्रदेश महामंत्री रजनीश अग्रवाल का कहना है कि जीतू पटवारी पीसीसी चीफ जैसे भी बने, यह उनकी पार्टी का अंदरुनी मसला है। लेकिन, उन्हें पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की समीक्षा करना चाहिए कि वर्तमान में कितने विधायक कांग्रेस में बचे हैं। जो पहले विधायक थे,आज वो किस हाल में है। आगे और कितने विधायक पार्टी छोड़ेंगे।

वहीं इस मसले पर कांग्रेस के संगठन प्रभारी राजीव सिंह का कहना है कि जिन्होंने पद या पैसे की लालसा में पार्टी छोड़ी उस वक्त बीजेपी को उनकी जरूरत थी। जब काम हो गया तो ऐसे लोगों को नकार दिया गया। वे कहते हैं कि कई लोगों को गलती समझ आती है, तो वे मातृ संस्था में वापसी की कोशिश करते हैं। लेकिन, पार्टी अब ऐसे लोगों पर ध्यान नहीं देती। जिन्होंने पार्टी के साथ गद्दारी की अब उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता।

दलबदल पर आमने-सामने

 

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